डॉ. संजय शुक्ला
Special on International Yoga Day: आज 21 जून को सातवें अंर्तराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर समूची दुनिया योग करेगी, कोरोना महामारी के चलते इस साल भारत में योग दिवस का थीम ”योग के साथ रहें, घर पर रहें” है। वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान आयुर्वेद और योग की प्रभावकारिता बखूबी साबित हुयी है। विश्व समुदाय ने योग और आयुर्वेद को अपने दिनचर्या में शामिल कर अपने आपको इस महामारी से सुरक्षित रखा है, वहीं इस संक्रमण से स्वस्थ हुए लोग भी इस प्राचीन विधा को अपनाकर सामान्य दिनचर्या पर लौट रहे हैं।
आज देश ही नहीं वरन् विदेशों में भी योग लोगों के जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है। महामारी के इस दौर में मानव समाज बड़ी तेजी से शारीरिक और मानसिक रोगों के चपेट में आ रहा है। दुनिया के सरकारों के लिए सबसे बड़ी चुनौती महामारियों के अलावा संक्रामक और गैरसंक्रामक रोगों से निबटना भी है। कोरोना कोई आखिरी महामारी नहीं है अपितु भविष्य में भी ऐसे महामारियों का सामना विश्व समुदाय को करना होगा। जीवाणुओं पर दवाओं के बेअसर व प्रभाव प्रतिरोधी होने तथा महंगे उपचार के चलते वस्तुत: आज जरूरत रोगों के उपचार की नहीं अपितु बचाव की है।
आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर साल कैंसर के 10 लाख मरीज सामने आ रहे हैं, वहीं मधुमेह के मामले में भारत को मधुमेह की राजधानी कहा जा रहा है। जानकारी के अनुसार हमारे देश में लगभग 25 फीसदी लोगों की मौत हृदय रोगों से हो रही है। नि:संदेह इन गैरसंक्रामक रोगों का प्रमुख कारण अनियमित खान-पान और रहन-सहन ही है। संक्रामक एवं गैरसंक्रामक रोगों के बचाव और उपचार में योगाभ्यास कारगर भूमिका निबाह सकता है तथा इन रोगों के असाध्यता से भी बचा जा सकता है। भारत में योग की परंपरा उतनी ही पुरानी है जितनी कि भारतीय संस्कृति, इसका प्रभाव वैदिक काल और हड़प्पा-मोहनजोदड़ो की सभ्यताओं में भी मिलता है।
पुरातत्ववेताओं के अनुसार इसका इतिहास 10 हजार साल से भी पुराना बताया जाता है। भारतीय जीवन के हर काल में योग का प्रभाव मिलता है। योग के जानकारों के अनुसार ‘योग’ का उल्लेख सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में मौजूद है। कुछ लोगों का मानना है कि योग का उल्लेख संभवत: कठोपनिषद में मिलता है हालांकि योगाभ्यास का सबसे पुराना उल्लेख प्रचीनतम उपनिषद् वृहद अरण्यक में मिलता है। भारतीय दर्शन में योग का सबसे विस्तृत उल्लेख पतंजलि योगसूत्र में हुआ है।
महर्षि पतंजलि को योग के पिता के रूप में माना जाता है तथा इसकी लेखनी है। प्राचीन समय में योग व्यक्तिगत दिनचर्या में शामिल था लेकिन आज के व्यस्ततम दिनचर्या में योग को लोगों ने त्याग दिया था। मगर समय ने अब फिर करवट ली है आज भारत में ही नहीं वरन विश्व में योग का बोलबाला है। नि:संदेह इसका श्रेय भारत के ही योग गुरूओं तिरूमलाई कृश्णामाचार्य, बी.के.एस. अयंगर, बाबा रामदेव, श्री रविशंकर जैसे लोगों को जाता है जिन्होंने ‘योग’ को फिर से ऊंचाईयों में पहुंचाया है।
विचारणीय है कि इन दिनों समूचे विश्व में योग का डंका खूब बज रहा है, पाश्चात्य और आधुनिक जीवनशैली जीने वाले भारतीय व विदेशी बड़ी तेजी से योग की ओर आकर्षित हो रहे हैं। योग का जन्म भले ही भारत में हुआ हो लेकिन विडंबना है कि हम भारतीय अपने ही विरासत को बिसारने लगे हैं। लेकिन जब विदेशी हमारे इस अनमोल विरासत की ओर आकर्षित होने लगे तब हमे योग और आयुर्वेद की महत्ता समझ में आ रही है। योग और आयुर्वेद एक संपूर्ण जीवन पद्धति है जिसके 85 फीसदी हिस्से में मुख्यतया स्वास्थ्य रक्षा के सिद्धांत नीहित है।
योग मानव समाज को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रदान करता है। आज के महंॅगाई के दौर में जब इलाज का बढ़ता खर्च लोगों के पहुंच से बाहर हो रहा हो तब योग बिना दवा के लोगों को स्वस्थ रखने में अहम भूमिका निभा सकता है। अब तो आधुनिक चिकित्सा विशेषज्ञों एवं चिकित्सा वैज्ञानिकों ने भी योग को आधुनिक जीवनशैली गत रोगों जैसे मधुमेह, उच्चरक्तचाप, हृदयरोग, जोड़ों के रोग और मानसिक रोगों के उपचार एवं बचाव में कारगर माना है। गौरतलब है कि योग को स्वस्थ रहने के साथ ही कई तरह के गंभीर रोगों के उपचार में भी एक थेरेपी के रूप में उपयोग किया जा रहा है। योग के साकारात्मक परिणाम मिलने के कारण इसकी स्वीकार्यता व लोकप्रियता बढ़ी है।
बच्चों से लेकर बुजुर्गों में होने वाले शारीरिक और मानसिक तकलीफों का योग के जरिए आसानी से निवारण संभव है। योग न केवल शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को ठीक रखता है बल्कि यह बच्चों एवं युवाओं में नैतिक आचरण और गुणों का प्रादुर्भाव भी करता है जो नैतिक मूल्यों के क्षरण के वर्तमान दौर में समाज के लिए अत्यावश्यक है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में योग प्रथमत: मानस स्वास्थ्य तथा चैतन्य विकास से संबंधित है। योग जीवन विज्ञान का एक अंग है जो विशेष रूप से आध्यात्मिक और शारीरिक विकास से संबंधित है, योग मन, आत्मा और देह का संयोग कराता है।
योगाभ्यास में आहार, विहार एवं नैतिक शुचिता पर बहुत ज्यादा जोर दिया गया है। योग के अभ्यासों से शरीर स्वस्थ, सुंदर, सुडौल, हृष्ट-पुष्ट और शक्तिशाली बनता है तथा कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि रूप सूक्ष्म यौगिक साधनाऐं मनुष्य को लौकिक सुख से विमुक्त कर आनंद प्राप्त कराती है।
गौरतलब है कि योग केवल सेहत के लिए ही लाभदायक नहीं है वरन यह रोजगार उपलब्ध कराने के क्षेत्र में भी बड़ी तेजी से उभरा है। एक जानकारी के अनुसार बीते सालो में योग इंडस्ट्री 50 प्रतिशत तक बढ़ चुका है वहीं योग ट्रेनरों की संख्या में 40 फीसदी का ईजाफा हुआ है योग करने वाले की संख्या में 43 फीसदी बढ़ोतरी हुयी है। बाजारवाद के चलते अब महानगरों एवं बड़े शहरों में ‘योगा वेलनेस सेन्टर’, ‘योगा रिसार्ट और ‘योगा शॉप’ भी खुलने लगे हैं। जहां प्रशिक्षित योग गुरूओं द्वारा नियमित योगाभ्यास करवाया जाता है एवं शॉप में योग से संबंधित समान जैसे योगा ड्रेस, मेट या चटाई, पुस्तकें, सी.डी. इत्यादि का विक्रय होता है।
आज भारत सहित विदेशों में योगा टीचर की बहुत बड़ी मांग है। बड़े कार्पोरेट घराने से लेकर क्लबों में ‘योग’ को काफी प्रमुखता दी जा रही है। अपने कर्मचारियों की उत्पादकता बढ़ाने तथा काम के बोझ को कम करने के लिए इन स्थानों में नियमित योगाभ्यास करवाया जा रहा है। योगाभ्यास के लिए योग शिक्षक नियुक्त किए गए हैं। एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक योग शिक्षकों की मांग हर साल 35 फीसदी की दर से बढ़ रही है।
भारत सरकार द्वारा भी योग के क्षेत्र में रोजगार को बढ़ावा देने के लिए अनेक संस्थान खोले जा रहे हैं जिसका बेहतर परिणाम दृष्टिगोचर हो रहा है। योग रोजगार का एक बेहतर माध्यम बन सकता है। योग से जुड़े उत्पादों का वैश्विक बाजार 5.55 लाख करोड़ रूपयों का है, अकेले भारत में यह 50 हजार करोड़ का कारोबार है। योग की महत्ता व निरोगी काया के परिप्रेक्ष्य में यह जरूरी है कि हम योगाभ्यास को नियमित रूप से अपनी दिनचर्या में शामिल करें तभी इस दिवस की सार्थकता है।