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Politics of Selfishness : भिंडरावाले की वहशी मानसिकताओं की वापसी रोको

Politics of Selfishness : Stop the return of Bhindranwale's savage mentalities

Politics of Selfishness

विष्णुगुप्त। Politics of Selfishness : स्वार्थ की राजनीति और निपटाने की राजनीति बहुत ही घातक होती है, बहुत ही खतरनाक होती है, बहुत ही जहरीली होती है, इसका दुष्परिणाम तो राष्ट की संप्रभुत्ता ही झेलती है, इसका दुष्परिणाम मनुष्यता को बार-बार प्रताडि़त करती है और लहूलुहान भी करती है। फिर भी हमारी राजनीति, स्वार्थ और निपटाने के हथकंडे छोडऩे के लिए आगे नहीं बढ़ती है। यह भी सही है कि स्वार्थ और निपटाने की राजनीति एक समय के बाद उन पर भी भारी पड़ती हे जो इसके सूत्रधार होते हैं, जो इसके सहचर होते हैं।

राजनीति में नैतिकता और शुचिता की बात अब बेकार हो गयी हैैै। राजनीति अब कल-छपट और धूर्तता से भर गयी है। जय-पराजय अब नैतिकता और शुचिता से सुनिश्चित नहीं होते बल्कि जय-पराजय तो अब कल-छपट और धूर्तता से होने लगे हैं। ऐसी राजनीति किस काम की जो देश की संप्रभुत्ता पर ही आंच कायम करती है, देश की संप्रभुत्ता को ही घून की तरह चाटती है, देश की संप्रभुत्ता को लहूलुहान करती है, देश की एकता और अखंडता को कमजोर करती है।

देश की एकता और अखंडता जब कमजोर होगी तब देश के दुश्मनों की नापाक इच्छाओं की पूर्ति होगी, उनकी भारत को अस्थिर रखने, उनकी भारत को हिंसाग्रस्त रखने की इच्छाओं और स्वार्थो को बल मिलेगा। विगत समय में हमने ऐसी करतूतों को झेला है, ऐसी करतूतों की हमारे देश ने बहुत बड़ी कीमत चुकायी है, सुरक्षा बलों को ऐसी करतूतों को कुचलने के लिए बेहिसाब बलिदान देने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसी करतूतें निर्दोष लोगों की जिंदगिया हिंसाग्रस्त कर देती हैं, निर्दोष लोगों की जिंदगियां नष्ट कर देती हैं, इसके साथ ही साथ हमारी अर्थव्यवस्था भी संकट में खड़ी हो जाती है, अर्थव्यवस्था आम लोगों की जिंदगी सुंदर और सुविधापूर्ण बनाने में असहाय हो जाती है। स्वार्थ और निपटाने की राजनीति के तहत भिंडरावाले की वापसी हो रही है।

भिंडरावाले ब्लूस्टार कार्रवाई में मारा गया था। अब भिंडरावाले की मानसिकताएं फिर से हिंसित रूप में सामने आ रही हैं। अब सरेआम सड़कों पर भिंडरावाले की तस्वीर को लेकर, भिडऱावाले की टीशर्ट पहनकर प्रदर्शन करते हुए और हिंसा फेलाते हुए वहशी व हिंसक लोगों को देखा जा सकता है। विभिन्न आंदोलनों में भिंडरावाले मानसिकताओं की घुसपैठ हुई है। यह कहना भी सही होगा कि कई कुचर्चित आंदोलन की शुरूआत भी भिंडरावले मानसिकता के तहत ही हुई है।

अभी-अभी जो किसान आंदोलन समाप्त हुआ है वह किसान आंदोलन निश्चित तौर पर भिंडरावाले मानसिकता से गतिशील था। किसान आंदोलन को गति देने वाले और किसान आंदोलन को आर्थिक सहायता करने वाले भिंडरावाले मानसिकता के ही लोग थे। सबसे बड़ी बात यह है कि किसान आंदोलन की सुरक्षा की जिम्मेदारी भिंडरावाले मानसिकताओं से ग्रसित लोगों ने ही उठा रखी थी। दिल्ली में तथाकथित धर्मग्रंथ की बेअदबी में किस प्रकार से एक युवक की हत्या हुई थी, यह भी स्पष्ट है।

बेअदबी का आरोप लगा कर उस युवक की तड़पा-तड़पा कर हत्या की गयी थी। हत्या के दोषी निहंगों की भिंडरावले के प्रति हमदर्दी भी सामने आयी थी। उत्तर प्रदेश के पीलीभित में किसानों और केन्द्रीय गृहराज्य मंत्री अजय मिर टेनी के समर्थकों के बीच में जो संघर्ष हुआ था उसमें भी भिंडरावाले मानसिकता की उपस्थिति थी।

अजय मिश्र टेनी के काफिलें को रोकने वाले जो किसान थे वे आम किसान नहीं थे बल्कि वे भिंडरावाले की मानिसकता से ग्रसित बड़े किसान थे, वैसे किसान अपने हाथों मे भिंडरावले की तस्वीरें ले रखी थी और भिंडरावले की मानसिकता के टीशर्ट पहन रखी थी। टीवी और समाचार पत्रों में सभी ने देखा था कि अजय मिश्र टेनी के काफिले रोकने वाले और हिंसा करने वाले किसान भिंडरावाले के फोटो युक्त कपड़े पहने हुए थे। किसान प्रेम के नाम पर भिंडरावले मानसिकता के विस्तार पर बहुत ज्यादा टिका-टिप्पणी नहीं हुई है।

अभी-अभी पंजाब में दो लोमहर्षक और रक्तरंजित घटनाएं (Politics of Selfishness) हुई हैं। दोनों घटनाएं धर्मग्रंथ के कथित बेअदबी से जुड़ी हुई है। पहली घटना में शामिल युवक के विछिप्त होने की आशंका है और दूसरी घटना में युवक के चोर होने की आशंका है। इन दोनों घटनाओ में शामिल युवकों को बेअदबी से कोई लेना-देना नहीं था। फिर दोनों युवको को पुलिस को नहीं सौंपा गया। दोनों युवकों को तब तक मारा गया जब तक उनकी जान समाप्त नही हो गयी। पुलिस को फटकने तक नहीं दिया गया।

ऐसी धटनाओं के संदेश काफी जहरीले हैं,काफी खतरनाक है,काफी चिंताजनक है तथा यह प्रमाणित करती हैं कि पंजाब में भिंडरावाले मानसिकता की तेजी के साथ प्रचार-प्रसार हो रहा है और अब तेजी के साथ भिंडरावाले की मानसिकता कानून को अपने हाथ में ले रही है, कानून के शासन का मुंह चिढ़ा रही है, पुलिस और प्रशासन उसी तरह से मूकदर्शक बन रहे हैं जिस तरह से भिंडरावले के कार्यकाल में मूकदर्शक थे। पुलिस और प्रशासन का मूकदर्शक बने होने का दुष्परिणाम यह हुआ कि भिंडरावाले ने सामानंतर सरकार कायम कर ली थी, भिंडरावाले हिंसा का पर्याय बन गया था, भिंडरावाले स्वयं कानून और जज बन गया था।

भिंडरावले स्वयं सजा देता था। उसने अपने धर्म आश्रय को हिंसा आश्रय में तब्दील कर दिया था। हिंसा आश्रम में उसने दर्जनों लोगों को मौत का घाट उतरवा दिया था। पंजाब में सरेआम हिन्दुओं की हत्या होती थी। बसों और अन्य वाहनों से खिंच-खिच कर हिन्दू पहचान तय कर हत्याएं होती थीं। करीब चालीस हजार हिन्दुओं की हत्याएं जनरैल सिंह भिंडरावाले ने करायी थी। अलग खालिस्तान की नींव पडऩे वाला था। ब्रिटेन से मिली सूचना पर इन्दिरा गांधी ने ब्लूस्टार सैनिक अभियान चला कर भिंडरावाले का काम तमाम किया था।

भिंडरावाले को समाप्त नहीं किया जाता तो निश्चित मानिये की खालिस्तान मानसिकता हमारी राष्टीय एकता और अखंडता को खंडित कर देती।
भिंडरावाले कोई स्वयं की उपज नहीं था। वह निपटाने और स्वार्थ की राजनीति की उपज था। इन्दिरा गांधी ने अकाली राजनीति को निपटाने के लिए जनरैल सिंह भिंडरावाले को तैयार किया था और बढ़ावा दिया था। जब पूरा देश भिंडरावाले की हिंसा और विख्ंाडनकारी बातों से त्राहिमाम था तब राजीव गांधी ने कहा था कि भिंडरावाले आतंकी नहीं बल्कि संत हैं।

इसका दुष्परिणाम खुद राजीव गांधी और इन्दिरा गांधी को झेलना पड़ा था। ब्लू स्टार कार्रवाई से उपजी बदले की भावना ने इन्दिरा गांधी की जान ले ली फिर कांग्रेसियों द्वारा सिखों का नरसंहार हुआ। उस नरसंहार की गूंज आज तक सुनाई दी जाती है। अगर भिंडरावाले को बढ़ावा नहीं दिया गया होता तो फिर न तो ंइंदिरा गांधी की हत्या होती और न ही सिखों को नरसंहार होता और न ही पंजाब में 40 हजार से ज्यादा हिन्दुओं को गाजर मूली की तरह काटा जाता।

स्वार्थ की राजनीति और निपटाने की राजनीति बहुत ही घातक होती है, बहुत ही खतरनाक होती है, बहुत ही जहरीली होती है, इसका दुष्परिणाम तो राष्ट की संप्रभुत्ता ही झेलती है, इसका दुष्परिणाम मनुष्यता को बार-बार प्रताडि़त करती है और लहूलुहान भी करती है। फिर भी हमारी राजनीति, स्वार्थ और निपटाने के हथकंडे छोडऩे के लिए आगे नहीं बढ़ती है। यह भी सही है कि स्वार्थ और निपटाने की राजनीति एक समय के बाद उन पर भी भारी पड़ती हे जो इसके सूत्रधार होते हैं, जो इसके सहचर होते हैं।

राजनीति में नैतिकता और शुचिता की बात अब बेकार हो गयी हैैै। राजनीति अब कल-छपट और धूर्तता से भर गयी है। जय-पराजय अब नैतिकता और शुचिता से सुनिश्चित नहीं होते बल्कि जय-पराजय तो अब कल-छपट और धूर्तता से होने लगे हैं। ऐसी राजनीति किस काम की जो देश की संप्रभुत्ता पर ही आंच कायम करती है, देश की संप्रभुत्ता को ही घून की तरह चाटती है, देश की संप्रभुत्ता को लहूलुहान करती है, देश की एकता और अखंडता को कमजोर करती है। देश की एकता और अखंडता जब कमजोर होगी तब देश के दुश्मनों की नापाक इच्छाओं की पूर्ति होगी, उनकी भारत को अस्थिर रखने, उनकी भारत को हिंसाग्रस्त रखने की इच्छाओं और स्वार्थो को बल मिलेगा।

विगत समय में हमने ऐसी करतूतों को झेला है, ऐसी करतूतों की हमारे देश ने बहुत बड़ी कीमत चुकायी है, सुरक्षा बलों को ऐसी करतूतों को कुचलने के लिए बेहिसाब बलिदान देने के लिए मजबूर होना पड़ता है, सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसी करतूतें निर्दोष लोगों की जिंदगिया हिंसाग्रस्त कर देती हैं, निर्दोष लोगों की जिंदगियां नष्ट कर देती हैं, इसके साथ ही साथ हमारी अर्थव्यवस्था भी संकट में खड़ी हो जाती है, अर्थव्यवस्था आम लोगों की जिंदगी सुंदर और सुविधापूर्ण बनाने में असहाय हो जाती है।

स्वार्थ और निपटाने की राजनीति (Politics of Selfishness) के तहत भिंडरावाले की वापसी हो रही है। भिंडरावाले ब्लूस्टार कार्रवाई में मारा गया था। अब भिंडरावाले की मानसिकताएं फिर से हिंसित रूप में सामने आ रही हैं। अब सरेआम सड़कों पर भिंडरावाले की तस्वीर को लेकर, भिडऱावाले की टीशर्ट पहनकर प्रदर्शन करते हुए और हिंसा फेलाते हुए वहशी व हिंसक लोगों को देखा जा सकता है। विभिन्न आंदोलनों में भिंडरावाले मानसिकताओं की घुसपैठ हुई है। यह कहना भी सही होगा कि कई कुचर्चित आंदोलन की शुरूआत भी भिंडरावले मानसिकता के तहत ही हुई है।

अभी-अभी जो किसान आंदोलन समाप्त हुआ है वह किसान आंदोलन निश्चित तौर पर भिंडरावाले मानसिकता से गतिशील था। किसान आंदोलन को गति देने वाले और किसान आंदोलन को आर्थिक सहायता करने वाले भिंडरावाले मानसिकता के ही लोग थे। सबसे बड़ी बात यह है कि किसान आंदोलन की सुरक्षा की जिम्मेदारी भिंडरावाले मानसिकताओं से ग्रसित लोगों ने ही उठा रखी थी। दिल्ली में तथाकथित धर्मग्रंथ की बेअदबी में किस प्रकार से एक युवक की हत्या हुई थी, यह भी स्पष्ट है।

बेअदबी का आरोप लगा कर उस युवक की तड़पा-तड़पा कर हत्या की गयी थी। हत्या के दोषी निहंगों की भिंडरावले के प्रति हमदर्दी भी सामने आयी थी। उत्तर प्रदेश के पीलीभित में किसानों और केन्द्रीय गृहराज्य मंत्री अजय मिर टेनी के समर्थकों के बीच में जो संघर्ष हुआ था उसमें भी भिंडरावाले मानसिकता की उपस्थिति थी। अजय मिश्र टेनी के काफिलें को रोकने वाले जो किसान थे वे आम किसान नहीं थे बल्कि वे भिंडरावाले की मानिसकता से ग्रसित बड़े किसान थे, वैसे किसान अपने हाथों मे भिंडरावले की तस्वीरें ले रखी थी और भिंडरावले की मानसिकता के टीशर्ट पहन रखी थी।

टीवी और समाचार पत्रों में सभी ने देखा था कि अजय मिश्र टेनी के काफिले रोकने वाले और हिंसा करने वाले किसान भिंडरावाले के फोटो युक्त कपड़े पहने हुए थे। किसान प्रेम के नाम पर भिंडरावले मानसिकता के विस्तार पर बहुत ज्यादा टिका-टिप्पणी नहीं हुई है। अभी-अभी पंजाब में दो लोमहर्षक और रक्तरंजित घटनाएं हुई हैं। दोनों घटनाएं धर्मग्रंथ के कथित बेअदबी से जुड़ी हुई है। पहली घटना में शामिल युवक के विछिप्त होने की आशंका है और दूसरी घटना में युवक के चोर होने की आशंका है।

इन दोनों घटनाओ में शामिल युवकों को बेअदबी से कोई लेना-देना नहीं था। फिर दोनों युवको को पुलिस को नहीं सौंपा गया। दोनों युवकों को तब तक मारा गया जब तक उनकी जान समाप्त नही हो गयी। पुलिस को फटकने तक नहीं दिया गया। ऐसी धटनाओं के संदेश काफी जहरीले हैं,काफी खतरनाक है,काफी चिंताजनक है तथा यह प्रमाणित करती हैं कि पंजाब में भिंडरावाले मानसिकता की तेजी के साथ प्रचार-प्रसार हो रहा है और अब तेजी के साथ भिंडरावाले की मानसिकता कानून को अपने हाथ में ले रही है, कानून के शासन का मुंह चिढ़ा रही है, पुलिस और प्रशासन उसी तरह से मूकदर्शक बन रहे हैं जिस तरह से भिंडरावले के कार्यकाल में मूकदर्शक थे।

पुलिस और प्रशासन का मूकदर्शक बने होने का दुष्परिणाम यह हुआ कि भिंडरावाले ने सामानंतर सरकार कायम कर ली थी, भिंडरावाले हिंसा का पर्याय बन गया था, भिंडरावाले स्वयं कानून और जज बन गया था। भिंडरावले स्वयं सजा देता था। उसने अपने धर्म आश्रय को हिंसा आश्रय में तब्दील कर दिया था। हिंसा आश्रम में उसने दर्जनों लोगों को मौत का घाट उतरवा दिया था। पंजाब में सरेआम हिन्दुओं की हत्या होती थी। बसों और अन्य वाहनों से खिंच-खिच कर हिन्दू पहचान तय कर हत्याएं होती थीं।

करीब चालीस हजार हिन्दुओं की हत्याएं जनरैल सिंह भिंडरावाले ने करायी थी। अलग खालिस्तान की नींव पडऩे वाला था। ब्रिटेन से मिली सूचना पर इन्दिरा गांधी ने ब्लूस्टार सैनिक अभियान चला कर भिंडरावाले का काम तमाम किया था। भिंडरावाले को समाप्त नहीं किया जाता तो निश्चित मानिये की खालिस्तान मानसिकता हमारी राष्टीय एकता और अखंडता को खंडित कर देती।

भिंडरावाले कोई स्वयं की उपज नहीं था। वह निपटाने और स्वार्थ की राजनीति की उपज था। इन्दिरा गांधी ने अकाली राजनीति को निपटाने के लिए जनरैल सिंह भिंडरावाले को तैयार किया था और बढ़ावा दिया था। जब पूरा देश भिंडरावाले की हिंसा और विख्ंाडनकारी बातों से त्राहिमाम था तब राजीव गांधी ने कहा था कि भिंडरावाले आतंकी नहीं बल्कि संत हैं।

इसका दुष्परिणाम खुद राजीव गांधी और इन्दिरा गांधी को झेलना पड़ा था। ब्लू स्टार कार्रवाई से उपजी बदले की भावना ने इन्दिरा गांधी की जान ले ली फिर कांग्रेसियों द्वारा सिखों का नरसंहार हुआ। उस नरसंहार की गूंज आज तक सुनाई दी जाती है। अगर भिंडरावाले को बढ़ावा नहीं दिया गया होता तो फिर न तो इंदिरा गांधी की हत्या होती और न ही सिखों को नरसंहार होता और न ही पंजाब में 40 हजार से ज्यादा हिन्दुओं को गाजर मूली की तरह काटा जाता।

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