Senmuda Alexander Stone Mine : तस्करों के हो रहे वारे न्यारे
जीवन एस साहू/नवप्रदेश/गरियाबंद/नवप्रदेश। Senmuda Alexander Stone Mine : देवभोग विकासखंड का सेनमुड़ा गांव। इसे प्रकृति ने उस नायाब तोहफे से नवाजा है, जिसकेे उपयुक्त दोहन से देवभोग क्षेत्र के साथ ही पूरे छत्तीसगढ़ का विकास सुनिश्चित है। दरअसल यहां 50 डिसमिल में कीमती पत्थर ‘अलेक्जेंडरÓ की खदान है। लेकिन अफसोस कि आज तक न तो पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने इस पर ध्यान दिया और न अब मौजूृदा सरकार ही दे पा रही है।
नतीजा ये है कि छत्तीसगढ़ की अमीर धरती के गरीब लोग आज भी अलेक्जेंडर खदान की तरह नीरस जीवन जीने को मजबूर है। विकास के मामले में इलाका आज भी प्राकृति संसाधनों से समृद्ध प्रदेश के अन्य इलाकों की तुलना में पिछड़ा हुआ है। वहीं दूसरी ओर तस्कर यहां अवैध खुदाई कर वारे न्यारे हो रहे हैं। ये स्वाभाविक भी है । आखिर खदान कोटवार के भरोसे जो है। अकेला कोटवार इसकी कैसे सुरक्षा कर सकता है। इस नजारे पर ग्रामीण कहते हैं कि सरकार एलेक्जेन्डर खदान के लिए गंभीर नहीं है। वे पत्थर तस्करों को छूट दिए जाने की बात कहने से भी नहीं चूकते। आलम ये है खदान वाली भूमि पर बड़ी मात्रा में घास पूस उग आई है।
सेनमुड़ा : 1988 से अब तक की कहानी
देवभोग क्षेत्र का ग्राम सेनमुड़ा (Senmuda Alexander Stone Mine) बेशकीमती अलेक्जेंडर पत्थर पाए जाने के कारण सन् 1988 में एकाएक चर्चा में आया। देवभोग विकासखंड से 8 किमी दूरसेनमुड़ा एक छोटा सा गाँव है, जो कि ओडिशा के धरमगढ़ मुख्यालय से लगा हुआ है। सन् 1988 में यहां के सहदेव गोड़ के 15-16 डिसमिल की खेतीहर जमीन पर एक छोटा 5-7 ग्राम वजन का पत्थर बच्चों को दिखा।
उक्त पत्थर को बच्चों ने गाँव के गजमन गोंड़ नामक 16 वर्षीय बालक से लेकर अपने घर वालों को दिखाया और इसी बीच गाँव के नरही नाम के व्यक्ति ने चमकीले पत्थर को 4 हजार रूपये में खरीद लिया। इसके बाद इस पत्थर को धरमगढ़ उड़ीसा के एक व्यापारी के पास 17 हजार रूपये में बेचने की खबर सुनते अंचल में आग की तरह फैल गई। यह खबर अखबारों के माध्यम से ओडिशा और संयुक्त मध्यप्रदेश में भी तूफानी गति से फैल गई।
दोनों राज्यों के बड़े-बड़े शहरों से लोग देवभोग के इस बहुचर्चित सेनमुड़ा (Senmuda Alexander Stone Mine) गाँव पहुँचने लगे थे और वहां पहुंचकर ग्रामीणों से गुफ्तगू और लेन-देन करने तथा कीमती पत्थर के खरीद-फरोख्त की खबरें भी चर्चा में रही। कहा जाता है कि सेनमुड़ा में कीमती रत्न बेचने-खरीदने का धंधा खूब फला-फूला। गिरफ्तारियां भी हुईं।
सितबर 88 में देवभोग के तत्कालीन थाना प्रभारी अनिल पाठक ने योजनाबद्ध तरीके से रायपुर के मीरा लॉज में देवभोग के एक व्यापारी सत्यनारायण शारदा और कॉपरेटिव बैंक के लिपिक राजेश पाण्डेय के पास से 19 टुकड़े कीमती पत्थर तथा 62 हजार रूपये से भरा एक सुटकेस बरामद किया इन दोनों आरोपियों को गिफ्तार कर न्यायालय में पेश किया गया था। देवभोग क्षेत्र में अलेक्जेंडर नाम के कीमती पत्थरों का भंडार है इस बात की पुष्टि मीरा लॉज में पुलिस द्वारा टुकडों की जांच के बाद हुई।
रूस के बाद छत्तीसगढ़ में यह पत्थर
गौरतलब है कि यह अलेक्जेंडर पत्थर विश्व में केवल रूस में मिलता है। इसके बाद छत्तीसगढ़ राज्य के अंतिम सीमा देवभोग क्षेत्र के गाँव सेनमुड़ा में पाया जाता है। वही देवभोग क्षेत्र के ग्राम लाटापारा में भी अलेक्जेंडर मिलने के संकेत के बाद पिछले 25 वर्षों से वहां के कुछ एकड़ भूमि को खनिज विभाग ने प्रतिबंधित घोषित किया है। जिसकी देखरेख गांव के कोटवार के जिम्मे है। सेनमुड़ा गांव के अलेक्जेंडर पत्थर को पेट्रोलाजी लेब द्वारा जब सही प्रमाणित किया गया, तब कलकात्ता के एक अखबार ”विश्वामित्र’ ने देवभोग क्षेत्र में बेशूमार कीमती पत्थर अलेक्जेंडर पाए जाने की खबर प्रकाशित की थी।
बाढ़ का फायदा उठाते हैं तस्कर
बारिश के दिनों में देवभोग तेल नदी में बाढ़ आने का तस्करों को बेसब्री से इंतजार रहता है। तेल नदी में बाढ़ आने के बाद रास्ते चोक हो जाते हैं तब ओडिशा के तथाकथित तस्कर धरमगढ़ और ग्राम मोटेर के रास्ते से सीधे अलेक्जेंडर खदान ग्राम सेंदमड़ा तक दो पहियों वाहनों से आसानी से पहुंचते हैं। भरोसे मंद सूत्रों के मुताबिक ये तस्कर ग्रामीणों से अवैध उत्खनन के लिए सीधे संपर्क करते हंै। सेंदमुड़ा खदान में 10-15 गांव के ग्रामीण खुदाई करते हैं। एक बार जब खुदाई शुरू हो जाती है तब पुलिस प्रशासन भी अवैध खुदाई को रोक नहीं पाते। सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर सेंदमड़ा गांव के कोटवार खदान की देखरेख करते हैं।
25 वर्ष पूर्व हुई थी जमीन की घेराबंदी
देवभोग के सेनमुड़ा (Senmuda Alexander Stone Mine) में स्थित अलेक्जेंडर पत्थर मिलने वाले 50 डिसमिल जमीन को आज से 25 वर्ष पूर्व खनिज विभाग ने 12 फीट उंचाई तक चारों ओर कांटेदार तारों से घेराबंदी करा दी थी वर्तमान समय में उक्त स्थल पर बड़े-बड़े घांस-फूस अटे पड़े है गौरतलब है कि जमीन मालिक सहदेव गोंड़ की 20 वर्ष पूर्व मौत हो चुकी है, उक्त कीमती जमीन उनकें चारों पुत्र प्यारेसिंग, बलीयारसिंग, प्यारीलाल, चिल्हरसिंग के नाम पर है, वहां चर्चा करने पर पता चला कि शासन द्वारा जमीन मालिकों को कोई मुवाआजा नही दिया गया जबकि उन्हें मुवाआजा मिलने का हक है।
हर स्तर पर होती गई तो बस राजनीति
पहले भाजपा ने किया विदेशी कंपनी का विरोध
तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा देवभोग, मैनपुर की हीरा और अलेक्जेंडर खदान को दक्षिण अफ्रीका की नामी विदेशी कंपनी डीबियर्स को देने को लेकर उस समय भाजपाइयों ने हाय-तौबा मचाया था। इसी के चलते 22 नवम्बर 1996 को गरियाबंद तहसील मुख्यालय गांधी मैदान में विदेशी कंपनी डीबियर्स को ठेके में उत्खनन का कार्य दिये जाने को लेकर भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के नेतृत्व में भाजपा नेताओं ने रैली एवं आम सभा कर विरोध जताया था। अब कांग्रेस फिर सत्ता में है और देखना दिलचस्प होगा कि क्या वो इन कीमती पत्थरों का खनन कर देवभोग का कायाकल्प कर पाएगी।
कांग्रेस ने लगाया था अवैध उत्खनन का आरोप
उल्लेखनीय है कि सेनमुड़ा में स्थित अलेक्जेंडर खदान में अवैध उत्खनन का आरोप जनवरी 2007 में विपक्षी दल कांगे्रस ने लगाया था, जिसके चलते तत्कालीन विपक्ष के नेता शहीद स्व.महेन्द्र कर्मा ने इसकी जांच के लिए तत्कालीन विपक्ष के उपनेता भूपेश बघेल के नेतृव में विधायकों की एक समिति बनाई थी। यह समिति वस्तु स्थिति का जायजा लेने जब सेंदमुड़ा गांव पहुंची तो खदान में आस-पास भारी मात्रा में अवैध उत्खनन होने की जानकारी दी थी। जिसकी रिपोर्ट विपक्ष के नेता को सौंप दी गई इसके बाद सरकार ने खादान की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए इसका कोई अता-पता नहीं है। लिहाजा स्पष्ट है कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने भी अलेक्जेंडर खदान को गंभीरता से नहीं लिया।