Rhetoric Leaders : जब भी कोई चुनाव पास आता है बयानवीर नेताओं की फौज सामने आ जाती है और वे आपस में जुबानी जंग लडऩे लगते है। मानो विवादास्पद बयान देकर ही वे चुनाव जीत जाएंगे। हालांकि ऐसा होता नहीं है इन बड़बोले नेताओं के कारण उनकी पार्टी को ही नुकसान उठाना पड़ता है। इसके बावजूद ये बयानवार बाज नहीं आते।
गुजरात में आम आदमी पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Rhetoric Leader) को नीच कहकर नया विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होने और भी कई आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया है। उस नेता के इस निम्नस्तरीय बयान का आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं ने बचाव किया है। जाहिर है उन्होने ऐसा बयान पार्टी हाई कमान की सहमती से ही दिया है।
दरअसल आम आदमी पार्टी गुजरात में अपनी पूरी ताकत झोंक रही है लेकिन उसे वंाछित सफलता नहीं मिल पा रही है। इसी बौखलाहट में उसके नेता अनाप शनाप बयान बाजी कर के खिसियानी बिल्ली खम्बा नोंचे वाली कहावत को चरितार्थ कर रहे है। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी के एक बड़े नेता ने भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नीच कहा था। जिसकी कीमत कांग्रेस को चुकानी पड़ी और गुजरात में उसे लोकसभा की एक भी सीट नसीब नहीं हुई। हालांकि पार्टी हाईकमान ने उस नेता को कुछ दिनों के लिए निलंबित कर दिया था, बाद में उसकी बहाली हो गई।
अब एक बार फिर आम आदमी पार्टी के नेता ने प्रधानमंत्री के प्रति ऐसे अपमानजनक शब्द का उपयोग किया है जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुद्दा बना दिया है। गुजरात प्रवास के दौरान उन्होने वे तमाम गालियां गिना डाली जो उन्हे विपक्ष के नेताओं ने दी थी। वैसे तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ऐसे अपशब्दों की परवाह नहीं करते, वे तो गालियों को गहना समझते है। यह बात विपक्ष के नेताओं को समझनी चाहिए कि गाली-गलौच की भाषा बोलकर वे आसमान पर थूकने की कोशिश कर रहे है। ये वहीं नेता है जो विवादास्पद बयानबाजी करके माहौल को खराब करते है और जब उन्हे चुनाव में इसकी कीमत चुकानी पड़ती है तो वे ईवीएम को लेकर विधवा विलाप करने लगते है।
चुनाव के दौरान एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने में कोई हर्ज नहीं है लेकिन मर्यादा की सीमा नहीं लांघनी चाहिए क्योंकि शालीनता छोडऩे वाले नेताओं को जनता कतई पसंद नहीं करती और चुनाव में उन्हे शिकस्त देकर उन्हे उनके किए की सजा दे देती है। चूंकि आपत्तिजनक बयानबाजी को रोकने में चुनाव आयोग भी अक्षम है इसलिए ऐसे बयानवीर नेताओं के हौसले बुलंद रहते है। पार्टी आलाकमान भी उनका अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन करती है। यह लोकतंत्र की मर्यादा का उल्लंघन है। राजनीतिक पार्टियों को इससे बचना चाहिए वरना उन्हे जनता तो (Rhetoric Leader) सबक सिख ही देगी।