राजेश माहेश्वरी। PM Security : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पंजाब यात्रा के दौरान बठिंडा में उनका काफि ला आंदोलनरत किसानों के कारण लगे जाम की वजह से एक फ्लाईओवर पर लगभग 20 मिनट तक फंसा रहा। पीएम की सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक होने के बाद गृह मंत्री अमित शाह तो सक्रिय हो ही गए, पंजाब पुलिस भी ब्लू बुक के उल्लंघन के गंभीर आरोप से घिर गई। इसके बाद एक बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि आखिर पीएम के काफिले में सुरक्षा की इतनी बड़ी चूक की जिम्मेदारी किसकी है।
सवाल यह भी कि काफि ले का मार्ग बदलने की सूचना तत्काल आंदोलनकारियों को कैसे मिली। इतनी जल्दी वे इतनी बड़ी तादाद में कैसे एकत्र हो गये। वहीं सुरक्षा जानकार भी मान रहे हैं कि पाकिस्तान बॉर्डर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर प्रधानमंत्री का एक जगह पंद्रह-बीस मिनट फंसे रहना खतरनाक हो सकता था। मामला सुप्रीम कोर्ट में है। सुप्रीम कोर्ट ने जाचं कमेटी का गठन कर दिया है। लेकिन मसले पर राजनीतिक घमासान के बीच पीएम की सुरक्षा पर नए सिरे से बहस शुरू हो गई है।
प्रधानमंत्री की सुरक्षा के मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। लेकिन अफ सोस की बात यह है कि इस गंभीर मुद्दे पर भी जमकर राजनीति हो रही है। पंजाब में प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर हुई चूक के बाद जिस तरह की बयानबाजी हो रही है वह इस बात का परिचायक है कि राजनेताओं ने अपने विवेक को गहराई तक दफ ना दिया है। पंजाब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को इस घटना में पंजाबियों का अपमान नजर आ रहा है।
किसान आन्दोलन के स्वयंभू प्रवक्ता राकेश टिकैत को प्रधानमंत्री के सड़क मार्ग से जाने पर ही आपत्ति है। जिन किसानों के कारण प्रधानमंत्री का काफिला (PM Security) रुका उनके नेता कह रहे हैं कि वे तो जिलाधिकारी के सामने प्रदर्शन करने जा रहे थे किन्तु पुलिस ने उन्हें उस फ्लायओवर के पास रोक दिया जहां से प्रधानमंत्री को जाना था। पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने पहले-पहल तो किसी भी जांच की जरूरत से ही इंकार कर दिया था लेकिन जब सोनिया गांधी ने उन्हें निर्देश दिए तब जाकर जांच समिति गठित की किन्तु सर्वोच्च न्यायालय ने फिलहाल उस पर रोक लगा दी है।
इस प्रकरण में कुछ वीडियो भी सामने आये हैं जिनमें कुछ सिख युवक लाठी और तलवारों से लैस भाजपा के बैनर पोस्टर फ ाड़ते देखे जा रहे हैं। इस तरह की खबरें भी आई हैं कि प्रधानमन्त्री की जिस सभा में कुर्सियां खाली दिखाई गईं उनमें जाने वाले श्रोताओं को धमकाकर रोका गया। खैर, राजनीति में आ रही गंदगी देखते हुए ये सब अनपेक्षित नहीं है।
जहां तक प्रश्न राजनीतिक कटुता (PM Security) का है तो वह उन सभी पांच राज्यों में देखी जा रहे है जहां विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं लेकिन पंजाब उन सभी में अलग है। सीटों के लिहाज से राष्ट्रीय राजनीति पर उसका दबाव भले ही यूपी या अन्य बड़े राज्यों की तुलना में कम हो लेकिन उसकी भौगोलिक स्थिति देखते हुए वह राजनीतिक से कहीं ज्यादा रणनीतिक महत्व रखता है। जहां तक बात राकेश सिंह टिकैत के अलावा चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत जैसे नेताओं के बयानों की है तो उनका भाजपा अथवा मोदी विरोध समझ में आता है लेकिन पंजाब के मौजूदा हालात में केवल विधानसभा चुनाव ही मुद्दा नहीं रहा।
इसकी सच्चाई प्रमाणित नहीं हो सकी लेकिन पंजाब के भीतर किसान आन्दोलन की आड़ लेकर जिस तरह से सिखों को श्री मोदी और भाजपा विरोधी पेश करने का कुचक्र रचा जा रहा है उसके दूरगामी परिणाम बहुत ही खतरनाक होंगे। अलगाववादी ताकतें कश्मीर, पूर्वोत्तर या पंजाब कहीं की हों किन्तु उन सबका उद्देश्य भारत की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाना है। पंजाब में भाजपा का अपना स्वतन्त्र जनाधार न बन पाने की वजह अकाली दल के साथ चला लम्बा गठबंधन है। शहरी इलाकों विशेष तौर पर हिन्दू मतदाताओं में उसके प्रति आकर्षण है किन्तु वह चुनावी जीत दिलवाने में कितना मददगार होगा ये चुनाव परिणाम बताएँगे।
कैप्टन अमरिंदर सिंह भाजपा के साथ जो गठबंधन बना रहे हैं उसकी वजह से उनको भाजपा समर्थक हिन्दू और अन्य मतदाताओं का समर्थन तो मिल जाएगा लेकिन वे सिखों को भाजपा के पक्ष में कितना झुका पाएंगे ये बड़ा सवाल है। ये देखते हुए इस बात पर मंथन होना चाहिए कि यह चुनाव कहीं हिन्दू और सिखों के परंपरागत भाई-चारे को नुकसान न पहुंचा सके। सबसे ज्यादा चिंताजनक बात ये है कि जिन गलतियों से पंजाब में खालिस्तानी आतंक अस्सी और नब्बे के दशक में फला-फूला, उनको दोहराने की गलती कांग्रेस की राज्य सरकार दोहरा रही है।
मुख्यमंत्री श्री चन्नी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष श्री सिद्धू के बीच की रस्साकशी के चलते राज्य में जिस तेजी से खालिस्तानी आतंक का पदार्पण हुआ वह किसी बड़े खतरे का संकेत है। जैसी कि खबरें आ रही हैं उनके अनुसार पंजाब में कांग्रेस का पराभव निश्चित है। आम आदमी पार्टी के सबसे बड़े दल के तौर पर उभरने के अनुमान विभिन्न सर्वेक्षणों में सामने आने से कांग्रेस में घबराहट होना स्वाभाविक है। लेकिन बजाय उस पार्टी के कांग्रेस के हमले का निशाना भाजपा बन रही है जो चैंकाने वाला है।
चंडीगढ़ नगर निगम के हालिया चुनाव में आम आदमी पार्टी सबसे बड़ा दल बन गई जबकि भाजपा दूसरे और कांग्रेस तीसरे पर आई। त्रिशंकु की स्थिति बन जाने के कारण महापौर का फैसला नहीं हो पा रहा। इस चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी का हौसला बुलंद हुआ जबकि कांग्रेस में हताशा है। उसके नेता टूटकर आम आदमी पार्टी के अलावा कैप्टन अमरिंदर सिंह और भाजपा के साथ जा रहे हैं। कांग्रेस ने पंजाब के आतंकवाद की कितनी बड़ी कीमत चुकाई है ये किसी से छिपा नहीं है किन्तु वह उस घाव को क्यों भूल रही है ये बड़ा सवाल है।
वहां भाजपा को कितनी सीटें मिलेंगीं ये उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना ये कि इस राज्य में खालिस्तानी आतंक का पुनरागमन न हो और सिखों के हिन्दुओं के साथ रोटी-बेटी के जो ऐतिहासिक रिश्ते हैं उनमें दरार न पड़े। किसान आन्दोलन के दौरान देश विरोधी ताकतों ने जिस तरह का षडयंत्र रचा पंजाब में उसी का अमल होता दिख रहा है। गौरतलब है कि कृषि प्रधान होने के बाद भी वहां सभी खेती करते हों ये जरूरी नहीं है। वहां हिन्दू भी बड़ी संख्या में रहते हैं।
केंद्र शासित होने से चंडीगढ़ में देश के विभिन्न हिस्सों से आकर लोग बसे हैं। हिन्दू बहुल हरियाणा से भी पंजाब का निकट सम्बन्ध है। ऐसे में इस राज्य की राजनीति में घोला जा रहा जहर देश को बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को यदि जरा सी भी समझ है तो उसे अपनी राज्य सरकार और पार्टी संगठन को देश विरोधी ताकतों से दूर रहने का निर्देश देना चाहिये।