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विश्व स्वास्थ्य दिवस पर विशेष: स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहना होगा

Special on World Health Day: We have to be aware about our health

World Health Day 2025

रमेश सर्राफ धमोरा

World Health Day: आज दुनिया भर में मनुष्य के स्वास्थ्य को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी दुनिया के देशों को समय-समय पर चेतावनी देता रहता है। कुछ वर्ष पूर्व आई कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया था। मगर वैज्ञानिकों की तत्परता से वैक्सीन निर्माण होने के चलते वह नियंत्रण में आ गई थी। मगर भविष्य में भी ऐसी कोई गारंटी नहीं है कि कोरोना जैसी महामारी फिर नहीं आए। कभी भी कोई नई महामारी आ सकती है। इसलिए हमें हमारे खानपान, रहन-सहन व वातावरण में सावधानी बरतनी चाहिए ताकि हम बेवजह की बीमारियों से बच सके।

स्वास्थ्य हमारे जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। इंसान जब तक स्वस्थ रहता है तब तक उसमें कार्य करने की क्षमता बनी रहती है। जब वह अस्वस्थ होने लगता है तो उसके कार्य करने की क्षमता भी कमजोर पड़ने लगती है। इसीलिए हमारे बुजुर्ग कहा करते थे कि पहला सुख निरोगी काया। यानी शरीर स्वस्थ रहने पर ही सबसे पहला सुख मिलता है। आज के दौर में खानपान में लापरवाही के चलते अधिकतर व्यक्ति किसी ने किसी बीमारी से ग्रसित रहने लगे हैं। इससे उनके कार्य क्षमता में भी कमी आई है। मनुष्य के अस्वस्थ होने पर उसके उपचार पर पैसे खर्च होते हैं जिससे उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर होने लगती है। इसके साथ ही बीमार व्यक्ति का पूरा परिवार भी उसकी बीमारी के चलते तनाव में रहने लगता है। भागम-भाग के दौर वाली आज की जिंदगी में जो व्यक्ति अपना स्वास्थ्य सही रख पाता है। वह कम कमा कर भी सबसे अधिक सुखी रह सकता है। इसलिए हमें सबसे अधिक अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए।

स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने के लिए प्रति वर्ष 7 अप्रैल को पूरी दुनिया में विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने के पीछे  विश्व स्वास्थ्य संगठन का मकसद दुनियाभर में लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना है। साथ ही साथ सरकारों को स्वास्थ्य नीतियों के निर्माण के लिए प्रोत्साहित और प्रेरित करना। वर्तमान में इस संगठन के बैनर तले 195 से अधिक देश अपने-अपने देश के नागरिकों को रोगमुक्त बनाने के लिए प्रयासरत है। विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाने की शुरुआत 1950 से हुई। वैश्विक आधार पर स्वास्थ्य से जुड़े सभी मुद्दे को विश्व स्वास्थ्य दिवस लक्ष्य बनाता है। जिसके लिये कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा अंतरर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रकार के खास विषय पर आधारित कार्यक्रम इसमें आयोजित होते हैं। पूरे साल भर के स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिये और उत्सव को चलाने के लिये एक खास विषय का चुनाव किया जाता है। वर्ष 2025 में विश्व स्वास्थ्य दिवस का विषय है स्वस्थ शुरुआत, आशावादी भविष्य। यह विषय माताओं और नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य और जीवन को बढ़ाने पर केंद्रित है। जिसका लक्ष्य परिहार्य मातृ और शिशु मृत्यु के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि आधे भारतीयों की आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच ही नहीं है। जबकि स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाने वाले लोग अपनी आय का 10 फीसदी से ज्यादा इलाज पर ही खर्च कर रहे हैं।

वैश्विक साइबर सुरक्षा सूचकांक (जीसीआई) 2024 में भारत का स्कोर 98.49/100 रहा है। यह स्कोर अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ भारत को टियर 1 में रखता है। वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक 2024 के अनुसार भारत 42.8 के समग्र सूचकांक स्कोर के साथ 195 देशों में से 66वें स्थान पर है और 2019 से -0.8 का परिवर्तन है। 2021 में दुनिया भर के देशों की स्वास्थ्य प्रणालियों की रैंकिंग के अनुसार, स्वास्थ्य सूचकांक स्कोर के आधार पर भारत 167 देशों में से 111वें स्थान पर था।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार तीन साल की अवस्था वाले 3.88 प्रतिशत बच्चों का विकास अपनी उम्र के हिसाब से नहीं हो सकी है और 46 प्रतिशत बच्चे अपनी अवस्था की तुलना में कम वजन के हैं, जबकि 79.2 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से पीडि़त हैं। गर्भवती महिलाओं में एनीमिया 50 से 58 प्रतिशत बढ़ा है। कहा जाता है कि जिस देश कि चिकित्सा सुविधाएं बेहतर होगी उस देश के लोगों कि औसत आयु उतनी ही अधिक होगी। भारतवासियों को यह जानकर हैरानी होगी कि औसत आयु के मामले में बांग्लादेश भारत से आगे है। भारत में औसत आयु जहां 64.6 वर्ष मानी गई है, वहीं बांग्लादेश में यह 66.9 वर्ष है। इसके अलावा भारत में कम वजन वाले बच्चों का अनुपात 43.5 प्रतिशत है और प्रजनन क्षमता की दर 2.7 प्रतिशत है, जबकि पांच वर्षों से कम अवस्था वाले बच्चों की मृत्यु दर 66 है और शिशु मृत्यु दर जन्म लेने वाले प्रति हजार बच्चों में 41 है जबकि 66 प्रतिशत बच्चों को डीपीटी का टीका देना पड़ता है।

भारतीय स्वास्थ्य रिपोर्ट के मुताबिक सार्वजनिक स्वास्थ्य की सेवाएं अभी भी पूरी तरह से मुफ्त नहीं है और जो है उनकी हालत अच्छी नहीं है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रशिक्षित लोगों की काफी कमी है। भारत में डॉक्टर और आबादी का अनुपात भी संतोषजनक नहीं है। हमारे देश में 1000 लोगों पर एक डॉक्टर भी उपलब्ध नहीं है। अस्पतालों में बिस्तर की उपलब्धता भी काफी कम है और केवल 28 प्रतिशत लोग ही बेहतर साफ-सफाई का ध्यान रखते हैं। पिछले कुछ सालों में हमारे देश में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का प्रभाव बढ़ा है। साथ ही मधुमेह, हृदय रोग, क्षय रोग, मोटापा, तनाव की चपेट में भी लोग बड़ी संख्या में आ रहे हैं। महिलाओं में स्तन कैंसर, गर्भाशय कैंसर का खतरा बढ़ा है। ये बीमारियां बड़ी तादाद में उनकी मौत का कारण बन रही हैं। ग्रामीण तबके में देश की अधिकतर आबादी उचित खानपान के अभाव में कुपोषण की शिकार हो रही है।  महिलाओं, बच्चों में कुपोषण का स्तर अधिक देखा गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार प्रति 10 में से सात बच्चे एनीमिया से पीडि़त हैं। वहीं महिलाओं की 36 प्रतिशत आबादी कुपोषण की शिकार है।

भारत में इलाज पर अपनी जेब से खर्च करने वाले पीडि़त लोगों की संख्या ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी की संयुक्त आबादी से भी अधिक है। भारत की तुलना में इलाज पर अपनी आय का 10 फीसदी से अधिक खर्च करने वाले लोगों का देश की कुल जनसंख्या में प्रतिशत श्रीलंका में 2.9 फीसदी, ब्रिटेन में 1.6 फीसदी, अमेरिका में 4.8 फीसदी और चीन में 17.7 फीसदी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अभी भी बहुत से लोग ऐसी बीमारियों से मर रहे है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में बताया गया कि देश की आबादी का 3.9 फीसदी यानी 5.1 करोड़ भारतीय अपने घरेलू बजटा का एक चौथाई से ज्यादा खर्च इलाज पर ही कर देते हैं। जबकि श्रीलंका में ऐसी आबादी महज 0.1 फीसदी है, ब्रिटेन में 0.5 फीसदी, अमेरिका में 0.8 फीसदी और चीन में 4.8 फीसदी हैं। इलाज पर अपनी आय का 10 फीसदी से ज्यादा खर्च करने वाली आबादी का वैश्विक औसत 11.7 फीसदी है। इनमें 2.6 फीसदी लोग अपनी आय का 25 फीसदी से ज्यादा हिस्सा इलाज पर खर्च करते हैं और दुनिया के करीब 1.4 फीसदी लोग इलाज पर खर्च करने के कारण ही अत्यंत गरीबी का शिकार हो जाते हैं।

देश के ग्रामीण अंचल में जब तक सही व समुचित स्वास्थ्य सेवाऐं उपलब्ध नहीं हो पायेगी तब तक भारत में सबको स्वास्थ्य की योजना पूरी नहीं हागी। आज देश के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधा की स्थिति बड़ी भयावह है। आये दिन समाचार पढऩे को मिलते हैं कि एम्बुलेन्स के अभाव में मृतक को साईकिल पर बांधकर घर तक लाना पड़ता है। गांवो में स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में लोगों को तांत्रिको के चक्कर लगाते देखा जा सकता है। निजी चिकित्सक भी कमाई के चक्कर में शहरों में ही काम करना पसन्द करते हैं। जब तक गांवो की तरफ ध्यान नहीं दिया जायेगा तब तक भारत में सबको स्वास्थ्य का सपना पूरा नहीं हो पायेगा।

(आलेखः-रमेश सर्राफ धमोरा, लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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