प्रो. आदित्य गुप्ता। Supply Chain : मार्च 2020 से लेकर मई 2020 तक के पूर्ण लॉकडाउन को जरा याद कीजिए। केवल दो चीजें ऐसी थीं जिसने जिंदगी को गतिशील बनाए रखा- एक डेटा-समर्थ इंटरनेट कनेक्शन और घर पर प्राप्ति के माध्यम से सब्जियों और किराने के सामानों का वितरण। आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति कभी बंद नहीं हुई। इन सबके पीछे लॉजिस्टिक्स से जुड़े हजारों गुमनाम योद्धा थे, जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर सामानों को गोदामों में पैक किया और वहां से उठाया, सामानों को निकट की दुकानों तक पहुंचाया और फिर लोगों के घरों में वितरित किया।
ट्रक ड्राइवरों से लेकर गोदामों में सामान उठानेवालों (पिकर) तक, कंपनी में आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) मैनेजर से लेकर लॉजिस्टिक्स स्टार्टअप के सीईओ तक, आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) से जुड़े पेशेवरों के एक पूरे समूह ने हर देश को कार्यशील और गुंजायमान बनाए रखा। इतना जरूरी और अपरिहार्य क्षेत्र होने के बावजूद, लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र में अपेक्षित सीमा तक संगठित कौशल का नितांत अभाव है। हमारे एमबीए की पढ़ाई के दिनों में, आपूर्ति श्रृंखला (Supply Chain) प्रबंधन को एक विषय के तौर पर भी नहीं रखा गया था।
अब यह एक विषय के रूप में रखा गया है। यह एक अलग बात है कि अभी भी अधिकांश एमबीए स्कूलों में इसे एक वैकल्पिक विषय के रूप में ही शामिल किया गया है। ड्राइवरों को अभी भी ड्राइवर-हेल्पर वाली पद्धति के माध्यम से ही प्रशिक्षित किया जा रहा है। गोदामों (वेयरहाउसिंग) से जुड़ा कामकाज पूरी तरह से काम के दौरान सीखने (ऑन-द-जॉब लर्निंग) वाला मामला है। एक अनुमान के अनुसार, भारतीय लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में दो करोड़ से अधिक लोग कार्यरत हैं जोकि इसे कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता बनाता है। दुर्भाग्य से, इनमें से बहुत कम प्रतिशत लोग ही औपचारिक रूप से प्रशिक्षित हैं। अधिकांश लोगों ने तो काम करने के दौरान कौशल हासिल किया है।
लॉजिस्टिक्स संबंधी कौशल ने अब अपनी तरफ लोगों का ध्यान खींचा है, और पिछले दशक में लॉजिस्टिक्स संबंधी कौशल के निर्माण में खासी प्रगति हुई है। भारत में लॉजिस्टिक्स संबंधी कौशल विकास से जुड़ा वर्तमान परिदृश्य निम्नलिखित है: लॉजिस्टिक्स कौशल परिषद (लॉजिस्टिक्स स्किल काउंसिल): कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय (एमएसडीई) और राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) द्वारा लॉजिस्टिक्स क्षेत्र कौशल परिषद (एलएससी) का गठन समग्र समाधान उपलब्ध कराने के प्रयास के तहत एक शीर्ष उद्योग निकाय के रूप में किया गया था। एलएससी ने 11 उप-क्षेत्रों की पहचान की है और वह इन सभी क्षेत्रों में प्रशिक्षण और रोजगार सृजन की दिशा में काम कर रहा है।
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) संस्थान: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई), जिसका शुभारंभ 2015 में किया गया था, के तहत विभिन्न प्रशिक्षण संस्थान लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र में विभिन्न भूमिकाओं वाली नौकरियों के लिए राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक (एनओएस) के अनुरूप प्रशिक्षण संबंधी विभिन्न पाठ्यक्रम की पेशकश करते हैं। प्रशिक्षुता-युक्त पूर्व स्नातक पाठ्यक्रम (अप्रेंटिसशिप-एम्बेडेड अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम): एलएससी की पहल के तहत, उच्च शिक्षा में लॉजिस्टिक्स संबंधी कौशल को एकीकृत करने के उद्देश्य से कई उच्च शिक्षा संस्थान स्नातक स्तर से नीचे के छात्रों के रोजगार कौशल को बढ़ाकर उन्हें उद्योग के लिए तैयार करने के इरादे से अब प्रशिक्षुता (अप्रेंटिसशिप)-आधारित बी.ए/बी. कॉम की डिग्री की पेशकश कर रहे हैं।
विशिष्ट संस्थान: अंतर्देशीय जल परिवहन के लिए मानव संसाधन तैयार करने हेतु नेशनल इनलैंड नेविगेशन इंस्टीट्यूट (एनआईएनआई), रेलवे लोकोमोटिव ड्राइवरों के लिए क्षेत्रीय रेलवे प्रशिक्षण संस्थान और लंबी दूरी के गन्तव्यों तक चलने वाले सड़क ड्राइवरों के लिए टाटा मोटर्स चालक प्रशिक्षण संस्थान जैसे विशेष संस्थान हैं, जो विशिष्ट भूमिकाओं वाली नौकरियों के लिए कौशल प्रदान करते हैं। गतिशक्ति परियोजना के शुभारंभ के साथ, भारत अपने परिवहन संबंधी बुनियादी ढांचे को दुनिया भर में सर्वश्रेष्ठ बनाने की दिशा में लंबी छलांग लगाने का प्रयास कर रहा है। डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर, भारतमाला, सागरमाला जैसी परियोजनाएं भारत में परिवहन से संबंधित परिदृश्य को पूरी तरह से बदल रही हैं।
उद्योग जगत और शैक्षणिक संस्थानों के बीच सहयोग: छात्रों को पेश किए जाने वाले पाठ्यक्रमों में उद्योग जगत और शैक्षणिक संस्थानों की भागीदारी होनी चाहिए। पाठ्यक्रम और शिक्षण संबंधी सामग्री को इस तरह से डिजाइन किया जाना चाहिए कि छात्र पाठ्यक्रम पूरा करने के तुरंत बाद रोजगार पाने के योग्य बन सकें। इस प्रकार, इन पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने वाले छात्रों को नौकरियों का आश्वासन दिया जा सकेगा और उद्योग जगत को प्रशिक्षित श्रमशक्ति का एक पूल निरंतर मिल सकेगा, जिससे सभी पक्षों को लाभ होगा। श्रमशक्ति के कौशल का संवर्धन: लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में कार्यरत मौजूदा श्रमशक्ति के कौशल को इस क्षेत्र की बदलती जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से संवर्धित करने की आवश्यकता है। कौशल संवर्धन में छोटे निवेशों का उपयोग करके बड़े लाभ प्रदान करने की क्षमता है। उदाहरण के लिए, एक गोदाम में बेहतर प्रबंधन के लिए मौजूदा कर्मचारियों के कौशल को अन्य बातों के अलावा स्वचालन, सुरक्षा संबंधी जरूरतों, डब्ल्यूएमएस और अनुपालन के मामले में संवर्धित किया जा सकता है।
योग्यता संबंधी मानकों का अनिवार्य कार्यान्वयन: आज लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र में काम करने वाले अधिकांश लोगों के पास इस क्षेत्र से संबंधित कोई औपचारिक शिक्षा नहीं है। रोजगार के लिए योग्यता को पूर्व-शर्त बनाना जरूरी है। यह योग्यता रोजगार की किस्मों के आधार पर कोई प्रमाणपत्र, डिप्लोमा या डिग्री हो सकती है, लेकिन इसे अनिवार्य किया जाना चाहिए। यह नियोक्ताओं और कर्मचारियों, दोनों, को किसी उद्योग में प्रवेश करने से पहले अपेक्षित योग्यता अर्जित करने के लिए प्रोत्साहित करेगा। मातृभाषा में पाठ्यक्रम: लॉजिस्टिक्स उद्योग में प्रवेश करने वाली लगभग दो-तिहाई श्रमशक्ति ने अपनी शिक्षा मातृभाषा में प्राप्त की है। लॉजिस्टिक्स संबंधी कार्यों को करने के लिए अंग्रेजी में संवाद करने की क्षमता की जरूरत नहीं है। लॉजिस्टिक्स से जुड़े पाठ्यक्रमों को कई भाषाओं में तैयार और प्रदान किया जाना चाहिए ताकि उन्हें बड़ी संख्या में लोगों द्वारा अपनाया जा सके और वे कुशल बन सकें।
प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण: हमें प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए एक ऐसे शीर्ष प्रशिक्षण संस्थान की जरूरत है जो सभी लॉजिस्टिक्स प्रशिक्षण संस्थानों (Supply Chain) के शिक्षकों को ठीक वैसे ही प्रशिक्षित करे जिस तरह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) बाकी सभी बैंकों के साथ करता है। एक प्रशिक्षक के पास एक उद्योग विशेष के बारे में व्यावहारिक विशेषज्ञता होनी चाहिए और उसे इस क्षेत्र में होने वाली नवीनतम प्रगति के साथ-साथ ऑनलाइन शिक्षण कौशल और शिक्षण से संबंधित सूक्ष्म कौशल से निरंतर अवगत रहना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय नौकरी के अवसर: बड़ी संख्या में ऐसे देश हैं जो लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र में प्रशिक्षित श्रमशक्ति की कमी से जूझ रहे हैं। भारत के फोर्कलिफ्ट ड्राइवरों को मध्य– पूर्व के देशों में बहुत सारे रोजगार मिलते हैं। हमें अपने छात्रों को अंतरराष्ट्रीय पाठ्यक्रम के आधार पर प्रशिक्षित करने और वैश्विक संस्थानों के साथ गठजोड़ करने की जरूरत है ताकि भारत की योग्यता संबंधी मानकों को दुनिया भर में स्वीकार किया जा सके और भारतीय छात्रों को विभिन्न देश में रोजगार मिल सके।
प्रशिक्षण के साजो-सामान: लॉजिस्टिक्स संबंधी कौशल सैद्धांतिक कम, व्यावहारिक ज्यादा हैं। प्रशिक्षण संस्थानों को सिमुलेटर, ड्राइविंग ट्रैक, गोदाम जैसी परिस्थितियों का निर्माण, फोर्कलिफ्ट और अन्य उपकरणों की व्यवस्था रखने की जरूरत है जोकि श्रमशक्ति को प्रशिक्षित करने के लिए आवश्यक होते हैं। प्रशिक्षण के उपकरण उपलब्ध नहीं होने पर छात्र उद्योग के लिए तैयार नहीं हो सकेंगे। आने वाले वर्षों में लॉजिस्टिक्स क्षेत्र के पास अधिकतम संख्या में रोजगार के अवसर पैदा करने की क्षमता है। यह क्षेत्र लगभग हर किस्म की योग्यता वाले व्यक्ति को रोजगार देने की क्षमता रखता है। जरूरत इस बात की है कि युवाओं को इस क्षेत्र की ओर आकर्षित करने के लिए सरकार, उद्योग और संस्थान मिलकर कौशल संबंधी एक बेहतर बुनियादी ढांचा तैयार करें और उन्हें इस क्षेत्र में एक आकर्षक करियर की पेशकश करें।