सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को विभिन्न राज्यों में लागू मतांतरण विरोधी कानूनों (Supreme Court Anti Conversion Law Case) पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं की तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि इन मामलों की सुनवाई अब दिसंबर में होगी।
प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की तीन सदस्यीय पीठ ने स्पष्ट किया कि इस विषय पर जल्दी सुनवाई संभव नहीं है। एक याचिकाकर्ता के वकील ने आग्रह किया था कि अदालत अगले सप्ताह तक राज्यों के इन कानूनों पर रोक लगाए, लेकिन अदालत ने इसे अस्वीकार कर दिया। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “मेरे पास कई महत्वपूर्ण फैसले लंबित हैं, इसलिए इस महीने के भीतर सुनवाई संभव नहीं। हम इस मामले पर दिसंबर में सुनवाई करेंगे।
किन राज्यों में लागू हैं मतांतरण कानून
अदालत में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि मतांतरण विरोधी कानून (Supreme Court Anti Conversion Law Case) संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) और अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लंघन करते हैं। फिलहाल ये कानून उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड और कर्नाटक में लागू हैं।
इनका उद्देश्य अंतरधार्मिक विवाहों के माध्यम से किए जाने वाले जबरन या प्रलोभन आधारित धर्मांतरण को रोकना बताया गया है। उत्तर प्रदेश का कानून सबसे व्यापक है, जो न केवल विवाह से जुड़ा बल्कि सभी प्रकार के मतांतरणों को नियंत्रित करता है। वहीं, उत्तराखंड में इस कानून के तहत धर्मांतरण कराने पर दो साल तक की सजा का प्रावधान है।
सुप्रीम कोर्ट की पिछली टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने 16 सितंबर को इन राज्यों को नोटिस जारी कर कहा था कि वे चार सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करें। उसके बाद याचिकाकर्ताओं को दो सप्ताह में प्रत्युत्तर दाखिल करने का समय दिया गया था। प्रधान न्यायाधीश ने उस समय कहा था कि “राज्यों के जवाब आने के बाद ही यह तय किया जाएगा कि इन कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगाई जाए या नहीं।”
केंद्र सरकार ने पहले इन कानूनों को चुनौती देने वाली याचिका की स्वीकार्यता पर सवाल उठाया था। सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ “सिटिजंस फॉर जस्टिस एंड पीस” द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि ये कानून नागरिकों की निजी पसंद और धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ हैं।

