आशीष वशिष्ठ। Popular Front of India : आखिरकार केंद्र सरकार ने पापुलर फ्रंट ऑफ इण्डिया यानी पीएफआई को पांच सालों के लिए प्रतिबंधित कर दिया है। पिछले कुछ दिनों से चल रही देशव्यापी छापेमारी में बड़ी संख्या में पीएफआई के सैकड़ों कार्यकर्ताओं को पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों ने गिरफ्तार किया है। उनसे बरामद वस्तुओं से ये संदेह और भी दृढ़ हो गया है कि उनकी गतिविधियों का दूरगामी उद्देश्य भारत में इस्लामी शासन स्थापित करना था।
पीएफआई की देशविरोधी गतिविधियों के चलते इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग काफी समय से उठ रही थी। लेकिन सरकार प्रतिबंध लगाने से पूर्व इस संगठन के विरूद्ध पर्याप्त प्रमाण एकत्र कर रही थी, ताकि भविष्य में कोई कानूनी अड़चन या बाधा उसके निर्णय में न आये। इसमें कोई संदेह नहीं है कि पीएफआई जैसे संगठन भारत समेत पूरी दुनिया के लिए परेशानी का कारण बने हैं। सरकार ने देशविरोधी गतिविधियों के चलते करीब 40 संगठनों को बैन किया हुआ है।
पीएफआई पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular Front of India) यानी पीएफआई एक चरमपंथी इस्लामी संगठन है। यह अपने को पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के अधिकार में आवाज उठाने वाला संगठन बताता हैं। साल 2006 में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट यानी एनडीएफ के मुख्य संगठन के रूप में पीएफआई का गठन किया गया था।
इस संगठन की जड़े केरल के कालीकट में है और इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। पीएफआई कई राज्यों में अपनी पैठ बना चुका है एनडीएफ के अलावा कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी, तमिलनाडु के मनिथा नीति पासराई, गोवा के सिटिजन्स फोरम, राजस्थान के कम्युनिटी सोशल एंड एजुकेशनल सोसाइटी, आंध्र प्रदेश के एसोसिएशन ऑफ सोशल जस्टिस समेत अन्य संगठनों के साथ मिलकर पीएफआई ने कई राज्यों में अपनी पैठ बना ली थी।
इस संगठन की कई शाखाएं भी हैं। जिसमें महिलाओं के लिए- नेशनल वीमेंस फ्रंट और विद्यार्थियों के लिए कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया। गठन के बाद से ही इस संगठन पर कई समाज विरोधी व देश विरोधी गतिविधियों के आरोप लगते रहे हैं। मुस्लिम संगठन होने के कारण इस संगठन की ज्यादातर गतिविधियां मुस्लिमों से संबंधित होती है। पहले भी कई मौकों पर यह संगठन मुस्लिम आरक्षण के लिए सड़कों पर उतरा।
यह संगठन 2006 में सुर्खियों में तब आया जब दिल्ली के राम लीला मैदान में इस संगठन द्वारा नेशनल पॉलिटिकल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया था। इस कांन्फ्रेस में अत्यधिक संख्या में लोग सम्मिलित हुए थे। यह संगठन वर्तमान समय में 23 राज्यों तक अपनी पकड़ बना चुका है। यह संगठन खुद को न्याय, स्वतंत्रता और सुरक्षा का पैरोकार बताता है और मुस्लिमों के अलावा देश भर के दलितों, आदिवासियों पर होने वाले अत्याचार के लिए समय समय पर मोर्चा खड़ा करता है।
एनआईए के मुताबिक पीएफआई विदेशों से चंदा लेकर भारत में आतंकी मॉड्यूल तैयार करता है। विदेशी फंडिग से भारत के खिलाफ दुष्प्रचार होता है। मदरसों में बच्चों और युवाओं का ब्रेनवॉश करके उन्हें आन्दोलनों और आतंकी घटनाओं से जोड़ा जा रहा है। पीएफआई का लश्कर-ए-तैयबा, आईएसआईएस और अल-कायदा जैसे आतंकी संगठनों के साथ तालमेल है। देश भर में फैला पीफएआई का नेटवर्क मुस्लिम युवकों को संगठित उपद्रव करने हेतु प्रेरित और प्रशिक्षित करता रहा है।
दिल्ली के शाहीनबाग में हुए सीएए विरोधी प्रदर्शन की हो या कर्नाटक में हुए हिजाब विवाद की. बात सीएए विरोधी दंगों की हो या पैगंबर टिप्पणी विवाद की। बात ‘सिर तन से जुदा’ के नारे की हो या रैली में हिंदुओं के खात्मे का नारा। इन तमाम मामलों को एक-दूसरे से जोडऩे वाली जो कड़ी है, वो पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई ही है। आसान शब्दों में कहें, तो कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन पीएफआई का एजेंडा देश में शरिया कानून लागू कराने से शुरू होकर गजवा-ए-हिंद तक जाता है।
‘मिशन 2047Ó के एक प्रिंट डॉक्यूमेंट जरिये पीएफआई ने बाकायदा इसका रोडमैप बनाया है। जो कुछ समय पहले बिहार में हुई छापेमारी के दौरान सामने आया था। सिमी जैसे मुस्लिम संगठन पर 2014 में मनमोहन सरकार ने जो रोक लगाई थी उसे मोदी सरकार ने जारी रखा है। सिमी पर भी ये आरोप था कि वह सामाजिक संगठन होने की आड़ में इस्लामिक आतंकवाद की जड़ों को सींच रहा था।
पीएफआई का विवादों से है पुराना नाता पीएफआई का विवादों से पुराना नाता हैं। इसे स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेट ऑफ इंडिया यानी सिमी की बी विंग कहा जाता है। आपको बता दें 1977 में संगठित की गयी सिमी को 2006 में प्रतिबंध लगा दिया गया था इसके बाद माना जाता है कि मुसलमानों, आदिवासियों और दलितों के अधिकार दिलाने के नाम पर इस संगठन का निर्माण किया गया। ऐसा इसलिए माना जाता है कि पीएफआई की कार्यप्रणाली सिमी जैसी ही थी। 2012 में भी इस संगठन को बैन करने की मांग उठी थी। तब इस संगठन पर स्वतंत्रता दिवस पर आजादी मार्च किए जाने की शिकायत दर्ज हुई थी।
जिसके बाद केरल सरकार ने इस संगठन का बचाव करते हुए केरल हाईकोर्ट को अजीब सी दलील दी थी कि यह सिमी से अलग हुए सदस्यों का संगठन है, जो कुछ मुद्दों पर सरकार का विरोध करता है। सरकार के दावों को कोर्ट ने खारिज करते हुए प्रतिबंध को बरकरार रखा था। इतना ही नहीं पूर्व में इस संगठन के पास से केरल पुलिस द्वारा हथियार, बम, सीडी और कई ऐसे दस्तावेज बरामद किए गए थे जिसमें यह संगठन अलकायदा और तालिबान का समर्थन करती नजर आयी थी।
अफसोस की बात है कि मुस्लिम समाज के धर्मगुरु भी इन संगठनों की करतूतों की जैसी अनदेखी करते हैं उससे भी संदेह पैदा होता है। मदरसों की जांच में जो खुलासे हो रहे हैं उनकी वजह से भी मुस्लिम समाज की छवि पर दाग लगे हैं। ये सही है कि अशिक्षा के कारण मुस्लिम समुदाय मुल्ला-मौलवियों के साथ ही आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले पीएफआई सरीखे संगठनों के शिकंजे में कस जाता है।
कश्मीर घाटी में हुर्रियत कान्फ्रेंस (Popular Front of India) के नेता सैयद अली शाह गिलानी ने युवकों को पैसे देकर सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने के लिए उकसाया जिसकी देखा-सीखी देश भर में पत्थरबाजी मुस्लिम समुदाय की पहिचान बन गई। भले ही इस समाज के कुछ धर्मगुरु और बुद्धिजीवी दिखावे के लिए इन घटनाओं की निंदा कर देते हों किन्तु उसे रोकने के लिए जैसे कदम उठाये जाने चाहिए थे उनसे वे सदैव बचते रहे। दुर्भाग्य की बात ये है कि मुस्लिम समाज में शिक्षा ग्रहण करने के बाद आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से सुदृढ़ हो चुके लोग भी अलगवावादी मानसिकता के विरुद्ध खुलकर बोलने का साहस नहीं करते।