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कुदरती तालाब, सघन वन और दोरली संस्कृति का है मिलाप
राजेश झाड़ी
बीजापुर। बस्तर bastar हमेशा से ही प्रकृति प्रेमियों के साथ-साथ मानवशास्त्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। यहां मौजूद नैसर्गिक सुंदरता, जैव विविधता और अकूत खनिज भंडार के चलते बस्तर की चर्चा पर्यटन के उद्देश्य होती रही है, वही आदिम संस्कृति को करीब से जानने और समझने के मकसद से भी शोधार्थियों का रूख भी बस्तर की ओर रहा है।
बस्तर bastar में पाई जाने वाली आदिवासी जनजातियों में दोरली भी शामिल है, जो प्रमुख रूप से दक्षिण और पश्चिम बस्तर में निवासरत् है। इस जनजाति की सर्वाधिक संख्या बीजापुर जिले के उसूर विकासखं में वास करती है। गत दिनों चामुंडा और वीर योद्धा की दुर्लभ प्रतिमा मिलने की खबर के बाद टेकमेटला गांव अब सुर्खियों में है। वनाच्छादित और कुदरती खूबसूरती के बीच बसा पोलमपल्ली ग्राम पंचायत का यह गांव अपनी नैसर्गिक विरासत और प्राचीन मूर्तियों के लिए अब अंचल में पृथक पहचान कायम कर चुका है।
चामुंडा और वीर योद्धा की दुर्लभ प्रतिमाओं को करीब से देखने क्षेत्रवासियों में उत्सुकता बढ़ गई है, वही ऐतिहासिक धरोहर मिलने की खबर के बाद मानवशास्त्रियों के अलावा साहित्यकारों का ध्यान भी इस गांव की ओर गया है। वरिष्ठ साहित्यकार राजीव रंजन ने टेकमेटला में मौजूद प्राकृतिक सुंदरता की प्रशंसा करने के साथ दोरली संस्कृति के समावेश को बस्तर में जनजाति और प्रकृति के मिलन केंद्र के रूप में निरूपित किया है।
बताया जा रहा है कि सरकारी आंकड़े के मुताबिक दोरला जनजाति की संस्कृति एवं जनसंख्या काफी घट चुकी है। गोंड जनजाति की उप शाखा दोरला जनजाति जो कि दक्षिण और पश्चिम बस्तर क्षेत्र में पाई जाती है, इनकी संस्कृति, जीवनचर्या को करीब से जानने के लिए टेकमेटला जैसे गांव को संरक्षित करने की दरकार है।
बासागुड़ा स्टेट हाईवे से करीब पंद्रह किमी दूर पोलमपल्ली पंचायत का टेकमेटला गांव की लगभग आबादी दोरली जनजाति की है। परंपरागत मकान, परंपरागत कृषि तकनीक और रहन-सहन से यह गांव ना सिर्फ शोधार्थियां के लिए आकर्षण का केंद्र बन सकता है, बल्कि यहां मौजूद प्राकृतिक तालाब, घास के मैदान और सघन वन भी प्रकृति प्रेमियों का ध्यान धीरे-धीरे खींच रहे हैं। स्थानीय लोग भी प्रकृति और संस्कृति के बीच रचे-बसे ऐसे गांवों को विशेष संरक्षित कर पर्यटन के नजरिए से विकसित करने की मांग कर रहे हैं।