Pradhan Mantri Mudra Yojana : भारत की प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) ने 8 अप्रैल को आठ वर्ष पूरे किए हैं, ऐसे में हम इस ऋण समर्थन कार्यक्रम द्वारा बड़े पैमाने पर किए गए परिवर्तनों पर नज़र डाल सकते हैं, जिसकी परिकल्पना 2014-15 के निराशा से भरे दिनों में की गई थी, जब हमारा औपचारिक वित्तीय क्षेत्र, विशेष रूप से देश के सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने पर इसके प्रभाव को लेकर, खराब ऋणों के दौर से गुजर रहा था। पीएमएमवाई केंद्र सरकार की प्रमुख योजनाओं में से एक है, जो स्व-रोजगार को प्रोत्साहित करती है। यह योजना उन सूक्ष्म और स्वयं के प्रयासों से परिचालित उद्यमों को लक्षित करती है, जो भारत में एक जीवंत व्यापार इकोसिस्टम का निर्माण करते हैं। सूक्ष्म उद्यम ज्यादातर विनिर्माण, प्रसंस्करण, व्यापार और सेवाओं से जुड़े हैं और इनमें से कई इकाइयां एकल-स्वामित्व वाले व्यवसाय की श्रेणी में हैं।
देश की औपचारिक या संस्थागत संरचना, इन इकाइयों तक पहुंचने और उनकी वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ थी। ये इकाइयां बड़े पैमाने पर स्व-वित्तपोषित थीं या व्यक्तिगत नेटवर्क या साहूकारों पर निर्भर थीं। इस अंतर को ध्यान में रखते हुए, बैंक सुविधा से वंचित बड़े क्षेत्र और औपचारिक ऋणदाताओं के बीच आसान माध्यम बनाने के उद्देश्य से पीएमएमवाई की शुरुआत की गई थी। 2015 में शुरू की गयी पीएमएमवाई 10 लाख रुपये तक का गिरवी-मुक्त संस्थागत ऋण प्रदान करती है। यह ऋण सुविधा सदस्य ऋणदाता संस्थानों (एमएलआई) द्वारा दी जाती है: जिनमें अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (एससीबी), क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी), गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) और सूक्ष्म वित्त संस्थान (एमएफआई) शामिल हैं।
पीएमएमवाई के तत्वावधान में, सूक्ष्म इकाई विकास एवं पुनर्वित्तपोषण संस्थान (मुद्रा) ने तीन उप-योजनाएँ तैयार कीं, जिनमें केवल ऋण धनराशि की रकम की दृष्टि से भिन्नता है: शिशु (50,000 रुपये तक के ऋण के लिए), किशोर (50,001 रुपये से 5 लाख रुपये तक के लिए) और तरुण (500,001 रुपये से 10 लाख रुपये तक के लिए)। शिशु, किशोर और तरुण के रूप में उप-योजनाओं के ये नाम भी लाभार्थी सूक्ष्म इकाई के विकास और इसकी धन संबंधी जरूरतों के चरण को दर्शाते हैं। कोई भी व्यक्ति, जो ऋण लेने का पात्र है और उसके पास एक छोटे व्यवसाय उद्यम के लिए व्यवसाय योजना है, योजना के तहत ऋण प्राप्त कर सकता है।
लॉन्च होने के बाद से, इस योजना में कई बदलाव हुए हैं। उदाहरण के तौर पर, सकारात्मक आर्थिक प्रभाव को अधिकतम करने के लिए इसके लक्षित क्षेत्र का विस्तार किया गया है। प्रारंभ में, पीएमएमवाई केवल विनिर्माण, व्यापार और सेवाओं के क्षेत्रों में आय सृजित करने वाले गतिविधियों को कवर करती थी। हालाँकि, 2016-17 से, कृषि से जुड़ी गतिविधियों और आजीविका को बढ़ावा देने वाली सहायक सेवाओं को भी इसके दायरे में लाया गया है; 2017-18 से, ट्रैक्टर और पावर टिलर की खरीद के लिए ऋण मंजूर किए गए हैं और 2018-19 से वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए दुपहिया वाहन खरीदने के लिए ऋण को भी शामिल किया गया है।
इस योजना ने कुल ऋण-वितरण में पहले तीन वर्षों में औसतन 33% की वृद्धि दर्ज की। इससे पता चलता है कि इसके प्रस्ताव का लोगों ने स्वागत किया है। कोविड महामारी के प्रकोप और उसके बाद आर्थिक गतिविधियों में मंदी ने इन ऋणों की मांग को प्रभावित किया। इस चरण के दौरान, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के एक विशेष राहत की घोषणा की, जिसके तहत सभी ऋण देने वाली संस्थाओं को योजना के अंतर्गत सभी किस्तों के भुगतान पर छह महीने की छूट देने का प्रावधान था।
अर्थव्यवस्था के फिर से खुलने के बाद पीएमएमवाई के तहत ऋण की मांग में तेजी आई है। अधिकांश श्रेणियों में, ऋण-वितरण कोविड-पूर्व के स्तरों को पार कर गए हैं। 24 मार्च 2023 तक, योजना का संचयी ऋण-वितरण धनराशि 22.65 ट्रिलियन रुपये है। शिशु ऋण की हिस्सेदारी सबसे अधिक 40% है, जिससे पता चलता है कि पीएमएमवाई ने बड़े पैमाने पर पहली बार के उद्यमियों को समर्थन प्रदान किया है।
पीएमएमवाई का आर्थिक प्रभाव अब अच्छी तरह से स्थापित हो चुका है। श्रम और रोजगार मंत्रालय के सर्वेक्षण के परिणामों के अनुसार, इस योजना ने 2015 से 2018 की अवधि के दौरान 11.2 मिलियन शुद्ध अतिरिक्त नौकरियां पैदा करने में मदद की थी।
पीएमएमवाई का सामाजिक प्रभाव भी अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसे तीन स्तरों पर समझा जा सकता है। योजना के प्रभाव, विशेष रूप से इन तीन स्तरों पर हैं – (1) व्यापक सामाजिक समूह (2) महिलाएं और (3) अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्य।
पहले के संदर्भ में, पीएमएमवाई ने भारतीय समाज के सभी वर्गों को लाभान्वित किया है: सामान्य, अनुसूचित जाति/जनजाति (एससी/एसटी) समूह और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी)। हाल के दिनों में इन ऋणों का लाभ उठाने में ओबीसी और एससी की बढ़ती भागीदारी इस योजना की व्यापक पहुंच का संकेत देती है।
योजना की सबसे प्रशंसनीय उपलब्धियों में से एक है – महिला उद्यमिता को बढ़ावा। शुरुआत के बाद से इसके संचयी आंकड़ों में, महिलाओं द्वारा धारित खातों की हिस्सेदारी 69% है, जबकि मंजूर की गयी सूची में महिलाओं की हिस्सेदारी 45% है। योजना के पहले चार वर्षों में, महिला उद्यमियों के लिए ऋण-वितरण में औसतन 23% की वृद्धि दर्ज की गई। 2022 में, इसने 28% की मजबूत वृद्धि दर्ज करते हुए अपने कोविड-पूर्व के स्तर को पार कर लिया।
समावेश के अन्य उपायों में भी पीएमएमवाई का प्रदर्शन अच्छा रहा है। यह योजना अल्पसंख्यकों की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम रही है। अल्पसंख्यक समूहों के सदस्यों के लिए ऋण, 2022 में सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया और कुल ऋण में उनकी कुल हिस्सेदारी 10% रही, जिसमें शिशु और किशोर ऋण का हिस्सा, कुल संचयी ऋण-वितरण का 85% था।
चूंकि पीएमएमवाई एक राष्ट्रीय योजना है, संतुलित आर्थिक विकास के दृष्टिकोण से इसकी सभी स्थानों पर उपस्थिति एक महत्वपूर्ण विचार है। भारत की विकास नीति का एक उद्देश्य देश के फलते-फूलते पश्चिमी और पिछड़े पूर्वी भागों के बीच के अंतर को कम करना रहा है। खातों की संख्या और वितरित धनराशियों पर आधारित हर्फ़िन्डहल सघनता सूचकांक का अनुमान, राज्यों और उत्पादों के सन्दर्भ में इस योजना के महत्वपूर्ण विस्तार को दर्शाता है। यह प्रभावशाली भौगोलिक कवरेज को इंगित करता है।
उत्तर प्रदेश, ओडिशा और बिहार जैसे राज्यों को पीएमएमवाई से कई तरह के लाभ हुए हैं। पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा ने भी अपने कुल हिस्सेदारी में वृद्धि दर्ज की है (और किशोर और तरुण श्रेणियों में भी), जो लाभार्थियों के सन्दर्भ में, पूर्वी भाग की ओर प्रवाह का संकेत देती है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, महाराष्ट्र, कर्नाटक और गोवा जैसे विकसित क्षेत्रों ने अपनी हिस्सेदारी में गिरावट देखी है, भले ही वे इस योजना में अपेक्षाकृत प्रमुख भूमिका में रहे हों।
कुल मिलाकर, पीएमएमवाई ने, अपने संचालन के नौवें वर्ष के दौरान, सामाजिक समूहों में स्वरोजगार को बढ़ावा देकर, वाणिज्यिक-बैंक ऋण की दृष्टि से महिलाओं की भागीदारी दर को दोगुना करके और अल्पसंख्यक समूहों की भागीदारी को बढ़ावा देकर; लाभों के समान और निष्पक्ष स्थान-आधारित वितरण के अपने उद्देश्य हासिल किये हैं।
आने वाले वर्षों में, यह आवश्यक है कि पीएमएमवाई 5जी तकनीक और ई-कॉमर्स के लाभों को प्राप्त करे, भले ही मुद्रा कार्ड को और अधिक लोकप्रिय किया जा रहा हो। स्व-खाता उद्यमों के पंजीकरण और औपचारिकता को प्रोत्साहित करना, इस योजना को नई ऊंचाई पर ले जाने का एक और तरीका हो सकता है।
विख्यात मानवविज्ञानी ऑस्कर लुईस ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक, ‘द चिल्ड्रन ऑफ सांचेज’ में तर्क दिया था कि “गरीबी की संस्कृति” समय के साथ खुद को कायम रखती है और अक्सर सीमाओं को पार कर जाती है। पीएमएमवाई ने, बहुत कम समय में, न केवल गरीबी की इस संस्कृति को समाप्त करने के प्रयास किये हैं और इसे बदल देने में सफल रहा है, बल्कि भारतीय सूक्ष्म-ऋण इकोसिस्टम में जीवंतता और ‘कर-सकते-हैं’ की भावना का संचार किया है। पीएमएमवाई स्पष्ट रूप से ‘सामान्य समस्याओं’ का एक असामान्य समाधान रहा है।
ये लेखक के निजी विचार हैं।