Site icon Navpradesh

SCO Summit Tianjin : ट्रेड वार के बीच रिश्तों की राह: चीन जा सकते हैं PM मोदी…SCO समिट में हो सकती है जिनपिंग से मुलाकात…

SCO Summit Tianjin

SCO Summit Tianjin

SCO Summit Tianjin : भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते ट्रेड वार और चीन से लंबे समय से चले आ रहे सीमा तनाव के बीच एक अहम कूटनीतिक कदम सामने आ सकता है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने के अंत में चीन के तियानजिन शहर में आयोजित होने जा रहे शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की 25वीं राज्याध्यक्ष बैठक में हिस्सा ले सकते हैं।

यह दौरा इस लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है कि गलवान घाटी की झड़प के बाद यह पहला मौका होगा जब पीएम मोदी चीनी जमीन पर SCO बैठक में शिरकत करेंगे। इससे दोनों देशों के बीच जमी बर्फ पिघलने और संवाद की राह खुलने की उम्मीद जताई जा रही है।

31 अगस्त से 1 सितम्बर तक होगा SCO समिट

31 अगस्त से 1 सितम्बर 2025 तक होने वाली इस बैठक में भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान जैसे देश भाग(SCO Summit Tianjin) लेंगे। SCO को दुनिया की 40% आबादी और 20% वैश्विक GDP का प्रतिनिधि संगठन माना जाता है।

क्या है SCO संगठन?

2001 में शंघाई, चीन में स्थापित यह संगठन क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद विरोध, आर्थिक सहयोग और सांस्कृतिक संबंधों को मज़बूत करने के लिए काम करता है। भारत 2017 में SCO का पूर्ण सदस्य बना था।

बीते साल हुई थी मोदी-जिनपिंग की मुलाकात

अक्टूबर 2024 में कजान (रूस) में ब्रिक्स समिट के दौरान मोदी-जिनपिंग की अनौपचारिक बातचीत हुई थी, जिसके बाद दोनों देशों ने LAC पर तनाव कम करने के प्रयास शुरू किए थे।

PM मोदी के पिछले चीन दौरे (टाइमलाइन):

तारीखशहरइवेंट
14-16 मई, 2015शीआन, बीजिंग, शंघाईपहली आधिकारिक यात्रा
3-5 सितम्बर, 2016हांग्जोG20 समिट
3-5 सितम्बर, 2017ज़ियामेनब्रिक्स समिट
27-28 अप्रैल, 2018वुहानअनौपचारिक शिखर बैठक
9-10 जून, 2018क़िंगदाओSCO समिट

ट्रेड वॉर का साइड एंगल क्यों अहम है?

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा टैरिफ वॉर तेज़ किए जाने के बीच भारत-चीन की संभावित मेल-मुलाकात वैश्विक व्यापार समीकरणों में एक नया संतुलन(SCO Summit Tianjin) ला सकती है।

राजनयिक जानकारों के मुताबिक, अगर मोदी और जिनपिंग की द्विपक्षीय वार्ता होती है, तो न केवल सीमा विवाद पर नई पहल हो सकती है, बल्कि दक्षिण एशिया में स्थिरता की दिशा में एक नया अध्याय भी शुरू हो सकता है।

Exit mobile version