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Religion News : क्यों कहा जाता है यमराज को धर्मराज, बताया अंतर्राष्ट्रीय ज्योतिषी डॉ. देवव्रत ने

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रायपुर, नवप्रदेश : आखिर यमराज को धर्मराज (Religion News) क्यों कहा जाता है, अंतर्राष्ट्रीय ज्योतिषी एवं वास्तु विशेषज्ञ डा देबब्रत गुरुजी के अनुसार प्राणी की मृत्यु या अंत को लाने वाले देवता यम हैं। यमलोक के स्वामी होने के कारण ये यमराज कहलाए। चूंकि मृत्यु से सब डरते हैं, इसलिए यमराज से भी सब डरने लगे जीवित प्राणी का जब अपना काम पूरा हो जाता है, तब मृत्यु के समय शरीर में से प्राण खींच लिए जाते हैं, ताकि प्राणी फिर नया शरीर प्राप्त कर नए सिरे से जीवन प्रारंभ कर सके।

यमराज सूर्य के पुत्र हैं और उनकी माता का नाम संज्ञा है। उनका वाहन भैंसा और संदेशवाहक पक्षी कबूतर, उल्लू और कौवा भी माना जाता है।

उनका अचूक हथियार गदा है। यमराज अपने हाथ के कालसूत्र या कालपाश की बदौलत जीव के शरीर से प्राण निकाल लेते हैं। यमपुरी यमराज की नगरी है, जिसके दो महाभयंकर चार आंखों वाले कुत्ते पहरेदार हैं।

यमराज (Religion News) अपने सिंहासन पर न्यायमूर्ति की तरह बैठकर विचार भवन कालीची में मृतात्माओं को एक-एक कर बुलवाते हैं, जहां चित्रगुप्त सब प्राणियों की बही खोलकर लेखा-जोखा प्रस्तुत करते हैं। कर्मों को ध्यान में रखकर यमराज अपना फैसला देते हैं, क्योंकि वे जीवों के शुभाशुभ कर्मों के निर्णायक हैं।

यमराज (Religion News) की यूं तो कई पत्नियां थीं, लेकिन उनमें सुशीला, विजया और हेमनाल अधिक जानी जाती हैं। उनके पुत्रों में धर्मराज युधिष्ठिर को सभी जानते हैं।

न्याय के पक्ष में फैसला देने के गुणों के कारण ही यमराज और युधिष्ठिर जगत में धर्मराज के नाम से जाने जाते हैं यम द्वितीया के अवसर पर जिस दिन भाई-बहन का त्योहार भैया-दूज मनाया जाता है। यम और यमुना की पूजा का विधान बनाया गया हैं। उल्लेखनीय है कि यमुना नदी को यमराज की बहन माना जाता है।

भौमवारी चतुर्दशी को यमतीर्थ के दर्शन कर सब पापों से छुटकारा मिल जाए, उसके लिए प्राचीन काल में यमराज ने यमतीर्थ में (संकटाघाट) कठोर तपस्या करके भक्तों को सिद्धि प्रदान करने वाले यमेश्वर और यमादित्य मंदिरों की स्थापना की थी।

यम द्वितीया को यहां मेला लगता है। इन मंदिरों को प्रणाम करने वाले एवं यमतीर्थ में स्नान करने वाले मनुष्यों को नारकीय यातनाओं को न तो भोगना पड़ता है और न ही यमलोक देखना पड़ता है।

इसके अलावा मान्यता तो यहां तक है कि यमतीर्थ में श्राद्ध करके, यमेश्वर 1. का पूजन करने और यमादित्य को प्रणाम करके व्यक्ति अपने पितृ-ऋण से भी उऋण हो सकता है।

श्राद्धं कृत्वा यमे तीर्थे पूजयित्वा यमेश्वरम्।
यमादित्यं नमस्कृत्य पितृणामनृणो भवेत्॥

दीपावली से पूर्व दिन यमदीप देकर तथा दूसरे पर्वों पर यमराज की आराधना करके मनुष्य उनकी कृपा प्राप्त करने के उपाय करता है।

पुराणों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि किसी समय माण्डव ऋषि ने कुपित होकर यमराज को मनुष्य के रूप में जन्म लेने का शाप दिया। इसके कारण यमराज ने ही दासी पुत्र के रूप में धृतराष्ट्र तथा पाण्डु के भाई होकर जन्म लिया।

यूं तो यमराज परम धार्मिक और भगवद् भक्त है। मनुष्य जन्म लेकर भी वे भगवान् के परम भक्त तथा धर्म-परायण ही बने रहे।

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