Safed Daag: आयुर्वेद के अनुसार लीवर में कोई विकार होने पर त्वचा में किसी भी स्थान पर वर्णकों की कमी हो जाती है। इससे पित्त कम मात्रा में उत्पन्न होता है तथा त्वचा का यह विशेष स्थान सफेद दीखने लगता है।
प्रायः ल्यूकोडर्मा के दागों (Safed Daag) में किसी प्रकार की शारीरिक तकलीफ नहीं होती, लेकिन रोगी स्वयं को कुरूप-सा महसूस कर मानसिक रूप से परेशान रहता है। यह बीमारी खानदानी भी मानी जाती है। जिस कारण इस रोग में पीड़ित बच्चों की शादी भी एक समस्या बन जाती है।
आयुर्वेद में सफेद दागों (Safed Daag) को कुष्ट की तरह माना गया है। चूंकि सफेद दाग एक प्रकार की कष्टसाध्य (कठिनाई से ठीक होने वाली) बीमारी है। अतः इसे कुष्ठ के अन्दर गिना जाता है।
परन्तु कुष्ठ शब्द का अर्थ ठीक प्रकार से न समझने के कारण आम लोग इसे कुष्ठ या कोढ़ का एक प्रकार मानते हैं और इस प्रकार के रोगी से दूर रहते हैं। जबकि सफेद दागों का कोढ से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नहीं है।
ये सफेद दाग या चकत्ते कभी-कभी लालिमा लिए हुए होते हैं तथा भूरे रंग के हो जाते हैं और उन पर छोटे-छोटे दाने से निकल आते हैं। इन दानों मेंबहुत खुजली होती है। बाद में इनसे पानी जैसा रिसाव होने लगता है तथा जलन भी होती है।
जोड़ो की त्वचा श्लेष्मा झिल्ली (पतली त्वचा) पर पाये जाने वाले सफेद दागों (Safed Daag) का ठीक होना आयुर्वेद के अनुसार बहुत मुश्किल होता है। बूढे व्यक्तियों के सफेद दाग भी मुश्किल से ठीक हो पाते हैं।
Note: यह उपाय इंटरनेट के माध्यम से संकलित हैं कृपया अपने डॉक्टर से परामर्श करके ही उपाय करें ।