नीरज मनजीत। Russia-Ukraine Situation : रूस और यूक्रेन की पूर्वी सरहद पर हालात तेजी से बदल रहे हैं। पूर्वी यूक्रेन के डोनबास इलाके के दो प्रांतों–डोनेट्स्क और लुहांस्क– को रूस ने स्वतंत्र देशों का दर्जा दे दिया है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मंगलवार को मॉस्को में इस आशय के ऐतिहासिक दस्तावेज पर दस्तख़त किए। रूस के बाद सीरिया ऐसा पहला देश है, जिसने इन दोनों मुल्कों को मान्यता दी है।
इसी के साथ रूस ने डोनबास इलाके में अपनी सेनाएं भी उतार दी हैं। रूस इन्हें “शांति सेना” बता रहा है। पुतिन के इस ऐलान के बाद डोनेट्स्क और लुहांस्क के नागरिकों ने सड़कों पर आतिशबाज़ी करते हुए रूसी झंडे लहराकर जबरदस्त ख़ुशी का इज़हार किया। पुतिन ने साफ़ कह दिया है कि पूरे डोनबास पर अब रूस का कब्ज़ा है, भले ही इसे जंग का आग़ाज़ माना जाए। इधर अमेरिका और नाटो देशों ने रूस के इस क़दम की कड़ी निंदा की है।
राष्ट्रपति जो बाइडेन ने मंगलवार की आधी रात को राष्ट्र के नाम एक विशेष संदेश में रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए हैं। यूरोपीय यूनियन भी ऐसे ही प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहा है। ब्रिटेन ने इसे यूक्रेन के खि़लाफ़ खुली जंग का ऐलान माना है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने पाँच रूसी बैंकों को प्रतिबंधित कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे यूक्रेन की संप्रभुता और अखंडता का खुला उल्लंघन मानते हुए आपात बैठक बुलाई है। नाटो के महासचिव रूस को परिणाम भुगतने की चेतावनी दे रहे हैं। वैश्विक बिरादरी फि़लहाल सकते में है और परिस्थितियों का आंकलन कर रही है।
रूस के इस क़दम के विरोध में जर्मनी ने महत्वाकांक्षी गैस सप्लाई परियोजना ‘नार्ड स्ट्रीम 2’ पर रोक लगा दी है। इस परियोजना के तहत बाल्टिक सागर के नीचे बिछाई गई पाइपलाइन के जरिए रूस से जर्मनी को प्राकृतिक गैस भेजी जानी थी। यह माना जा रहा था कि रूस को इससे काफी मुनाफ़ा होता और जर्मनी, फ्रांस तथा कुछ और यूरोपीय देशों को उनकी जरूरत की गैस का एक बड़ा हिस्सा मिलता। वैसे “नार्ड स्ट्रीम 1” प्रोजेक्ट के जरिए रूस यूरोप को गैस भेजता रहेगा।
पर दूसरी परियोजना के रुकने से रूस को काफी नुक़सान होगा और यूरोपीय देशों को भी महंगी गैस खऱीदनी पड़ेगी या ऊर्जा के दूसरे स्रोत तलाशने होंगे। रूस यूरोपीय देशों को कच्चा तेल भी भेजता है। बदले हुए हालात में अब इन देशों में पेट्रोल डीजल की किल्लत भी हो सकती है। जर्मनी और फ्रांस नाटो के मुखर सदस्य हैं और उन्होंने रूस-यूक्रेन के तनाव को कम करने के लिए काफी कूटनीतिक प्रयास भी किए हैं, पर नतीजा कुछ भी नहीं निकला।
2014-15 में जर्मनी और फ्रांस ने ही मध्यस्थता करके रूस और यूक्रेन (Russia-Ukraine Situation) के बीच “मिन्स्क समझौता” करवाया था। दरअसल 2014 में रूस ने हमला करके यूक्रेन के प्राय:द्वीप क्रीमिया को अपने साथ मिला लिया था। रूस का कहना था कि क्रीमिया में रूसी लोगों की बहुलता है, इसलिए उनकी हिफ़ाज़त करना उसकी जिम्मेदारी है। बाद में क्रीमिया में रायशुमारी की गई तो 98 फ़ीसदी वासियों ने रूस के पक्ष में वोट दिया था। उस वक़्त भी रूस की आर्मी डोनेट्स्क और लुहांस्क को अपने कब्ज़े में लेना चाहती थीं, पर जर्मनी और फ्रांस ने मिन्स्क समझौते के तहत युद्ध रुकवा दिया था।
इस समझौते के मुताबिक यूक्रेन ने डोनेट्स्क और लुहांस्क को स्वायत्त क्षेत्र का दजऱ्ा दे दिया था। अब जब रूस ने एक बार फिर डोनेट्स्क और लुहांस्क पर कब्ज़ा कर लिया है, तो अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र कह रहे हैं कि रूस ने मिन्स्क समझौते के टुकड़े कर दिए हैं। अमेरिका और नाटो देशों की ऐसी प्रतिक्रिया का रूस पर कोई असर पड़ा हो, ऐसा नहीं दिखता। उल्टे रूसी संसद ने पुतिन को अधिकार दे दिए हैं कि वे रूस के बाहर अपनी “शांति सेना” का इस्तेमाल कर सकते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और मिन्स्क समझौते को तोडऩे के इल्ज़ामों को लेकर भी पुतिन प्रशासन फि़क्रमंद नहीं दिखता। पुतिन तो अमेरिका और नाटो पर वादा तोडऩे का आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका और नाटो ने रूस से वादा किया था कि वे अब नाटो का विस्तार नहीं करेंगे, पर यूक्रेन को नाटो में शामिल करने की जि़द पकड़कर अमेरिका ही समझौता तोड़ रहा है।
सच कहा जाए तो रूस की चिंताएं ग़ैरवाजिब नहीं हैं। 2004 में अमेरिका ने रूस के आसपास के देशों–बुल्गारिया, एस्टोनिया, लाटाविया, लिथुनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवानिया–को नाटो में शामिल कर लिया है। मतलब साफ़ है कि रूस की घेरेबंदी कर दी गई थी। पर ये देश रूस के प्रति शत्रुता का भाव नहीं रखते। जबकि यूक्रेन से रूस (Russia-Ukraine Situation) की पुरानी शत्रुता है और बीते एक दशक से इनके बीच युद्ध छिड़ा हुआ है। इसलिए रूस कतई नहीं चाहता कि यूक्रेन नाटो में शामिल होकर उसकी छाती में मूंग दलता फिरे।
2004 में तो अमेरिका की इस हरकत पर रूस खून के घूँट पीकर चुप रह गया था, किंतु आज रूस पहले जैसा कमज़ोर और टूटा हुआ देश नहीं रह गया है। पुतिन ने रूस का खोया आत्मविश्वास लौटाकर उसे अंदर से काफी मजबूत कर दिया है। रूस की आर्थिक हालत भी काफी सुधर गई है और पुतिन अब रूस को उसकी “महाशक्ति होने की हैसियत” वापस दिलाने के लिए प्रतिबद्ध और दृढ़संकल्प दिखाई पड़ रहे हैं।