राजेश माहेश्वरी। School Fees : लगभग दो साल तक कोरोना से जूझने के बाद देश सामान्य गति की ओर बढ़ रहा है। आर्थिक गतिविधियों के साथ अन्य क्षेत्रों में भी चहल-पहल का माहौल है। सबसे सुखद बात यह है कि दो साल के बाद नियमित तौर पर बच्चों ने स्कूल जाना शुरू किया है। फिर पहले जैसा वातावरण अपने आस-पास हमें दिखाई दे रहा है। जब सुबह स्कूल जाते बच्चों की आवाजें और शोर सुनाई देता हैं। लेकिन इस सुखद एहसास को स्कूलों की बेलगाम फीसों और अन्य खर्चों ने थोड़ा बेमजा कर दिया है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि कोरोना संकट के चलते देश की अस्सी फीसदी आबादी की आय में कमी आई। ऐसे में स्कूलों में बेलगाम बढ़ती फीस टीस ही देती है। कोरोना जैसी जानलेवा महामारी के से टूट चुके समाज और देश में बढ़ी फीस का कोई तार्किक व न्यायसंगत आधार नजर नहीं आता। दरअसल, कोरोना संकट से हुई आर्थिक क्षति के बाद जैसे-तैसे लोगों का घरेलू बजट पटरी पर लौट रहा है। लेकिन लोगों की घटी आय सामान्य अवस्था में नहीं लौटी है। सच्चाई यह है कि एक तरफ महंगाई की मार से सूबे की जनता हलकान है तो दूसरी तरफ प्राइवेट स्कूलों की मनमानी इन पर और आर्थिक संकट खड़ा कर रही।
कोरोना का प्रभाव कम होते ही देशभर में एक बार फिर स्कूल खुल चुके हैं। कुछ निजी स्कूल प्रबंधक द्वारा मनमानी फीस बढ़ोत्तरी की शिकायतें भी हैं। कोरोना काल में अभिभावकों की पहले ही कमर टूट चुकी है अब फीस बढऩे से अभिभावक परेशान हैं। इसी कड़ी में पंजाब में शिक्षा का कारोबार कर रहे स्कूलों में जहां फीस वृद्धि पर रोक लगायी गई है, वहीं वर्दी व किताबों की खरीद के विकल्प अभिभावकों को दिये गये हैं। छत्तीसगढ़ शासन ने राज्य के सभी कलेक्टरों को जिला स्तरीय फीस विनियमन समितियों का गठन करने और छत्तीसगढ़ अशासकीय विद्यालय फीस विनियमन अधिनियम-2020 के प्रविधानों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं।
प्रदेश भर में करीब सात हजार निजी स्कूल संचालित हैं। दरअसल, भारतीय समाज में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई की जो होड़ पैदा हुई है, उसका दोहन मुश्किल में अवसर तलाशने वाले चतुर लोगों ने तलाश लिया है। अभिभावकों की दुखती रग पर हाथ रखकर स्कूल संचालकों ने जेब हल्की करने के तमाम तौर-तरीके तलाश लिये हैं। वे न केवल मनमाने तरीके से फीस वसूलते हैं बल्कि किताबें व ड्रेस आदि भी तय की गई दुकानों से खरीदने को बाध्य करते हैं। जाहिरा तौर पर स्कूल संचालकों के हित इन दुकानों से जुड़े रहते हैं। निजी स्कूल फीस तो ले ही रहे हैं, इसके साथ ही डोनेशन चार्ज भी वसूला जा रहा है। हर साल दाखिले के लिए डोनेशन चार्ज लिया जा रहा है।
इसके अलावा निजी स्कूलों में ट्यूशन फीस, बस किराया के अलावा यूनिफार्म, बुक्स, स्टेशनरी, फूड, कंप्यूटर क्लास, फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता पोशाक, समर वेकेशन, सेलिब्रिटी, गेम्स ट्रेनर, स्कूल बैच, फोटोग्राफी, पेंटिंग प्रतियोगिता, टूर, आनंद मेला और कूपन के आदि के नाम पर वसूली की जा रही है। जहां किताबों की खरीद के लिए अभिभावकों को 5 से 10 हजार तक का खर्चा करना पड़ रहा वही फीस के तौर पर प्राइवेट स्कूलों में मनमानी से अभिभावक अब आर्थिक संकट का सामना करेंगे। अधिकतर अभिभावक आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं, ऐसे में मजबूरी वश उनको अपने बच्चों का दाखिला प्राइवेट स्कूलों से हटा कर सरकारी में करना पड़ रहा है।
कोरोना की दूसरी लहर में स्कूल बंद (School Fees) हैं और पढ़ाई और फीस को लेकर अभिभावक परेशान थे। कई राज्यों में फीस का मामला कोर्ट में पहुंचा था। अलग-अलग राज्य सरकारों की ओर से फीस को लेकर आदेश दिए गए जिसको लेकर कहीं स्कूल प्रशासन तो कहीं अभिभावक ही कोर्ट पहुंच गए। फीस का मामला सुप्रीम कोर्ट को निर्देश जारी करने पड़े थे। बावजूद इसके सच्चाई यह है कि इक्का-दुक्का शिक्षण संस्थानों को छोडक़र अधिकतर शिक्षण संस्थानों ने बंदी के बावजूद अभिभावकों से फीस वसूलने में कोई कोताई नहीं की। अभिभावकों ने आर्थिक परेशानी के बावजूद शिक्षण संस्थानों में अपने बच्चों के भविष्य की खातिर जैसे-तैसे करके फीस भरी।
सबसे दुखद पहलू यह है कि राज्य सरकारों के आदेशों और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद निजी शिक्षण संस्थान अपनी मनमानी पर उतारू रहे। अब चूंकि दो साल बाद नियमित तौर पर शिक्षण संस्थान खुलने जा रहे हैं, ऐसे में शिक्षण संस्थान स्कूल फीस व अन्य खर्चों के नाम पर अभिभावकों की कमर तोडऩे का काम कर रहे हैं।
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ समेत देश के तमाम शहरों से ऐसी खबरें सामने आ रही हैं कि निजी स्कूलों ने दस से बीस फीसदी तक फीस में बढ़ोत्तरी की है। हिमाचल प्रदेश के सभी जिलों में ज्यादातर स्कूलों ने कोरोना काल के बाद खुल रहे स्कूलों में दाखिला फीस 10 से 20 फीसदी बढ़ा दी जो सीधे तौर पर अभिभावकों पर दोहरी मार है। मध्यप्रदेश में स्कूल फीस का मुद्दा फिर गर्मा गया है, स्कूलों द्वारा मनमाने ढंग से फीस वसूले जाने को लेकर प्रदेश भर में अभिभावक आक्रोश व्यक्त करते रहते हैं।
वास्तव में फीस रेगुलेशन एक्ट में फीस बढ़ोत्तरी की धारा बहुत बड़ी विसंगति है। विभिन्न राज्य सरकारों ने निजी स्कूलों को हर साल फीस बढ़ाने का अधिकार दे रखा है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भले ही प्राइवेट स्कूलों में फीस वृद्धि पर रोक लगा दी हो, लेकिन इसे लागू करना आसान नहीं नजर आ रहा है। दरअसल, सीएम भगवंत मान के इस फैसले को मानने से निजी स्कूल संचालकों ने इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि हर वर्ष अधिकतम प्रतिशत फीस बढ़ाना उनका अधिकार है। निस्संदेह, फीस में वृद्धि शिक्षण संस्थाओं की जरूरतों को पूरा करने के लिये होती है, लेकिन इस वृद्धि का आधार न्यायसंगत होना चाहिए।
इसे मनमाने तरीके से बढ़ाने का अधिकार स्कूल संचालकों को नहीं दिया जा सकता। अभिभावकों के अनुसार, सरकार की नाकामी के कारण ही बिना एक दिन भी स्कूल गए बच्चों की फीस में पिछले दो वर्षों में पन्द्रह से पचास प्रतिशत तक की बढ़ोतरी की गई है। स्कूल न चलने से स्कूलों का बिजली, पानी, स्पोट्र्स, कम्प्यूटर, स्मार्ट क्लास रूम, मेंटेनेंस, सफाई आदि का खर्चा लगभग शून्य हो गया है तो फिर इन निजी स्कूलों ने किस बात की पन्द्रह से पचास प्रतिशत फीस बढ़ोतरी की है और इस बढ़ोतरी पर सरकार मौन है।
हिमाचल में फीस वसूली के मामले पर वर्ष 2014 के मानव संसाधन विकास मंत्रालय व 5 दिसम्बर 2019 के शिक्षा विभाग के दिशानिर्देशों का निजी स्कूल खुला उल्लंघन कर रहे हैं व इसको तय करने में अभिभावकों की आम सभा की भूमिका को दरकिनार कर रहे हैं। निजी स्कूल अभी भी एनुअल चार्जेज की वसूली करके एडमिशन फीस को पिछले दरवाजे से वसूल रहे हैं।
सरकार को शिक्षा (School Fees) शास्त्रियों से विमर्श करके फीस वृद्धि का फार्मूला तलाशना चाहिए, जिससे स्कूलों का उद्देश्य भी पूरा हो जाये और अभिभावकों को भी बढ़ी फीस न चुभे। लेकिन इस बात की भी पड़ताल होनी चाहिए कि स्कूल प्रबंधक अपने शिक्षकों व कर्मचारियों को मानकों के अनुरूप वेतन दे रहे हैं कि नहीं। केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर प्राइवेट स्कूलों की बढऩे वाली फीस पर अंकुश लगा कर और बढ़ोतरी में कमी कर अभिभावकों को राहत देने का काम करना चाहिए ताकि कोरोना काल में वैसे ही परेशान अभिभावकों को अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए और दिक्कतों का सामना ना करना पड़े।