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सत्ता के विकेंद्रीकरण के पक्षधर थे राजीव गांधी

Rajiv Gandhi was in favor of decentralization of power

 – डॉ. संजय शुक्ला

                 भारत में कम्प्यूटर क्रांति के जनक स्व. राजीव गांधी ने उन्नीसवीं सदी में ही इक्कीसवीं सदी के आधुनिक भारत का सपना देख लिया था। निःसंदेह राजीव गांधी युवाओं के सबसे लोकप्रिय नेता थे जिन्होंने युवा भारत की कल्पना की थी। उनका विचार था कि “भारत एक प्राचीन देश लेकिन युवा राष्ट्र है मैं जवान हूँ और मेरा भी सपना है कि भारत को मजबूत, स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और दुनिया के सभी देशों में से प्रथम रैंक में लाना और मानव जाति की सेवा करना।” महज चालीस साल के उम्र में देश के प्रधानमंत्री का ओहदा संभालने वाले राजीव गांधी में आधुनिकता के साथ प्राचीन परंपराओं के साथ बेहतर तालमेल की कार्यशैली परिलक्षित होती थी।

राजीव गांधी के सरकार द्वारा लिए गए फैसलों का साकार रूप आज के भारत में दृष्टिगोचर हो रहा है। दूरसंचार, कम्प्यूटर, सूचना प्रौद्योगिकी से लेकर त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था उन्हीं के सरकार की देन है। इस दौर में आर्थिक उदारीकरण की जहां शुरुआत हुयी वहीं युवाओं को 18 वर्ष में मताधिकार और स्थानीय शासन और पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देकर युवाओं और महिलाओं को सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम भी उठाए गए। दलबदल कानून बनाकर जहाँ उन्होंने राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार और अवसरवादिता पर नकेल कसने का प्रयास किया वहीं पंजाब समझौता, असम समझौता और मिजोरम समझौते ने भारत में वर्षों से जारी उग्रवाद और अलगाववाद की आग को बुझा दिया और इन राज्यों में शांति कायम हुयी।

देश में सांप्रदायिक सौहार्द स्थापित कर एकता और अखंडता कायम कर समाज के अंतिम व्यक्ति को विकास की मुख्यधारा में लाने का प्रयास उनके प्राथमिकताओं में था। राजीव गांधी के ही दौर में ही भारत का अनेक देशों के साथ कूटनीतिक संबंध सुधारने का प्रयास आरंभ हुआ जिसने वैश्विक मंच में भारत की अहमियत को स्वीकार्यता को स्थापित किया।पूंजीवाद परस्त आज की राजनीतिक व्यवस्था में राजीव गांधी किसानों, गरीबों, मजदूरों, महिलाओं और युवाओं को युुवाओं को अपने विचारों के केंद्र में रखते थे।  सही अर्थों में वे भ्रष्टाचार मुक्त और पारदर्शी राजनीति के पक्षधर थे। 

          गौरतलब है कि राजीव एक सरल स्वभाव के उदार व्यक्ति थे उनकी रूचि राजनीति में नहीं थी लेकिन प्रारब्ध को कुछ और ही मंजूर था। राजीव के छोटे भाई और गांधी परिवार के राजनीतिक विरासत के उत्तराधिकारी संजय गांधी के असामयिक निधन के बाद अपनी माँ श्रीमती इंदिरा गांधी को संबल और सहयोग देने के लिए आखिरकार उन्हें राजनीति में उतरना पड़ा। यदि राजीव गांधी के महज दस वर्षों के राजनीतिक जीवन के सफर पर नजर डालें तो वे इस दौरान निजी रूप से राजनीतिक छल-प्रपंच से दूर राजनीति में शुचिता, जवाबदेही और नैतिकता के प्रबल पक्षधर नजर आए।

बहरहाल 1981 में उत्तरप्रदेश के अमेठी संसदीय सीट से निर्वाचित होकर राजीव ने अपनी संसदीय राजनीति की शुरुआत की इसी साल उन्हें अखिल भारतीय युवा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया बाद में वे कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव बने। वक्त ने फिर करवट ली और 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नृशंस हत्या के बाद उन्हें प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया। राजीव गांधी के नेतृत्व में 1984 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी को लोकसभा के 533 सीटों में से 404 सीटों पर ऐतिहासिक जीत मिली।

            राजीव गांधी 31 अक्टूबर 1984 से 1 दिसम्बर 1989 तक देश के प्रधानमंत्री रहे, इस कार्यकाल में उन्होंने अनेक अहम फैसले लिए जिसमें कुछ फैसलों में सराहना मिली तो कुछ में आलोचना भी हुई। सूचना क्रांति के आज के भारत की बुनियाद राजीव गांधी ने ही रखी थी, उनका मानना था कि विज्ञान और तकनीक से ही देश का आर्थिक और औद्योगिक विकास हो सकता है। देश में पहले कम्प्यूटर आम लोगों की पहुँच से दूर थे मगर राजीव ने अपने वैज्ञानिक मित्र सैम पित्रोदा से मिलकर देश में कंप्यूटर क्रांति लाने की दिशा में पुरजोर काम किया।

भारतीय रेलवे सहित अनेक संस्थानों में कम्प्यूटरीकरण व्यवस्था राजीव गांधी के दौर से ही आरंभ हुआ था लेकिन तब उनके राजनीतिक विरोधियों ने उनकी खूब आलोचना की थी। आधुनिक भारत में देशवासियों की सूचना प्रौद्योगिकी और कम्प्यूटर पर बढती निर्भरता ने साबित कर दिया है कि राजीव सही थे। आज जिस डिजीटल इंडिया की चर्चा है दरअसल इसकी बुनियाद राजीव गांधी ने ही रखी थी। इसी तरह देश में दूरसंचार सुविधाओं की पहुँच महानगरों से गांवों तक सुलभ कराने के उद्देश्य से 1984 में “सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स” (सी-डाॅट) और एमटीएनएल की स्थापना हुयी। इस पहल से शहरों, कस्बों से गांवों तक दूरसंचार का जाल बिछना शुरू हुआ और जगह – जगह टेलीफोन पीसीओ खुलने लगे जिससे आम लोगों का आसान संपर्क देश और दुनिया से होने लगा। 

     महात्मा गांधी के पंचायती राज व्यवस्था के अवधारणा को सुनिश्चित करने के लिए राजीव गांधी ने पुरजोर प्रयास किया, उनका मानना था कि जब तक पंचायती राज व्यवस्था मजबूत नहीं होगी तब तक गांवों तक लोकतंत्र की पहुँच नहीं हो सकती। उनके प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में तैयार विधेयक के आधार पर ही नरसिम्हा राव सरकार ने 73 वां संविधान संशोधन कर त्रि – स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को आर्थिक और प्रशासनिक रुप से मजबूती और स्वायत्तता प्रदान की गई। फलस्वरूप सरकारों को गांव से लेकर जिला स्तर पर पंचायतों के चुनाव के लिए बाध्य होना पड़ा। 

दरअसल राजीव गांधी इस विधेयक के द्वारा सत्ता का विकेंद्रीकरण और योजनाओं की सीधी पहुंच गांवों तक चाहते थे। गरीब और मेधावी बच्चों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से देश भर में जवाहर नवोदय स्कूलों की स्थापना राजीव गांधी के शिक्षा में समान अवसर उपलब्ध कराने की सोच को प्रदर्शित करता है। बेरोजगार युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए उन्होंने जवाहर रोजगार योजना की शुरुआत की। राजीव गांधी किसानों के समस्याओं के प्रति अत्यंत संवेदनशील थे उनका विचार था कि “यदि किसान कमजोर हो जाते हैं तो देश आत्मनिर्भरता खो देती है लेकिन यदि वे मजबूत हैं तो देश की स्वतंत्रता भी मजबूत होती है। कृषि और किसानों की प्रगति से ही देश की गरीबी मिट सकती है।”

        राजीव गांधी के राजनीतिक जीवन में विवादों का भी ग्रहण लगा था जिसने उनके “मिस्टर क्लीन” की छवि को नुकसान पहुंचाया था। 1984 में इंदिरा गांधी के हत्या के बाद दिल्ली सहित देश के अन्य हिस्सों में भड़के सिख विरोधी दंगों में हजारों सिक्खों की मौत हो गई तथा उनके घरों व व्यवसायिक संस्थानों में लूटपाट, तोड़फोड़ और आगजनी हुयी थी। कुछ सिक्ख समुदायों और मानवाधिकार संगठनों का मानना था कि भले ही इन दंगों में राजीव गांधी की सीधी भूमिका नहीं थी लेकिन इसमें कुछ कांग्रेसी नेताओं की प्रत्यक्ष भूमिका थी जिन्हें राजीव के दौर में कांग्रेस ने बड़े पदों से नवाजा था।

इसी प्रकार उनके राजनीतिक विरोधियों ने राजीव को बोफोर्स कांड, शाहबानो प्रकरण और अयोध्या मामले में कठघरे में खड़ा किया था । श्रीलंका में तमिल विद्रोहियों के खिलाफ राजीव गांधी और तत्कालीन श्रीलंकाई राष्ट्रपति जयवर्धने के साथ हुए समझौते के बाद तमिल विद्रोहियों के खिलाफ भारतीय सेना भेजने के निर्णय का देश में काफी विरोध हुआ था। आखिरकार यह समझौता ही राजीव गांधी के हत्या का कारण बना।

21 मई 1991 को आमचुनाव के प्रचार अभियान के दौरान तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में श्रीलंकाई तमील उग्रवादी संगठन “लिट्टे” के आत्मघाती हमले में राजीव गांधी की हत्या हो गईं। उनकी असामयिक मौत से देश ने एक संभावनाओं भरा राजनेता खो दिया जिसने भारत की नयी सदी की सोच का सपना देखा था लेकिन तब तक  वे देश को प्रगति का राह दिखा गए थे जिसे युवा भारत आज महसूस कर रहा है। राजीव गांधी को मृत्युपरांत 1991 में “भारत रत्न” अलंकरण से अलंकृत किया गया। 

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