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संघ दशहरा उद्बोधन 2023: सद्भाव उपजाता एक अध्याय

Sangh Dussehra Udbodh 2023: A chapter that produces harmony

mohan bhagvat

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव जी भागवत (mohan bhagwat) का संघ के नागपुर स्थित मुख्यालय पर प्रतिवर्ष की भांति इस बार भी उद्बोधन हुआ। देश के प्रमुख मीडिया संस्थान, राजनैतिक दल, प्रशासन, सामाजिक संगठन प्रतिवर्ष इस उद्बोधन की ओर आशा और उत्सुकता से देखते रहते हैं। इस संभाषण में बहुत से विषयों को लेकर मंथन हुआ। मणिपुर, संघ की गतिविधियां, सामाजिक समरसता, सामाजिक संपर्क, कुटुंब प्रबोधन, कोरोना की तीसरी लहर को लेकर संघ की तैयारी, पर्यावरण, स्वच्छता आदि सभी विषयों पर संघ का संक्षिप्त रोडमैप इस भाषण में दिखा।


इन सबके साथ साथ सरसंघचालक जी ने अपने संभाषण में संघ द्वारा मुस्लिमों के मध्य दो कदम बढ़ाने के प्रयत्नों का बड़ा ही संवेदनशील उल्लेख किया। उन्होंने कहा – आखिर एक ही देश में रहने वाले इतने पराए कैसे हो गए? अपना दिमाग ठंडा रखकर सबको अपना मानकर चलना पड़ेगा”। देश के सभी समुदायों के मध्य संतुलन की दृष्टि से वे बोले – अविवेक और असंतुलन नहीं होना चाहिए। उन्होंने आगे कहा – “ये नहीं मानना कि लड़ाई चल रही थी और अब सीजफायर हो गया।” संघ प्रमुख ने कहा कि यह मानिसकता सही नहीं है कि उनकी वजह से हमें नहीं मिल रहा है या उनकी वजह से हम पर अन्याय हो रहा है। उन्होंने कहा कि विक्टिम हुड की मानसिकता से काम नहीं चलेगा। कोई विक्टिम नहीं है, उन्होंने कहा कि ‘वे कहते हैं मुझे किसी बस्ती में घर नहीं मिलता, इसलिए अपनी बस्ती में ही रहना होता है। एक ही देश में रहने वाले लोग इतने पराए हो गए? स्पष्ट है कि यह सभी को सोचना है।


विगत वर्ष में संघप्रमुख द्वारा कुछ प्रतिष्ठित मुस्लिम बंधुओं से भेंट – मुलाक़ात के क्रम को बहुतेरे स्वयंसेवक भी परीक्षात्मक दृष्टि से देख रहे थे। इस मध्य यह संभाषण हम सभी भारतीयों के लिए एक पाथेय की भांति ही तो है। संघ जैसे शक्तिशाली और विश्व के विशालतम संगठन द्वारा इस प्रकार की “पहल” व “दो कदम आगे बढ़ाने” को सभी पक्षों द्वारा सकारात्मकता से स्वीकार किया जाना ही अब सह-अस्तित्व का एकमात्र मार्ग दिखता है।


वस्तुत: संघ के सरसंघचालक अपना दृष्टिकोण इस देश के प्रति वैसा ही रखे हुए हैं जैसा कि एक परिवार के मुखिया को रखना चाहिये। देश-काल-परिस्थिति के अनुसार इस देश को परमवैभव के शिखर पर ले जाने हेतु जो उचित समुचित लगेगा वो संघ करेगा। परम वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं । संघप्रमुख की बातों का ध्वन्यात्मक अर्थ यही रहता है सदा से। वे सतत हिंदू-मुस्लिम दोनों पक्षों को गुरुत्तर रूप से संबोधित करते रहे हैं। कम से कम आज के युग में तो संघप्रमुख की यही भूमिका नियत है। पिछले वर्ष ही संघ के सरसंघचालक जी ने एक साक्षात्कार में मुस्लिम बंधुओं के लिए कहा था – ”इस्लाम को कोई खतरा नहीं है, लेकिन हम बड़े हैं, हम एक समय राजा थे, हम फिर से राजा बनें…यह भाव छोडऩा पड़ेगा। उन्होने आगे यह भी कहा कि हिंदू हमारी पहचान, राष्ट्रीयता और सबको अपना मानने एवं साथ लेकर चलने की प्रवृति है और इस्लाम को देश में कोई खतरा नहीं है, लेकिन उसे ‘हम बड़े हैं का भाव छोडऩा पड़ेगा।


वस्तुत: वर्तमान के भारतीय इस्लाम में देश विरोधियों द्वारा बहुत कुछ ऐसा जोड़ा गया है जो वस्तुत: मूल इस्लाम का भाग है ही नहीं। यहीं से सारे झगड़े उपजाए जाते हैं। जैसे – गजवा ए हिंद का कोई उल्लेख कुरान मे नहीं है किंतु अशिक्षित मुस्लिम समुदाय को गजवा ए हिंद का पाठ कुरान के नाम पर पढ़ाकर अतिशय कट्टर और देशविरोधी बनाया जा रहा है। “हम भारत के राजा थे और पुन: राजा बनेंगे” का भाव इस गजवा ए हिन्द वाली हदीस से ही उत्पन्न होता है। वस्तुत: एक हदीस, सुनान अन निसाई 3175, की गलत व्याख्या करके ही गजवातुल हिंद (अरबी) या गज़वा-ए-हिंद (उर्दू) शब्द गढ़ा गया है। देवबंद ने इसका घोर विरोध किया है और इसके संदर्भ में बहुत से प्रामाणिक स्पष्टीकरण भी दिये हैं। संघ प्रमुख का भी स्पष्ट आशय है कि इन जैसे शब्दों को छोड़कर ही हम साथ साथ आगे बढ़ सकते हैं।

“हमने भारत मे आठ सदी तक राज किया है और हम यहां फिर से राज करेंगे”। “मूर्तिपूजकों को मार डालेंगे, काट डालेंगे”। “इस्लाम के अलावा कोई धर्म सच्चा नहीं है”, ऐसी बातें मूल कुरान मे है ही नहीं। ये सारा आतंकी और नफरत भरा मसाला बाद मे कट्टरपंथियों द्वारा कुरान मे जोड़ा गया है। ख्वाजा इफ्तिखार अहमद की पुस्तक, “द मीटिंग ऑफ माइंड्स: ए ब्रिजिंग इनिशिएटिव” एक ऐसी पुस्तक है जो इस्लाम की बहुत सी बातों, शंकाओं और समस्याओं का शमन करती है। इस पुस्तक की समीक्षा में मुस्लिम विचारक मोहम्मद अनस ने लिखा था कि “भारतीय मुसलमान भौगोलिक हिंदू है”।

मोहम्मद अनस ने लिखा – “आरएसएस की असंबद्धता के दर्शन और हिंदू अस्मिता के विचार से उनकी शक्ति प्राप्त होती है… वे भारत को एक दिव्य भूमि मानते हैं जहां हिंदुत्व को रहने का पहला अधिकार है।” वे पृथ्वी के इस भाग में जन्म लेने वाली प्रत्येक आत्मा को हिंदू कहते हैं।” लेखक के इस मानस को भी उन्होंने रेखांकित किया था कि – “भारतीय मुसलमान इस वास्तविकता के प्रति जागरूक हों और इस तथ्य को स्वीकार करें कि वे भौगोलिक रूप से हिंदू हैं और इस प्रकार वे इस भूमि का एक अंश हैं और उन्हें अपनी आस्था का पालन करने का पूरा अधिकार है”।

अयोध्या निर्णय को वे भारतीय इस्लाम के मार्ग में एक अत्यंत महत्वपूर्ण मोड़ मानते हैं और चाहते हैं कि भारतीय मुसलमान को इस निर्णय को एक सकारात्मक बदलाव के रूप में स्वीकार करना चाहिए। किंतु, इस प्रकार के लेखक, समीक्षक, विचारक आदि आदि को कट्टरपंथी भारतीय मुस्लिम धर्मगुरु अन्तराष्ट्रीय फंड्स के माध्यम से या धनाढ्य मुस्लिम नेताओं की शक्ति से काफिर कहकर खारिज कर देते हैं।इस पुस्तक में “हमने कहां गलती की” शीर्षक वाले अध्याय में इफ़्ितख़ार अहमद मुस्लिम समुदाय की पारंपरिक मानसिकता और धर्मनिरपेक्षता के गलत विचार में उनके अंध विश्वास पर प्रकाश डालते हैं। अहमद के अनुसार, मुस्लिम समुदाय द्वारा शेष समाजों से संवाद और चर्चा करने की अनिच्छा और एक तरफ़ा सोच के कारण ही राम मंदिर, सामान्य नागरिक संहिता, सीएए, एनआरसी, एनपीआर जैसे विषय, विवाद माने गए।


वे रथ यात्रा और अयोध्या विवाद को बड़े विस्तार से समझाने का प्रयास करते हैं। इस्तिख़ार अहमद भाजपा द्वारा अपनाई गई विभिन्न रणनीतियों और उसकी सफलता के कारणों का एक वस्तुनिष्ठ विश्लेषण देते हैं। अहमद परामर्श देते हैं कि वे अपनी मान्यताओं, विकल्पों और प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार करते हुए उन्हें समझदारी से विकसित करें और लागू करें। उनके विचार में, वर्तमान सरकार द्वारा आर्थिक, सैन्य और विदेश नीति के क्षेत्र में किया गया कार्य देश की भलाई के लिए भाजपा द्वारा किए गए उल्लेखनीय प्रयासों का प्रमाण है। वे भारत में मुस्लिम नागरिकों की खराब स्थिति के लिए कांग्रेस और उसकी तुष्टिकरण की नीति को दोषी मानते हैं। मुस्लिम समुदाय से आत्म परिक्षण का आग्रह करते हुए राष्ट्रीयता का आग्रह करते हैं। इस प्रकार इस वर्ष का संघ दशहरा उद्बोधन जो अपने सर्वसमावेशी दृष्टिकोण को प्रमुखत: समर्पित रहा, का हमें इन वैचारिक कोणों से अनुगमन करते रहना चाहिये।

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