रमेश सर्राफ। Sardar Vallabh Bhai Patel : भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने के कारण सरदार पटेल ने राजनीतिक इतिहास में एक गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया। उनके कठोर व्यक्तित्व में संगठन कुशलता, राजनीति सत्ता तथा राष्ट्रीय एकता के प्रति अटूट निष्ठा थी। जिस अदम्य उत्साह, असीम शक्ति से उन्होंने एकीकृत देश की प्रारम्भिक कठिनाइयों का समाधान किया। भारत की स्वतंत्रता संग्राम मे उनका महत्वपूर्ण योगदान था।
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 में गुजरात के नाडियाड में लेवा पट्टीदार जाति के एक जमींदार परिवार में हुआ था। वे अपने पिता झवेरभाई पटेल एवं माता लाड़बाई की चैथी संतान थे। सरदार पटेल ने करमसद में प्राथमिक विद्यालय और पेटलाद स्थित उच्च विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की थी। लेकिन उन्होंने अधिकांश ज्ञान स्वाध्याय से ही अर्जित किया। 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह हो गया। 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और जिला अधिवक्ता की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। जिससे उन्हें वकालत करने की अनुमति मिली।
सरदार पटेल के पांच भाई व एक बहन थी। 1908 में पटेल की (Sardar Vallabh Bhai Patel) पत्नी की मृत्यु हो गई। उस समय उनके एक पुत्र और एक पुत्री थी। इसके बाद उन्होंने विधुर जीवन व्यतीत किया। वकालत के पेशे में तरक्की करने के लिए कृतसंकल्प पटेल ने अध्ययन के लिए अगस्त 1910 में लंदन की यात्रा की। गृहमंत्री के रूप में वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) बनाया। अंग्रेजों की सेवा करने वालों में विश्वास भरकर उन्हें राजभक्ति से देशभक्ति की ओर मोड़ा। यदि सरदार पटेल कुछ वर्ष और जीवित रहते तो संभवतरू नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ वर्ष पूर्व गुजरात के नर्मदा जिले में सरदार पटेल के स्मारक का उद्घाटन किया था।
इसका नाम एकता की मूर्ति (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी) रखा गया है। यह मूर्ति स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी से दुगनी ऊंचाई 182 मीटर ऊंची बनाई गयी है। इस प्रतिमा को केवडिया के निकट साधुबेट नामक एक छोटे चट्टानी द्वीप में सरदार सरोवर बांध के सामने नर्मदा नदी के मध्य में स्थापित किया गया है। सरदार वल्लभ भाई पटेल की यह प्रतिमा दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है। सरदार पटेल की इस प्रतिमा को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनका व्यक्तित्व कितना विशाल था। सरदार यानि नेतृत्व करने का गुण तो उनमें जन्मजात था ही। संघर्षो में तपकर उनका मनोबल लौहे की तरह दृढ़ हो गया था। अपनी इसी इच्छा शक्ति व दृढ़ मनोबल के दम पर उन्होने देश की आजादी के बाद एक भारत बनाने का ऐसा मुश्किल काम कर दिखाया जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। भारत के राजनीतिक इतिहास में सरदार पटेल के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता।
देश की आजादी के संघर्ष में उन्होने जितना योगदान दिया उससे ज्यादा योगदान उन्होने स्वतंत्र भारत को एक करने में दिया। पटेल राष्ट्रीय एकता के बेजोड़ शिल्पी व नये भारत के निर्माता थे। देश के विकास में सरदार वल्लभभाई पटेल के महत्व को सैदव याद रखा जायेगा। सरदार पटेल को भारत का लौह पुरुष कहा जाता है। गृहमंत्री बनने के बाद भारतीय रियासतों के विलय की जिम्मेदारी उनको ही सौंपी गई थी। उन्होंने अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए छ: सौ छोटी- बड़ी रियासतों का भारत में विलय कराया। देशी रियासतों का विलय स्वतंत्र भारत की पहली उपलब्धि थी और निर्विवाद रूप से पटेल का इसमें विशेष योगदान था। नीतिगत दृढ़ता के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उन्हें सरदार और लौह पुरुष की उपाधि दी थी। वल्लभ भाई पटेल ने आजाद भारत को एक विशाल राष्ट्र बनाने में उल्लेखनीय योगदान दिया।
स्वतंत्र भारत के पहले तीन वर्ष सरदार पटेल देश के प्रथम उप-प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, सूचना प्रसारण मंत्री रहे। पटेल ने भारतीय संघ में उन रियासतों का विलय किया जो स्वयं में सम्प्रभुता प्राप्त थीं। उनका अलग झंडा और अलग शासक था। सरदार पटेल ने आजादी के पूर्व ही देशी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था। सरदार पटेल के प्रयास से 15 अगस्त 1947 तक हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ को छोडकर शेष भारतीय रियासतें भारत संघ में सम्मिलित हो चुकी थी।
जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध जब वहां की प्रजा ने विरोध कर दिया तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और इस प्रकार जूनागढ भी भारत में मिला लिया गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहां सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया। नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था। भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। लक्षद्वीप समूह को भारत में मिलाने में भी पटेल की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। इस क्षेत्र के लोग देश की मुख्यधारा से कटे हुए थे और उन्हें भारत की आजादी की जानकारी 15 अगस्त 1947 के कई दिनों बाद मिली।
हालांकि यह क्षेत्र पाकिस्तान के नजदीक नहीं था लेकिन पटेल को लगता था कि इस पर पाकिस्तान दावा कर सकता है। इसलिए ऐसी किसी भी स्थिति को टालने के लिए पटेल ने लक्षद्वीप में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए भारतीय नौसेना का एक जहाज भेजा। इसके कुछ घंटे बाद ही पाकिस्तानी नौसेना के जहाज लक्षद्वीप के पास मंडराते देखे गए। लेकिन वहां भारत का झंडा लहराते देख उन्हें वापस लौटना पड़ा। जब चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखा कि वे तिब्बत को चीन का अंग मान लें तो पटेल ने नेहरू से आग्रह किया कि वे तिब्बत पर चीन का प्रभुत्व कतई न स्वीकारें अन्यथा चीन भारत के लिए खतरनाक सिद्ध होगा।
जवाहरलाल नेहरू नहीं माने बस इसी भूल के कारण (Sardar Vallabh Bhai Patel) हमें चीन से पिटना पड़ा और चीन ने हमारी सीमा की भूमि पर कब्जा कर लिया। सरदार पटेल के ऐतिहासिक कार्यों में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निमाण, गांधी स्मारक निधि की स्थापना, कमला नेहरू अस्पताल की रूपरेखा आदि कार्य शामिल हैं। सरदार पटेल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अघ्यक्ष पद के तीन बार उम्मीदवार बने मगर तीनो ही बार महात्मा गांधी ने हस्तक्षेप कर पण्डित जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष बनवा दिया था।