रायपुर/नवप्रदेश। Arm Wrestling Champion : “हौसलें हो बुलंद तो कोई राह मुश्किल नहीं” इन पंक्तियों को श्रीमंत झा ने सच कर दिखाया। छत्तीसगढ़ के होनहार बेटे भिलाई निवासी 27 वर्षीय श्रीमंत जन्म से दिव्यांग हैं, लेकिन श्रीमंत ने इस कमी को अपने लक्ष्य की राह का रोड़ा नहीं बनने दिया।
हाल ही में श्रीमंत ने कजाख्स्तान में हुई आर्म-रेसलिंग चैंपियनशिप (Arm Wrestling Champion) में भाग लेकर 80 किग्रा श्रेणी में देश के लिए कांस्य पदक जीता। श्रीमंत झा विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में देश के लिए 40 अंतर्राष्ट्रीय मेडल जीते हैं। सन् 2010 में श्रीमंत ने आर्म रेसलिंग की शुरुआत की और 2013 में उन्हें पहली बार भारत का प्रतिनिधित्व करने का सुनहरा अवसर मिला। सन् 2016 में श्रीमंत ने पोलैंड में हुए वर्ल्ड कप में पैरा आर्म रेसलिंग में क्वालीफाई कर देश को रजत पदक दिलाया।
ऐसे हुई सफर की शुरुआत
श्रीमंत (Arm Wrestling Champion) ने मीडिया से चर्चा के दौरान बताया कि जीवन की असफलताओं और कठिनाईयों ने उन्हें मजबूत बनाया। “जब मैं कक्षा 10वीं में था, मैं इंटर-स्कूल फुटबॉल चैंपियनशिप में हिस्सा लेना चाहता था, 200 खिलाड़ियों में 22वां स्थान हासिल करने के बावजूद दिव्यांग होने के कारण मुझे यह मौका गंवाना पड़ा।” अपने सपने को साकार करने के लिए श्रीमंत को आर्थिक, मानसिक और शारीरिक, हर तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा, पर उन्होंने हार नहीं मानी। यह घटना श्रीमंत की ज़िन्दगी का टर्निंग पॉइंट बनी और उसी समय उन्होंने देश के लिए पदक जीतने की ठानी। श्रीमंत ने अपने लक्ष्य को पाने के लिए कड़ी मेहनत की और अब परिणाम सबके सामने है।
ओलंपिक्स में भारत का किया प्रतिनिधित्व
वर्तमान में श्रीमंत जिंदल पावर स्टील में जूनियर इंजीनियर के रूप में कार्यरत हैं। श्रीमंत ने बिना किसी मदद के इस मुकाम को हासिल कर एक मिसाल कायम की है। श्रीमंत झा कई कंपनियों के ब्रांड एंबेसडर भी हैं। श्रीमंत झा ने आर्म-रेसलिंग (Arm Wrestling Champion) में राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई पदक हासिल किए। 40 अंतरराष्ट्रीय मेडल जीतने वाले श्रीमंत झा का अगला लक्ष्य पैरा ओलंपिक्स में भारत का प्रतिनिधित्व कर देश के लिए पदक जीतना है।
श्रीमंत की हिम्मत, अथक परिश्रम और देश के लिए कुछ कर गुज़रने की ललक सभी के लिए सच्ची प्रेरणा है। श्रीमंत झा अभी विश्व के नंबर तीन खिलाड़ी और एशिया के नंबर वन खिलाड़ी है।