प्रयागराज/ ए.। तहसीलदार के अधिकारों (power of tehsildar) को लेकर हाईकोर्ट (high court decision on tehsildar’s power) ने बड़ा फैसला दिया है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि तहसीलदार को किसी जमीन की प्रकृति बदलने का अधिकार नहीं है। बंजर भूमि को नवीन परती कर सड़क भूमि दर्ज करने का तहसीलदार को क्षेत्राधिकार नहीं है।
कोर्ट ने मछलीशहर के तहसीलदार के पिछले 23 फरवरी को पारित आदेश को रद्द कर दिया है और कहा है कि राज्य सरकार को किसी भी भूमि को लेने का अधिकार (power of tehsildar) है। बंजर भूमि गांव सभा की होने के नाते सरकार की है। कोर्ट ने कहा कि यदि सड़क बनाना जरूरी हो तो सरकार जमीन लेकर सड़क बना सकती है। यह आदेश न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्र ने विश्वनाथ बाबुल सिंह की याचिका पर दिया है।
याचिकाकर्ता की दलील
याची का कहना था कि जौनपुर की मछलीशहर तहसील के नीभापुर गांव के प्लाट 473 व 474 को तहसीलदार ने नवीन परती दर्ज कर सड़क बनाने का आदेश दिया है। जिसके खिलाफ यह याचिका दायर की गई थीं।
कोर्ट ने खारिज किया सरकार का ये तर्क
याचिका पर सवाल उठाया गया कि तहसीलदार को किसी जमीन की प्रकृति बदलने का अधिकार नही है। जिसे कोर्ट ने सही माना। सरकार की तरफ से कहा गया कि तहसीलदार धारा 25 में रास्ते का विवाद तय कर सकता है। इसलिए ऐसा किया गया है। कोर्ट ने इसे सही नहीं माना और कहा कि रास्ते के विवाद को तय करने के अधिकार के तहत जमीन की प्रकृति नही बदली जा सकती।