Social Media : सोशल मीडिया पर सख्त निगरानी की जरूरत

Social Media : सोशल मीडिया पर सख्त निगरानी की जरूरत

Social Media: Need for strict monitoring of social media

Social Media

डॉ. सुरभि सहाय। Social Media : भारत को विविधताओं का देश माना जाता है, इस विविधता में जहां प्रेम, भाईचारा, अपनत्व है तो वहीं वैमनस्य और कटुता का अंश भी गाहे-बगाहे देखने को मिल जाता है। देश में सोशल मीडिया के उपयोग और दुरुपयोग के एक से एक खतरनाक आयाम इतनी तेजी से सामने आ रहे हैं कि इस पर नजर रखने और उपद्रवी तत्वों के खिलाफ समय से कार्रवाई करने की जरूरत बढ़ती ही जा रही है। सोशल मीडिया की चर्चा अब फायदों से ज्यादा नुकसान के लिए होने लगी है। हाल ही में हुए कई अध्ययन बताते हैं कि शारीरिक और मानसिक दोनों दृष्टि से सोशल मीडिया एक आम व्यक्ति की जिंदगी को प्रभावित कर रहा है। मौजूदा समय में इंटरनेट के माध्यम से लगभग हर व्यक्ति आज किसी-न-किसी सोशल नेटवर्किंग साइट से जुड़ा है। सोशल मीडिया ने जिस तेजी से लोगों के जीवन में पैंठ बनाई है, उसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं।

भारत एक बहुत विशाल बाजार है और उसकी औसत जनता गरीब होने के बावजूद जिज्ञासु है, लिहाजा देश में व्हाट्स एप के 53 करोड़ से ज्यादा, फेसबुक के करीब 41 करोड़, यूट्यूब के 44.8 करोड़, इंस्टाग्राम के करीब 21 करोड़ और ट्विटर के 1.75 करोड़ यूजर्स हैं। सोशल मीडिया के साधन संचार के शक्तिशाली मंच बन गए हैं। आतंकवादी भी इसी मीडिया या माध्यम का इस्तेमाल कर रहे हैं। अभी हाल ही में यूपी समेत देश के कई हिस्सों में हुई हिंसा में सोशल मीडिया की नेगेटिव भूमिका एक बार फिर उजागर हुई है।

देश में जहां भी हिंसा होती है वहां स्थिति सामान्य होने तक प्राय: इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी जाती हैं। ताकि अफवाहों को बल न मिले, तात्पर्य यह कि अब देश के किसी भी कोने में हिंसा होती है तो उसके पीछे किसी न किसी रूप में अफवाह फैलाने के लिये सोशल मीडिया का दुरुपयोग अब खुलकर होने लगा है। ऐसी स्थिति में देश के सामाजिक ताने-बाने को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गया है। आज देश में सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने की आवश्यकता शिद्दत से महसूस की जा रही है। पिछले दिनों यूपी और देश के कई अन्य शहरों में हुए हिंसक प्रदर्शन में सोशल मीडिया की नेगेटिव भूमिका सामने आयी है। आज के समय में बड़ों से लेकर बच्चों तक में सोशल मीडिया का प्रयोग आम हो चुका है।

सोशल साइट्स पर लोगों की व्यस्तता देख कर ऐसा लगने लगा है कि लोग इसके बिना बिल्कुल रह ही नहीं सकते। बच्चे, जो कि सोशल मीडिया का काफी उपयोग करते हैं, उनमें सुबह उठते ही और रात को सोने जाने से पहले इन वेबसाइटों को एक्सेस करने की आदत पड़ रही है। नि:संदेह इस प्लेटफार्म ने ज्ञानवृद्धि करने, लोगों से संवाद बनाए रखने सहित तमाम विषयों में अच्छे अवसर उपलब्ध कराए हैं। हाईटेक हो चुके इस युग में सोशल मीडिया पर रहना जरूरी हो गया है।

इसे मजबूरी कहें या समय की जरूरत, लेकिन इससे बचना नामुमकिन है, लेकिन समस्या तब खड़ी हो जाती है, जब हमारे बच्चे इसकी गिरफ्त में आते हैं और इस कदर इसकी जाल में जकड़ जाते हैं कि उनको न सिर्फ इसकी लत लग जाती है, बल्कि वो कई तरह की मुसीबतों में भी फंस सकते हैं। यह हो रहा प्रभाव सोशल मीडिया के बहुत ज्यादा उपयोग करने के मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभाव पडऩे की बातें सामने आयी हैं।

हाल ही में हुए एक अध्ययन में निष्कर्ष निकला है कि जो बच्चे सोशल मीडिया (Social Media) का उपयोग बहुत ज्यादा करते है, उनके मन में जीवन के प्रति असंतुष्टि का भाव ज्यादा रहता है। सोशल मीडिया पर लोगों को देख-देख कर बच्चों की आदत हो जाती है कि वे अपने अभिभावकों से अवांछित वस्तु की मांग भी करने लगते हैं। घटों तक ऑनलाइन रहने की इस आदत के कारण बच्चों को अपने शौक को पूरा करने अथवा खुद का आत्मविश्लेषण करने का समय नहीं मिल पाता। बच्चे तनाव ग्रस्त हो रहे हैं। यह तनाव उनके व्यक्तित्व, व्यवहार, सोच, करियर सभी पर बुरा असर डाल रहा है। बच्चे कई तरह के अवसाद और अपराध के भी शिकार हो रहे हैं। इन मामलों में ज्यादातर मा-बाप तब जान पाते हैं जब कोई अप्रिय घटना घट जाती है। कई मामलों को देखकर लगता है कि सोशल मीडिया बच्चों के लिए एक खतरनाक टूल बनकर सामने आया है।

सोशल मीडिया के सीमित इस्तेमाल से फायदे भी हो सकते हैं। सोशल मीडिया के सीमित इस्तेमाल से साथियों से तेज और बढिया कनेक्शन संभव है। सोशल मीडिया से जरूरी सूचना लेना या देना आसान है। सोशल मीडिया से स्टडी मटीरियल शेयर करने में सुविधा होती है। साथ ही सोशल मीडिया के स्किल्स भविष्य में मददगार हो सकते हैं। सोशल मीडिया से टेक्नोलॉजी और गैजेट्स की जानकारी हासिल करनी चाहिए। सोशल मीडिया से प्रोफाइल, डिजाइन और नेटवर्किंग स्किल सीखी जा सकती है। सोशल मीडिया से क्रिएटिव हॉबी को मंच हासिल होता है जहा तुरंत फीडबैक मिल जाता है।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आम जनता तक पहुंचने के लिए सोशल मीडिया एक असरदार जरिए के रुप में उभरा है और राजनीतिक पर्टियां भी इसका भरपूर लाभ उठा रही हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि इससे केवल फायदा ही पहुंचेगा, कई बार इससे पार्टी की छवि को भी नुकसान पहुंचता है। जाहिर है, सोशल मीडिया नाम का यह हथियार लोगों के हाथ में पहुंच चुका है और इसकी मारक क्षमता आने वाले दिनों में और बढऩी ही है। ऐसे में इसके दुरुपयोग को रोकने के इंतजाम तो हमें करने ही होंगे। दिक्कत यह है कि इस हथियार का इस्तेमाल असामाजिक तत्वों द्वारा किए जाने की जितनी आशंका है, उतना ही बड़ा खतरा राजनीतिक दलों द्वारा अपने संकीर्ण चुनावी हित में इसका अलोकतांत्रिक इस्तेमाल किए जाने का भी है।

यूनिसेफ के अनुसार 7 में से 1 भारतीय,जो कि 18 से 24 साल की उम्र में हैं, डिप्रेशन के शिकार हैं। हमारे देश में डिप्रेशन या किसी भी मेंटल हेल्थ पर बातचीत लोग आसानी से स्वीकार नहीं करते हैं और हालांकि इसके प्रति लोगों को जागरुक करने की लगातार कोशिश की जा रही है, लेकिन फिर भी इस दिशा में लोगों के मन से रूढिवादी सोच को अभी पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सका है। डिप्रेशन से ग्रसित व्यक्ति में आत्म सम्मान की कमी, संवाद में दिक्कत, एकाग्रता के अलावा खुद को नुकसान पहुंचाने के लक्षण भी नजर आते हैं। युवाओं में बढ़ते डिप्रेशन के रेट के पीछे एक कारण सोशल मीडिया पर इस उम्र के लोगों का अत्यधिक समय बिताना भी वजह मानी जाती है।

बेहद कम विषय ऐसे होंगे, जो प्रामाणिक, ज्ञानवर्धक और तार्किक कहे जा सकते हैं, लेकिन ये बड़ी कंपनियां हमारी निजता को भी बेचकर करोड़ों के मुनाफे कमा रही हैं। भारत में ओटीटी प्लेटफॉर्म और न्यूज पोर्टल आदि के लिए भी कोई जिम्मेदार संहिता नहीं है। इन पर खूब सीमाएं लांघी गई हैं। आस्थाओं के मजाक उड़ाए गए हैं और अभिव्यक्ति की पनाहगाह में छिपते रहे हैं। सर्वोच्च अदालत कह चुकी है कि अभिव्यक्ति की आजादी भी असीमित नहीं है।

आज के गतिशील दौर में लोगों को एक-दूसरे के करीब लाने में सोशल मीडिया (Social Media) बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है, परन्तु इसी सोशल मीडिया का इस्तेमाल जब हिंसा भड़काने, अफवाहें फैलाने और इसी प्रकार के अन्य देश और समाज विरोधी कार्यों के लिये होने लगता है तब समस्या होती है। सरकार ने सोशल मीडिया पर निगरानी के लिए कई कदम उठाए भी हैं। लेकिन अभी इस दिशा में काफी कुछ करना बाकी है। सोशल मीडिया के क्षेत्र में नित नई चुनौतियां उभर रही हैं।

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