सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उन प्रावधानों पर गंभीर सवाल उठाए हैं, जिनके तहत राजनीतिक दलों को दो हजार रुपये से कम का गुमनाम नकद चंदा (Political Funding) लेने की अनुमति है। शीर्ष अदालत ने इस प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार, चुनाव आयोग और सभी प्रमुख राजनीतिक दलों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है।
याचिका में कहा गया है कि दो हजार रुपये से कम के नकद चंदे (Political Funding) पर पहचान उजागर न करने का नियम लोकतांत्रिक पारदर्शिता को कमजोर करता है। इससे मतदाता दानदाताओं की पहचान और उनके उद्देश्यों से अनजान रह जाते हैं। याचिकाकर्ता ने कहा कि यह स्थिति चुनाव प्रक्रिया की शुचिता पर प्रतिकूल असर डालती है और मतदाता सूचित निर्णय नहीं ले पाते।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने सुनवाई के दौरान केंद्र और चुनाव आयोग के साथ-साथ भाजपा, कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों को भी नोटिस जारी करने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि मामला पूरे देश की राजनीतिक फंडिंग व्यवस्था से जुड़ा है, इसलिए विस्तृत जवाब आवश्यक है।
पीठ ने याचिकाकर्ता खेम सिंह भाटी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया से पूछा कि मामला पहले हाई कोर्ट में क्यों नहीं दाखिल किया गया। अधिवक्ता ने तर्क दिया कि यह मुद्दा संपूर्ण राष्ट्रीय राजनीतिक दलों और उनकी फंडिंग व्यवस्था से संबंधित है, इसलिए इसकी सुनवाई सीधे सुप्रीम कोर्ट में होनी चाहिए। अदालत ने इस दलील को स्वीकार करते हुए मामले को चार सप्ताह बाद सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।
याचिका में आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 13A(d) को असंवैधानिक करार देकर रद्द करने की मांग की गई है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के 2024 के उस फैसले का भी हवाला दिया गया है, जिसमें इलेक्टोरल बॉन्ड योजना रद्द कर दी गई थी। याचिका में यह भी अनुरोध किया गया है कि चुनाव आयोग राजनीतिक दलों के पंजीकरण और चुनाव चिन्ह आवंटन के नियमों में संशोधन करे और यह शर्त लागू करे कि कोई भी दल नकद में चंदा प्राप्त न करे।
याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की है कि राजनीतिक दल दान देने वाले हर व्यक्ति का नाम और संपूर्ण विवरण सार्वजनिक रूप से उजागर करें, ताकि राजनीतिक चंदे में पूर्ण पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।

