राजेश माहेश्वरी। Relief to The Public : केंद्र सरकार ने पिछले दिनों पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क घटाकर जनता को मंहगाई से राहत देने की ओर एक कदम बढ़ाया है। असल में देश में खुदरा महंगाई अप्रैल में बढ़कर आठ साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई थी। इस दौरान थोक महंगाई भी बढ़कर 17 साल के उच्च स्तर के पहुंच गई। निस्संदेह पिछले आठ साल की सबसे अधिक खुदरा व नौ साल की सर्वधिक थोक मुद्रास्फीति झेल रही जनता को इससे कुछ न कुछ राहत अवश्य मिलेगी।
इससे जहां मालभाड़ा कम होगा, वहीं खाद्य महंगाई में कुछ कमी की भी उम्मीद जगी है। ऐसे में अब राज्यों पर दवाब है कि वो भी वैट कम करे ताकि लोगों को और राहत मिल सके। बाजार विशेषज्ञों की मानें तो आने वाले दिनों में ऐसे और कई कदम उठाए जा सकते हैं। सरकार खाद्य तेल और इंडस्ट्रीज में काम आने वाले कच्चे माल पर आयात शुल्क कम करने पर विचार कर रही है। वास्तव में इस साल कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले आसमान छूती महंगाई मोदी सरकार के लिए एक बड़ा सिरदर्द बन गई थी।
दरअसल, देश के केंद्रीय बैंक ने भी संकेत दे दिये थे कि पेट्रो उत्पादों की कीमत में कमी के बिना महज मौद्रिक उपायों से महंगाई पर काबू पाना मुश्किल होगा। और आखिरकार भारत सरकार को देश की जनता के दर्द और गुस्से के सामने झुकना ही पड़ा। यही लोकतंत्र की ताकत है। पेट्रोल 9.5 रुपए और डीजल 7 रुपए प्रति लीटर सस्ते किए गए हैं। सरकार ने पेट्रोल पर 8 रुपए और डीजल पर 6 रुपए प्रति लीटर उत्पाद शुल्क कम किया है। नवंबर, 2021 में चुनावों की घोषणा के मौके पर भी केंद्रीय टैक्स कम किया गया था।
कुल टैक्स कम करने से पेट्रोल पदार्थ कोरोना महामारी (Relief to The Public) से पहले वाले स्तर पर आ गए हैं। डीजल का दाम घटने से किसानों को बड़ी राहत मिलेगी। जानकारों का कहना है कि खरीफ का सीजन आने वाला है। जिसमें धान की रोपाई के लिए खेत की अच्छे से जोताई करनी पड़ती है। इसमें किसानों को घंटों तक ट्रैक्टर चलाना मजबूरी हो जाता है। डीजल के दाम में इजाफा होने से उनकी लागत बढ़ रही थी, लेकिन एक्साइज ड्यूटी कम होने से उन्हें काफी राहत मिलेगी और प्रति लीटर बचत से उनकी लागत घट जाएगी। इस फैसले से छोटे-बड़े किसानों को काफी राहत मिलने वाली है।
इतना ही नहीं करीब 9 करोड़ उज्ज्वला गैस लाभार्थियों को भी साल में बारह सिलेंडरों पर प्रति सिलेंडर दो सौ रुपये की छूट देने की भी घोषणा की है। यह जरूरी भी था, क्योंकि 90 लाख से ज्यादा उज्ज्वला लाभार्थियों ने पहला सिलेंडर ही नहीं भरवाया था। यह आंकड़ा सरकार के पास होगा। खासतौर पर इसका फायदा रूरल एरिया के उज्जवला कनेक्शन लेने वाले एलपीजी कंज्यूमर्स को होगा।
वहीं डीजल का रेट कम होने के साथ ही खाद्य पदार्थों जैसे फल, सब्जी, तेल आदि के ट्रांसपोर्टेशन चार्ज कम होने पर इनके रेट में भी कमी आएगी। बीते साल नवंबर में भी केंद्र सरकार ने पेट्रोल व डीजल पर उत्पाद शुल्क घटाया था। उसके बाद भाजपा व एनडीए शासित राज्यों ने भी पेट्रो उत्पादों पर से वैट घटाया था। लेकिन विपक्ष शासित राज्यों ने इसका अनुकरण नहीं किया। इस बार केंद्र सरकार द्वारा की गई कटौती के बाद राजस्थान, ओडिशा व केरल ने अपने राज्यों के लोगों को राहत देने का प्रयास किया है।
बेशक तेल पर उत्पाद शुल्क कम करने से सरकार का राजस्व करीब एक लाख करोड़ रुपए कम हो जाएगा और उज्ज्वला सबसिडी के कारण भी 6100 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ सरकार पर पड़ेगा, लेकिन महंगाई और मुद्रास्फीति को कम करने के लिए आम आदमी को यह राहत देना बेहद जरूरी था। इसके अंजाम कुछ भी हो सकते थे। औसत घर का बजट बिगड़ चुका था। जनता लगातार महंगे होते तेल और ईंधन गैस की मार झेलते हुए गुस्साने भी लगी थी। बीते कुछ दिनों में शीर्ष स्तर पर बैठकें की जा रही थीं और प्रधानमंत्री मोदी ने भी हस्तक्षेप किया कि पेट्रोल, डीजल, गैस को कुछ सस्ता किया जाए।
भारतीय रिजर्व बैंक ने भी अनुशंसा की थी कि सरकार अपने हिस्से के उत्पाद शुल्क को घटाए, क्योंकि मालभाड़ा भी एक साल के अंतराल में 20 फीसदी से अधिक बढ़ चुका था, नतीजतन रोजमर्रा की बुनियादी चीजें भी महंगी हो रही थीं। थोक मूल्य सूचकांक और खुदरा महंगाई दर अपने उच्चतम स्तर पर हैं, लिहाजा सरकार को यह फैसला लेना पड़ा। यकीनन भारत सरकार का यह संवेदनशील फैसला है।
अब पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क 19.90 रुपए और डीजल पर 15.80 रुपए प्रति लीटर होगा। बेशक 2014 की तुलना में यह टैक्स भी काफी ज्यादा है, लेकिन बीते 8 सालों के दौरान अर्थव्यवस्था ने भी कई करवटें ली हैं। वैसे बीते 3 सालों के दौरान सरकार ने तेल पर उत्पाद शुल्क से 8 लाख करोड़ रुपए से अधिक कमाए हैं। यह खुद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की स्वीकारोक्ति है। 2014 से आज तक सरकार इस टैक्स के जरिए 26-27 लाख करोड़ रुपए वसूल चुकी है।
बहरहाल सरकार की कर-व्यवस्था पर ज्यादा सवाल नहीं किए जाने चाहिए, क्योंकि वही पैसा देश के आधारभूत ढांचे, विकास और जन कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च किया जाता रहा है, लेकिन टैक्स विवेकसम्मत हो, तो आम आदमी की कमर नहीं टूटती। अर्थशास्त्रियों का भी मानना है कि उत्पाद शुल्क कुछ और कम किया जा सकता है। यदि इसे 14 रुपए और 10 रुपए कर दिया जाए, तो सरकार को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं होगा। अलबत्ता तेल जरूर सस्ता हो जाएगा और आम उपभोक्ता को राहत मिलेगी। केंद्र सरकार के इस फैसले के अनुपात में ही राज्य सरकारें अपना वैट या टैक्स कम करें, तो आम आदमी को तेल बहुत सस्ता मुहैया कराया जा सकेगा।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि महंगाई बढ़ाने (Relief to The Public) में रूस-यूक्रेन युद्ध की सबसे बड़ी भूमिका है। इससे वैश्विक बाजार में न सिर्फ कच्चे तेल और कमोडिटी की कीमतें बढ़ी हैं बल्कि उत्पादन लागत पर भी असर पड़ा है। केंद्र सरकार उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए पूरी तरह से महंगाई को कम करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। सरकार का अनुमान है कि खाद सब्सिडी देने के लिए अतिरिक्त 500 अरब रुपये की आवश्यकता होगी। हाल ही में एसबीआई ने भी एक रिपोर्ट में कहा था कि देश में महंगाई बढ़ाने में 59 फीसदी भूमिका यूक्रेन युद्ध की है।