Shah Comment Controversy : उपराष्ट्रपति पद के चुनावी संग्राम में अब न्यायपालिका भी केंद्र में आ गई है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के 16 पूर्व न्यायाधीशों ने एक संयुक्त बयान जारी कर गृह मंत्री की हालिया टिप्पणी को “दुर्भाग्यपूर्ण और पूर्वाग्रह से प्रेरित” बताया है। उनका कहना है कि न्यायिक निर्णयों को राजनीतिक रंग देना न केवल न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए खतरा है, बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं की गरिमा को भी कमजोर कर सकता है।
पूर्व जजों ने स्पष्ट कहा कि उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार पर की गई टिप्पणी न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करती है। बयान में कहा गया “लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत न्यायपालिका की स्वतंत्रता है। किसी भी संवैधानिक पद के चुनाव में वैचारिक मतभेद हो सकते हैं, लेकिन न्यायिक फैसलों को चुनावी हथियार बनाना लोकतांत्रिक(Shah Comment Controversy) प्रक्रिया को आहत करता है।”
यह बयान ऐसे समय आया है जब उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर राजनीतिक माहौल पहले से ही बेहद गर्म है। पूर्व जजों का यह भी मानना है कि सार्वजनिक बहस गरिमामयी होनी चाहिए और किसी भी संवैधानिक उम्मीदवार की व्यक्तिगत निष्ठा या विचारधारा को लेकर अनावश्यक विवाद नहीं खड़ा किया जाना चाहिए।
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है क्या लोकतांत्रिक राजनीति में चुनावी लाभ के लिए न्यायिक फैसलों को तराजू पर तौलना ठीक है? विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह प्रवृत्ति जारी रही तो इससे न केवल राजनीतिक विमर्श की मर्यादा गिरेगी बल्कि न्यायपालिका(Shah Comment Controversy) और जनता के बीच भरोसे की खाई भी गहरी हो सकती है।