आशीष वशिष्ठ। Tax on Rich Farmers : पिछले कई दशकों से इस बात पर चर्चा होती रही है कि अमीर किसानों को भी आयकर के दायरे में लाया जाए। लेकिन तमाम विचार-विमर्श और चिंतन-मंथन के बाद भी कोई सरकार धनी किसानों पर टैक्स लगाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। भारतीय राजनीति में शुरू से ही किसानों की गरीबी का भरपूर फायदा उठाया गया है। देश के राजनीतिज्ञों ने किसानों और गरीबों को एक दूसरे का पर्यायवाची बनाकर पेश करने की कोशिश की। ‘एक किसान गरीब ही होगा’ लोगों के बीच इस मानसिकता को जान-बूझकर बढ़ावा दिया गया। अमीर किसानों की आय पर टैक्स लगाने की बात हर सरकार में की गयी, लेकिन आज तक यह फैसला नहीं लिया गया क्योंकि सभी को अपना वोट बैंक खोने का डर है।
जमीनी हकीकत यह है कि हरित क्रांति आने के 5 दशक होने को हैं, जिसके दौरान हमने किसानों की आय को कई गुना बढ़ते देखा है। हालांकि, आज भी इनकम टैक्स एक्ट के मुताबिक कृषि से होने वाली आय पर भारत में टैक्स नहीं लगता। देश के गरीब किसानों का समझ में आता है, लेकिन यह बात समझ से परे है कि अमीर किसानों की आय पर टैक्स क्यों नहीं लगाया जाता है। क्या अमीर किसान इस देश के नागरिक नहीं है? अमीर किसानों की आय पर कर तो छोडि़ए, सरकार उल्टा इन्हें बाकी किसानों के साथ ही भारी-भरकम सब्सिडी प्रदान करती है। अब समय आ गया है कि आय कर के नियमों में बदलाव करके अमीर किसानों की आय पर भी कर लगाने का प्रावधान जोड़ा जाये।
अगर यह कहा जाए कि 130 करोड़ की आबादी वाला यह देश सिर्फ साढ़े चार करोड़ लोगों के टैक्स के पैसों से चलता है, तो हैरान न हों। इसमें भी डेढ़ करोड़ करदाता ऐसे हैं, जिनका योगदान नाम भर का है। यानी व्यावहारिक तौर पर देश की कुल आबादी के तीन प्रतिशत से भी कम लोग आयकर देते हैं। कृषि से होने वाली आय पर कर ना लगने से अमीर किसान तो अपना कर बचाते ही हैं, साथ ही इस प्रावधान की वजह से भारत के आयकर इक_ा करने की प्रणाली में एक बड़ा ब्लैक होल बन चुका है।
हाल के किसान आंदोलन में हमने हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को नजदीक से देखा। महंगे कपड़े, स्पोट्र्स शूज और बड़ी-बड़ी गाडिय़ां, बड़े ट्रैक्टर सभी कुछ थे उनके पास। फिर भी उनमें से एक भी किसान आयकर नहीं देता। कई ऐसे किसान मिल जाएंगे, जिनके पास सैकड़ों एकड़ जमीन है और वे कर देने के बजाय सरकार से ही वसूली कर रहे हैं, चाहे वह एमएसपी में बढ़ोतरी हो या उर्वरकों की कीमतों में सब्सिडी या फिर कम दाम पर या मुफ्त में बिजली। छोटे व्यवसायी इस समय कोरोना महामारी के कारण मार खा बैठे हैं। लेकिन इसके पहले उन्होंने काफी कमाया।
वर्ष 2017 में नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय ने सुझाव दिया था कि, एक सीमा के बाद कृषि से होने वाली आय पर भी कर लगाया जाना चाहिए। बिबेक देबरॉय ने इशारा किया था कि कई राज्यों में पहले कृषि आय पर टैक्स लगाने का प्रावधान था। बिहार (1938), असम (1939), पश्चिम बंगाल (1944), ओडिशा (1948), उत्तर प्रदेश (1948), हैदराबाद (1950), त्रावणकोर और कोचीन (1951) एवं मद्रास और ओल्ड मैसूर (1955) में कृषि आय पर कर का कानून था। कुछ राज्यों में अब भी यह मौजूद है। मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने भी देबरॉय की बातों से सहमति जताई थी। लेकिन सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों से इस पर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली थी।
टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन रिफॉर्म कमीशन (Tax on Rich Farmers) ने साल 2014 में ही कहा था कि दूसरे पेशे के लोग कृषि आय के नाम पर टैक्स छूट की रकम हर साल बढ़ा रहे हैं। यह वास्तव में टैक्स छूट पाने का एक बेहतरीन जरिया बन गया है। सीएजी की रिपोर्ट में भी इस बात पर चिंता जताई गयी है। टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन रिफॉर्म कमीशन ने सुझाव दिया था कि जिन किसानों की कृषि आय 50 लाख रुपये से अधिक हो, उनसे इनकम टैक्स लिया जाना चाहिए। जिन किसानों के पास चार हेक्टेयर से अधिक जमीन है, देश में उनकी आबादी कुल किसानों का सिर्फ चार फीसदी है, लेकिन उनकी कुल कृषि आय किसानों की कुल आमदनी का 20 फीसदी है।
ब्रिटिश राज के दौरान 1925 में भारतीय कराधान जांच समिति ने कहा था कि कृषि से होने वाली आय पर टैक्स छूट का कोई ऐतिहासिक या सैद्धांतिक कारण नहीं है। केवल प्रशासनिक और राजनीतिक कारणों से कृषि को टैक्स से दूर रखा गया है। आज की तारीख में भी ये दोनों बातें अमूमन सही हैं। देश की आजादी के बाद पहली बार साल 1972 में बनाई गई केएन राज समिति ने भी कृषि पर टैक्स की सिफारिश नहीं की। यहां तक कि केलकर समिति ने भी 2002 में कहा था कि देश में 95 फीसदी किसानों की इतनी कमाई नहीं होती कि वो टैक्स के दायरे में आएं। मतलब साफ है कि पांच फीसदी किसानों को टैक्स के दायरे में लाया जा सकता है।
खेती से होने वाली आय पर टैक्स नहीं लगने से इसका फायदा उन बड़े किसानों के पहुंचता है जो संपन्न हैं या फिर उन बड़ी कंपनियों को जो इस सेक्टर में लगी हैं। सरकार की नीतियों में विरोधाभास है। टैक्स से छूट के दायरे में खेतिहर जमीन से मिलने वाला किराया, फसल बेचने से होने वाली कमाई, नर्सरी में उगाए जाने वाले पौधे से होने वाली आय, कुछ शर्तों के साथ फार्महाउस से होने वाली कमाई इत्यादि आती हैं। लेकिन कृषि पर होने वाली आय को दिखा कर बड़ी कंपनियां बहुत बड़ी रकम पर टैक्स से छूट पा लेती हैं। 2014-15 में कावेरी सीड्स ने कृषि से 186.63 करोड़ रुपए की आय दर्शाया था। वहीं मॉन्सांटो जैसी अमरीकी कंपनी ने 94.4 करोड़ कृषि से आय दिखाया था।
तीन नये कृषि कानूनों की वापसी के बाद किसान नेता एमएसपी के गारंटी कानून पर आमादा हैं, तो देशहित में एक विनम्र सुझाव है कि जिन किसानों के पास 2-3 हेक्टेयर से अधिक खेती-योग्य जमीन है और सालाना आमदनी 10-15 लाख रुपए से अधिक है, तो वे किसान आम करदाता की तरह आयकर दें। वे आयकर रिटर्न भी दाखिल करें। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में करीब 86 फीसदी किसानों के पास औसतन 2 हेक्टेयर या उससे भी कम जमीन है। वे गरीब हैं, लेकिन जो बड़े जमींदार हैं, जिनके पेट्रोल पंप भी चलते हैं और जो चमचमाती कारों में सवार रहते हैं, उन्हें आयकर में छूट क्यों दी जाए?
प्रश्न यह भी है कि जब सरकार ने आयकर-छूट की नीति बनाई थी, तब आर्थिक स्थितियां कुछ और होंगी, लेकिन अब तो आर्थिक उदारीकरण का दौर है। बड़े किसान आयकर क्यों न दें? उन्हें सबसिडी क्यों दी जाती रहे? यदि एमएसपी की गारंटी देनी है, तो सभी 265 फसलों पर दी जानी चाहिए। फिलहाल सरकार और उसका आयोग सिर्फ 23 फसलों पर ही एमएसपी की घोषणा करते हैं।
दूध, मक्खन, मछली, अंडा आदि मुहैया कराने और पशुपालन, मछलीपालन, मुर्गीखाना चलाने वालों को भी एमएसपी क्यों न दिया जाए? देश के प्रतिष्ठित कृषि विशेषज्ञ स्वामीनाथन ने अपनी रपट में अनुशंसा की थी कि गेहूं और धान पर एमएसपी देना बंद करें। उसके बजाय विविध फसलों पर एमएसपी तय किया जाए। जहां तक एमएसपी का सवाल है, चरण सिंह, देवीलाल और महेंद्र सिंह टिकैत भी इसे कानूनी दर्जा नहीं दिला पाए। मौजूदा दौर में यह और भी पेचीदा है, क्योंकि सभी राज्य सरकारों की सहमति भी अनिवार्य है।
पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कुछ किसान बहुत अमीर (Tax on Rich Farmers) हैं। कईयों के पास सौ-सौ एकड़ जमीन है और वे असल में करोड़पति हैं, लेकिन बाकी सभी राज्यों में हमें गरीब किसान देखने को मिलते हैं। गरीब किसानों के भले के लिए अमीर किसानों पर आयकर लगाया जाना ही चाहिए। लेकिन इसके लिए गहन राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होगी। मोदी सरकार पहले भी कई ऐसे कदम उठा चुकी है, जिसमें उसने अपनी राजनीतिक इच्छाशक्ति का उदाहरण पेश किया है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अगर भारत के टॉप 4.1 फीसदी किसान परिवारों पर 30 फीसदी की दर से आयकर लगाया जाए तो कृषि टैक्स के रूप में सरकार के खजाने में 25 हजार करोड़ रुपए आएंगे।
-स्वतंत्र पत्रकार एवं टिप्पणीकार