नेपाल मे कोरोना संकट के साथ छाया राजनीति संकट

नेपाल मे कोरोना संकट के साथ छाया राजनीति संकट

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Political crisis in Nepal

कुमार अभिनव

kumar abhinav

Political crisis in Nepal: दुनिया कोरोना महामारी संकट से जूझ रहा है और नेपाल में आर्थिक और राजनीतिक संकट गहरा गया है। वर्तमान समय में नेपाल की राजनीति में भारी उठा-पटक देखने को मिल रहा है। यह संकट रविवार को और बढ़ गया जब नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने संसद के निचले संदन को भंग करने की सिफारिश कर दी।

प्रतिनिधिसभा के विघटन के बाद प्रधानमंत्री ओली ने कहा कि उनकी पार्टी में भीतरघात व आंतरिक कलह के कारण ऐसी स्थिति बनी है। नेपाल में अभी की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (नेकपा) सरकार का नेतृत्व कर रही है।

2017 के आम चुनाव में नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी एकीकृत माक्र्सवाद लेनिनवाद (नेकपा-एमाले) और नेकपा (माओवादी केन्द्र) ने नेपाली कांग्रेस का नेतृत्व में रहा लोकतान्त्रिक गठबंधन के खिलाफ बृहत्तर वाम चुनावी गठबंधन गठन किया। गठबंधन ने एक स्थिर सरकार का वादा किया क्योंकि इसने अस्थिरता को नेपाल की विकास समस्याओं के लिए एक प्रमुख शत्रु के रूप में देखा जा रहा था।

नतीजा ये रहा की लोगों ने कम्युनिस्ट गठबंधन को स्पष्ट जनादेश दिया। जिसने संघीय संसद में 275 सीटों में से 174 सीटें जीतीं और सात में से छह प्रांतों में कम्युनिस्ट सरकारें बनाईं और एक प्रान्त में विपक्ष भूमिका मे रहा।

सरकार के गठन के बाद से ही पार्टी के दोनों पक्षों के बीच आंतरिक झगड़े शुरू हो गए थे। ओली की महत्वाकांक्षा एक शक्तिशाली प्रधानमंत्री बनने की थी, जबकि प्रचंड की इच्छा एक बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी और सरकार का नेतृत्व करने की थी।

दोनों नेताओं के बीच हुए समझौते के अनुसार, ओली को ढाई साल बाद प्रचंड को सरकार का नेतृत्व सौंपना था। लेकिन ओली ने ऐसा करने से इनकार कर दिया क्योंकि ओली 5 वर्ष स्थायी सरकार का पक्ष मे थे। इसके बजाय वह प्रचंड को पार्टी की कार्यकारी शक्तियां देने के लिए सहमत हो गए।

पार्टी के नए समझौते के अनुसार प्रचंड को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। लेकिन यह व्यवस्था लंबे समय तक नहीं चली क्योंकि ओली ने पार्टी पर भी अपनी पकड़ बनाए रखी और प्रचंडे ने भी ओली को सरकार चलाने मे बार-बार कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा था।

तब से, सत्ता साझा करने के तरीकों पर दो नेताओं के बीच कई समझौते हुए हैं, लेकिन उनमें से किसी ने भी लागू नहीं किया है। अपनी पार्टी के भीतर आंतरिक कलह के कारण ही ओली ने प्रतिनिधिसभा विघटन कर दिया।

प्रतिनिधिसभा के विघटन के साथ, सरकार ने अप्रैल में एक नई चुनाव तिथि की घोषणा की। विपक्षी दल (नेपाली कांग्रेस) के साथ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (नेकपा) के दुसरे घार (प्रचण्ड-नेपाल)पक्ष ने सरकार के इस कदम के खिलाफ आंदोलन की घोषणा की है।

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (नेकपा) में, लोग निराश हैं कि पार्टीमै ही दो धार देखा जा रहा है । अगर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (नेकपा) दिए गए जनमत का सम्मान नहीं करते हैं, तो विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस को आगामी चुनावों में स्वत: फायदा होगा। अतीत में, अपने स्वयं के आंतरिक कलह के कारण, नेपाल के कम्युनिस्ट पार्टी कई बार फुट के सिकार हुवा।

अतीत की कड़वी यादों को याद करते हुए, जनता ने कम्युनिस्टों को दी गई जनमत का सम्मान करते हुए पाँच साल स्थिर सरकार चलाने पर ध्यान देना चाहिए।

(लेखक राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एन.आई.टी), रायपुर भारत के पूर्व छात्र हैं। लेखक भारतके प्रख्यात हस्तियों द्वारा सम्मानित भी किया गया है। लेखकका लेख नेपालका राष्ट्रिय अखबारो मे भी प्रकाशित होता है।)

(लेखक राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एन.आई.टी), रायपुर भारत के पूर्व छात्र हैं। लेखक भारतके प्रख्यात हस्तियों द्वारा सम्मानित भी किया गया है। लेखकका लेख नेपालका राष्ट्रिय अखबारो मे भी प्रकाशित होता है।)

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