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Revolutionary Ideology : भगत-सुखदेव-राजगुरु की आहूति

Revolutionary Ideology: The sacrifice of Bhagat-Sukhdev-Rajguru

Revolutionary Ideology

Revolutionary Ideology : कुछ लोग थे जो वक्त के सांचे में ढल गए, कुछ लोग थे जो वक्त के सांचे बदल गए, वक्त के सांचे को बदलने की हिमाकत वे लोग ही कर सकते हैं जिनके भीतर क्रांतिकारी विचारधारा होती है। ऐसे ही विशेष लोगों में महान क्रांतिकारी भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर का नाम अग्रिम पंक्ति में दर्ज है।

भारत मां के त्रिदेव तुल्य इन तीनों सपूतों को फिरंगियों ने 23 मार्च 1931 को फांसी दी थी। ब्रिटिश हुकूमत के चंगुल से भारत को आजाद कराने का जो बिगुल इन युवा क्रांतिकारियों ने फूंका था, उसकी ध्वनि मात्र से अंग्रेजों की रूह कांप उठी थी। कायर डरपोक फिरंगियों द्वारा दी गई फांसी इन वीरों के जिस्म से जान तो निकाल गई पर देशवासियों के हृदय में देशभक्ति की ऐसी ज्वाला जला गई जो कि अनंत काल तक धधकते हुए अबूझ ही रहेगी।

असाधारण स्वतंत्रता सेनानी

भारत के युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बने इन तीनों क्रांतिकारियों (Revolutionary Ideology) ने अपने जीवन के चौबीस बसंत ही देखे थे?। ऐसी छोटी उम्र में भी बड़े कारनामे करने के लिए अटूट हौसला का बीज युवाओं के भीतर वे बो गए। भगत सिंह का नारा था ‘इंकलाब जिंदाबाद’ जो कि क्रांतिकारियों के साथ साथ देशवासियों के रोम रोम में समाया हुआ था। असाधारण स्वतंत्रता सेनानी की संज्ञा से नवाजे गए भगत और उनके साथियों की जीवन शैली से यही संदेश मिलता है ‘जब तक हौसला नहीं होगा एक भी फैसला नहीं होगा’।

लाजपत राय की मौत से बौखलाए

अंग्रेज पुलिस की बर्बर पिटाई से स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय की हुई असामयिक मौत ने इन्हें झकझोर दिया था। इस अमानवीय घटना से बौखलाए तीनों युवा क्रांतिकारियों की भुजाएं लालाजी की मौत का बदला लेने के लिए फडफ़ड़ा उठी थी। तब 19 दिसंबर 1928 को इन्होंने लाहौर में अंग्रेज पुलिस अधीक्षक जे.पी. सांडर्स को गोलियों से भून डाला था। इससे तिलमिलाए अंग्रेजों ने इन तीनों को गिरफ्तार कर लिया।

जेल के भीतर भी मातृभूमि की रक्षा की इनकी इच्छा शक्ति, दृढ़ संकल्प का दमन ब्रिटिश हुकूमत नहीं कर सकी। अंतत: देशद्रोह और हत्या के मुकदमे में इन्हें फांसी देने का फैसला किया गया। यह मुकदमा आज़ाद भारत की लड़ाई के इतिहास में लाहौर षड्यंत्र के नाम से दर्ज है। इन क्रांति वीरों को फांसी देने की तारीख 24 मार्च 1931तय की गई थी, किंतु जंगल की आग की तरफ फैली इस ख़बर ने देश में कोहराम मचा डाला। इससे बड़े जनाक्रोश की आशंकाओं से भयभीत अंग्रेज हुकूमत ने मनमनी करते हुए एक दिन पहले अर्थात 23 मार्च को ही इन्हें लाहौर जेल में फांसी पर लटका दिया था।

मौत की घड़ी में मोहक मुस्कान

फांसी की घड़ी में मौत सामने खड़ी थी,पर इन क्रांतिकारियों के चेहरे पर मुस्कान बिखरी हुई थी। चेहरे का भाव ऐसा था मानो वे मौत की गोद में नहीं मां भारती की गोद में खेलने जा रहे हों। इंक्यानबे वर्ष पूर्व 23 मार्च 1931 का काला दिन देशवासियों को धर धर रुला गया था,पर इतिहास बताता है कि देशहित में प्राण न्योछावर करने वाले भगत सिंह फांसी पर चढऩे के पूर्व तक फांसी से बेखौफ इत्मीनान से लेनिन की जीवन गाथा पढऩे में लीन थे। अंतिम घड़ी में अपनी अंतिम इच्छा बताते हुए उन्होंने कहा था कि मुझे पूरी किताब को पढऩे का समय दिया जाए। ऐसे अदम्य साहस के धनी भगत सिंह ने ‘ब्रिटिश साम्राज्य का सर्वनाश हो’ की आवाज को बुलंद किया और हंसते हंसते इन क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहूति देश की आजादी के लिए दे दी।

छात्र भगत की देशभक्ति

छात्र जीवन से ही भगत सिंह में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। उनके स्कूली जीवन की घटना है। एक बार कक्षा में परीक्षण के लिए एजुकेशन इंस्पेक्टर आया हुआ था। उनके सम्मान में सभी विद्यार्थी खड़े हुए किंतु भगत सिंह उनके आगमन से बेखबर किसी विचार मुद्रा में लीन अपने स्थान पर ही बैठे रहे। उन्हें देखकर एजुकेशन इंस्पेक्टर ने पूछा- तुम किस विचार में खोए हुए बैठे हो बेटा? जवाब में भगत सिंह ने कहा कि मैं देश की आजादी के बारे में सोच रहा था।

भगत सिंह के जवाब से इंस्पेक्टर प्रभावित तो हुआ पर उसने कहा- आज़ादी इतनी आसानी से नहीं मिल सकती जितना तुम सोच समझ रहे हो। इतना सुनते ही भगत सिंह मुट्ठी बांधकर खड़े हो गए और आत्मविश्वास से भरे लहजे में बोले – जनाब कोई भी बड़ी उपलब्धि को हासिल करना आसान नहीं होता, पर दृढ़ इच्छाशक्ति के बदौलत उसे आसानी से हासिल किया जा सकता है। एक न एक दिन अपने देश कोआज़ाद करवा कर ही मैं दम लूंगा।भगत सिंह के विश्वास को देखते हुए इंस्पेक्टर ने कहा- शाबाश बेटे तुम्हें आज़ादी की कीमत और अर्जित करने की कला मालूम है।

क्रांतिकारियों (Revolutionary Ideology) की ऐसी अटूट इच्छा शक्ति और देशभक्ति के आगे अंग्रेजों की हार हुई। वीर सपूतों के बलिदान से मिली आजादी अब भारत का आत्म परिचय है। इसे अजर अमर बनाए रखने की जवाबदारी आजाद भारत के आजाद नागरिकों की है।

विजय मिश्रा अमित
पूर्व अति.महाप्रबंधक (जन) छग पावर कम्पनी

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