डॉ. सुरभि सहाय। Population Explosion : दुनिया की आबादी को एक अरब तक पहुंचने में बीस लाख वर्ष का समय लगा, परंतु इसे सात अरब तक पहुंचने में केवल 200 साल लगे। पिछले 770 साल में विश्व की जनसंख्या 37 करोड़ से बढ़कर आठ अरब के आसपास जा पहुंची है। भारत की जनसंख्या करीब 140.80 करोड़ है और यह प्रत्येक मिनट बढ़ रही है, क्योंकि औसतन 30 बच्चे हरेक मिनट पर जन्म लेते हैं। चीन में यह औसत 10 रह गई है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक रपट के मुताबिक, भारत की आबादी 141 करोड़ से अधिक है और 2023 में वह चीन को पार कर जाएगा। आबादी 142.9 करोड़ से अधिक होगी। दुनिया की कुल जमीन का मात्र 2 फीसदी ही भारत के हिस्से में है। पानी सिर्फ 4 फीसदी उपलब्ध है, लेकिन आबादी 18 फीसदी से ज्यादा है।
2011 की जनगणना के मुताबिक 2001-2011 तक भारत की आबादी में करीब 17.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। अगर अलग-अलग धर्मों की बात की जाए तो इस दौरान हिंदू आबादी में 16.8 फीसदी, मुस्लिम 24.6 फीसदी, ईसाई 15.5 फीसदी, सिख 8.4 फीसदी, बौद्ध 6.1 फीसदी और जैन आबादी में 5.4 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। उधर, साल 2015 में सामने आए अमेरिकी थिंक टैंक प्यू रिसर्च सेंटर के मुताबिक साल 2050 तक दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी भारत में होगी, जो 30 करोड़ तक पहुंच जाएगी। बावजूद इसके भारत में हिंदू धर्म को मानने वाले ही बहुसंख्यक रहेंगे।
आमतौर पर जनसंख्या वृद्धि (Population Explosion) की दर को लेकर एक धारणा है कि मुस्लिम समुदाय की प्रजनन दर अधिक होती है। लेकिन स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़े इसके उलट तस्वीर पेश कर रहे हैं। एनएफएचए के ताजा आंकड़े बताते हैं कि भारत में सभी समुदायों में प्रजनन दर गिर गई है। पिछले दो दशकों की बात करें तो सभी धार्मिक समुदायों में मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या में सबसे ज्यादा गिरावट देखी गई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में प्रजनन दर गिरकर 2 फीसदी पर आ गई है।
वहीं इस रिपोर्ट से पता चलता है कि देश में मुस्लिम समुदाय के प्रजनन दर में सबसे तेज गिरावट हुई है। इस सर्वे की मानें तो 1992-93 में मुस्लिम समुदाय में प्रजनन दर जहां 4.4 फीसदी थी। वहीं 2015-16 में घटकर 2.6 फीसदी रह गई। इसके अलावा 2019-21 के सर्वे में ये दर 2.3 फीसदी ही रह गई है। एक दौर ऐसा आ सकता है, जब एक-एक इंच जमीन, एक बाल्टी पानी, स्वच्छ घी, दूध, फल-सब्जी आदि के लिए भारत में मार-काट के हालात बन सकते हैं! भारत में जनसंख्या असंतुलन के मद्देनजर अव्यवस्था और अराजकता के लिए विशेषज्ञ लगातार चेतावनी देते रहे हैं। देश के प्रधानमंत्री समेत लगभग सभी बड़े राजनेता आज भी 125-130 करोड़ की आबादी पर ही अटके हैं।
कुछ अपडेट मुख्यमंत्री और नेता 135 करोड़ आबादी का उल्लेख करते रहे हैं। किसी को यथार्थ की विस्फोटक स्थितियों की जानकारी ही नहीं है। ऐसे में देश के सबसे बड़े और अधिकतम आबादी वाले राज्य उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चिंता जताते हैं कि एक वर्ग विशेष की आबादी तेज गति से बढऩी नहीं चाहिए और मूल निवासियों की जनसंख्या लगातार घटनी नहीं चाहिए, तो उन पर हिंदू-मुसलमान के आरोपों की बौछार शुरू हो जाती है।
देश के लिए सबसे कीमती क्या हो सकता है, जिसकी रक्षा करना सरकार का सर्वोपरि कर्तव्य है? निश्चित रूप से भावी पीढिय़ों का भविष्य। लेकिन भावी पीढिय़ों का भविष्य तो वर्तमान जनसंख्या विस्फोट और असमान नागरिक संहिता ने धूमिल करके रख दिया है। जिस देश की सरकारों के एजेंडे पर जनसंख्या नियंत्रण दूर-दूर तक न हो, जिस देश की सरकारें मजहब को देश के भविष्य से अधिक महत्व देती हो, जहां समान नागरिक संहिता न हो, जिस देश का संविधान मजहब के अनुसार नागरिक अधिकार निर्धारित करता हो, जहां की राजनीतिक पार्टियां धर्म-पंथ को राष्ट्रीयता से ऊपर रखती हो, जिस देश में लोकतंत्र का अर्थ कुछ भी करने की स्वतंत्रता हो, उस देश का भविष्य कैसा होगा, सोचा जा सकता है।
संयुक्त राष्ट्र और वल्र्ड इकॉनोमिक फोरम के मुताबिक, दुनिया की आबादी फिलहाल 795.95 करोड़ से ज्यादा है, जो इसी साल के अंत या 2023 के शुरू में 800 करोड़ के पार जा सकती है। दुनिया में प्रति मिनट औसतन 270 बच्चों का जन्म हो रहा है। विश्व स्तर पर यह बढ़ोतरी मानवता के पक्ष में नहीं है। दरअसल भारत के संदर्भ में बढ़ती आबादी ‘वर्ग विशेष’ के लिए भी खतरनाक है, क्योंकि वह अपेक्षाकृत अशिक्षित, गरीब, कुप्रथाओं में जकड़ा है। वह बच्चों को अपनी ‘ताकत’ मानता रहा है, लेकिन पालन-पोषण को लेकर मोहताज है। यदि एक वर्ग की आबादी बढ़ती रहे और दूसरी तरफ ईसाई, पारसी, जैन आदि अल्पसंख्यक समुदायों की आबादी की बढ़ोतरी नकारात्मक रहे, तो आबादी का ऐसा असंतुलन देशहित में नहीं है।
किसी भी देश के सुरक्षित और प्रसन्नता से भरे भविष्य के लिए सबसे अधिक आवश्यक है पारिस्थितिक आवास। पारिस्थितिक आवास की अवधारणा में उन प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यक मात्रा में उपलब्धता निहित है, जो देश की प्रगति के लिए अनिवार्य है, पर जिसका अक्षय विकास पर कोई बुरा प्रभाव न पड़े। दुनिया में हर व्यक्ति को उसके हिस्से का पारिस्थितिक आवास चाहिए, जिसमें वह स्वस्थ-प्रसन्न रह सके, अपनी क्षमता का पूर्ण विकास कर सके और अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित रख सके। पर जनसंख्या विस्फोट वर्तमान के पारिस्थितिक आवास को तो चैपट कर ही रहा है, भविष्य को भी एक अनंत अंधकार में ले जा रहा है। जनसंख्या का विस्तार हमारे पर्यावरण की गुणवत्ता को भी चैपट कर रहा है। पर्यावरण प्रदूषण, रेगिस्तानीतकण, सार्वभौमिक गर्माहट, जलवायु परिवर्तन और जीव-जातियों के विलुप्तिकरण का सबसे बड़ा कारण जनसंख्या विस्फोट ही है।
दशकों तक एक संतान की नीति प्रभावशाली तरीके से लागू करते हुए चीन ने अपना आबादी संतुलन स्थापित करने के बाद अब तीन बच्चों की नीति लागू कर दी है। एशिया में चीन की जनसंख्या नीति सबसे प्रभावशाली रही है। इस सफलता के मूल में है चीन में समान नागरिकता कानून, जहां देश को धर्म-मजहब से ऊपर रखा गया है। भारत में नागरिकों के अधिकार धर्म के आधार पर बंटे हैं, जिस कारण जनसंख्या बढ़ाने की होड़-सी लगी है। भारत में जनसंख्या पर एक कड़ा कानून होना चाहिए। चीन को उदाहरण माना जा सकता है।
यदि 1979 में चीन ने ‘एक बच्चा नीति’ वाला कानून कड़ाई से लागू नहीं किया होता, तो आज चीन की आबादी 250 करोड़ से अधिक होती! आज चीन की आबादी की गति भारत से कम है। हालांकि हमारे यहां भी प्रजनन दर कम हुई है, मृत्यु-दर भी कम हुई है, लेकिन औसत जिंदगी की उम्र 70 साल से ज्यादा है। भारत में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति अब नहीं है, लेकिन फिर भी आबादी बढ़ रही है और हमारे संसाधन सीमित हैं।
बहरहाल भारत सरकार (Population Explosion) को पहल करनी होगी और देशभर में विमर्श की शुरुआत हो। यह सिर्फ ‘वर्ग विशेष’ को निशाना बनाने की समस्या नहीं है। सुरसा की भांति बढ़ रही है। ऐसे में जरूरी है कि एक प्रभावशाली जनसंख्या नियंत्रण कानून अति शीघ्र बने। इसको सफल बनाने के लिए आवश्यक समान नागरिक संहिता को संविधान में पिरोना देश, काल और समाज की सर्वोपरि मांग है।