प्रेम शर्मा। PM Announcement : लगभग एक साल के आन्दोलन के बाद आखिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन मारकर तीनों कृषि कानून वापस लेने की घोषणा कर दी। देर सबेर इस पर वैधानिक मोहर भी लग जाएगी। लेकिन प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद जिस तरह से किसानों ने अविश्वास जताते हुए इसे सांसद में पास कराने के बाद आन्दोलन समाप्त करने का बयान दिया यह भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में सरकार के प्रति अविश्वास जताता है।
यह बॉत सच है कि देश में हर राजनैतिक दल चुनाव में अपना नफा नुकसान देखकर ही कोई निर्णय लेता हैै ,ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कृषि कानूनों की वापसी का फैसला 2022 में (PM Announcement) होने वाले पॉच राज्यों होने वाले चुनाव है। लेकिन अब यक्ष प्रश्न यह उठता है कि क्या किसान आन्दोलन समाप्ति से भाजपा अपने मिशन में कामयाब हो जाएगी तो ऐसा नही है क्योकि कोविड काल के लम्बे लॉकडाउन के बाद से महंगाई, बेरोजगारी और आतंकवाद और नक्सलवाद जैसी समस्याएं सरकार के सामने खड़ी है।
इस साल अगस्त के मुकाबले सितंबर में आम लोगों को खुदरा महंगाई के साथ-साथ थोक महंगाई से भी राहत मिली। सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक सितंबर 2021 में सालाना आधार पर थोक महंगाई दर 10.66 प्रतिशत पर रही जो अगस्त में 11.39 फीसद पर रही थी। हर महीने रोजमर्रा की वस्तुओं के दाम बढ़ रहे हैं। सरकार के पास महंगाई को नियंत्रित करने का कोई फार्मूला नहीं है। इससे रोज कमाने-खाने वाले वर्ग के लोग दो समय का भोजन नहीं कर पा रहे हैं। भाजपा के शासनकाल में सरकार ने कोई युवा रोजगार नीति का सृजन नहीं किया। इस कारण लाखों युवा बेरोजगार हैं।
यह भी माना जा रहा है कि सरकार, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से लोन के दबाव में ऐसी नीतियां तय कर रही हैं जिससे देश की आर्थिक संप्रभुता खतरे में पड़ रही है। यही कारण है कि रुपया का लगातार अवमूल्यन हो रहा है। हालांकि सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने कहा कि भारत की बेरोजगारी दर सितंबर में तेजी से गिरकर 6.86 प्रतिशत हो गई, जो अगस्त में 8.32 प्रतिशत थी, क्योंकि पिछले महीने 8.5 मिलियन अतिरिक्त रोजगार सृजित हुए थे, जिनमें से अधिकांश ग्रामीण भारत में निर्माण गतिविधि के साथ गति पकड़ रहे थे। लेकिन जमीनी तौर पर इसका प्रमाण सामने नही आ रहा।
भारत में 13 नवम्बरॉ 2021 के रोज विभिन्न आतंकवादी घटनाओं में लगभग 40 लोगों की जान गइीं। मरने वालों में आठ नागरिकॉ पांच सुरक्षाकर्मी और 27 आतंकवादी थे। एक दिन में इससे अधिक संख्या 42 लोग 21 मार्च 2020 को मारे गए थे। हालांकि उस दिन मरने वालों में 17 सुरक्षाकर्मी और 25 आतंकवादी थे। गौरतलब है कि साल 2021 में विभिन्न आतंकवादी घटनाओं में अब तक लगभग 511 लोग मारे गए हैंॉ जो 2020 में इसी अवधि में मारे गए लोगों की संख्या 530 से कम है। उससे भी महावपूर्ण यह है कि 2019से आतंकवादी घटनाओं में कुल मारे गए लोगों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है। यानि सुरक्षा बलों ने भारत की आंतरिक सुरक्षा को कुछ वर्ष में सुधार किया है।
भारत को मोटे तौर पर आजादी से लेकर आज तक भारत की आंतरिक सुरक्षा को चैतरफा चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। कश्मीर और पंजाब में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवादॉ पूर्वोत्तर में विघटनकारी आंदोलन, रेड कॉरिडोर में नक्सली हिंसा और देश के बड़े हिस्से में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित इस्लामी आतंकवाद देश को अस्थिर बनाए हुए है। अक्टूबर और नवम्बर माह में होने वाली टारगेट किलिंग की घटनाएं सुरक्षा बलों की सिरदर्दी कर कारण बनी हुई हैं।
2021 में इस क्षेत्र में होने वाली आतंकवादी घटनाओं में कुछ बढ़ोतरी दर्ज की गई है 13 नवम्बर 2021को 46 असम राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल विप्लव त्रिपाठी एवं सुरक्षा बल के चार जवान उस समय मरे गए जब कर्नल त्रिपाठी के काफिले पर आतंकवादियों ने हमला कर दिया। मणिपुर में होने वाले इस हमले में कर्नल त्रिपाठी के साथ गइीं उनकी पत्नी और बेटा भी मारे गए। हमले में अन्य पांच जवान घायल हो गए। ज्ञात हो कि चार जून 2015 के हमले के बाद से कुल मौतों के मामले में राज्य में सुरक्षा बलों को निशाना बनाने वाली यह सबसे बड़ी घटना है।
4 जून 2015 को आतंकवादियों ने भारतीय सेना की 6 डोगरा रेजिमेंट के सैन्य काफिले पर घात लगाकर हमला किया थाॉ जिसमें सेना के 18 जवान मारे गए और 11 घायल हुए थे। नक्सली हिंसा रोकने में सरकार काफी हद तक सफल हुई है। सुरक्षा बलों के प्रयास से नक्सली आंदोलनॉ जो एक समय 20 राज्यों के 223 जिलों में फैला हुआ थाॉ अब मात्र 65 जिलों में सिमट कर रह गया है और इनमें से भी 2/3 जिले ही ऐसे हैं जो अत्यधिक हिंसा के शिकार हैं। निस्संदेह यह आंदोलन आखिरी सांसें गिन रहा है। 13 नवम्बर 2021को गढ़चिरौली महाराष्ट्र में सुरक्षा बलों को नक्सलियों के खिलाफ मिली बड़ी सफलता नक्सलियों के ह्रास में और तेजी ला सकती है। भारत के अंदरूनी हिस्सों में पाकिस्तानदृप्रायोजित इस्लामिक आतंकवाद बड़ी चुनौती बनकर उभर रहा था।
इस तरह की घटनाओं की चरमकाष्ठा 26/11को देखी गई जब पानी के रास्ते से 10 पाकिस्तानी आतंकवादी मुंबई में प्रवेश कर शहर की महावपूर्ण जगहों पर लगातार 3 दिनों तक आतंकवादी घटनाओं जिनमें 166लोग मारे गएॉ।हालांकि उसके बाद से कुछेक घटनाओं को छोड़ कर कोई बड़ी घटना नहीं हुई है। इन सभी वर्तमान सुरक्षा चुनौतियों और निकट भविष्य में उभरने वाली नई चुनौतियों जिनमें से एक अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के कारण भी उभर सकती है।
दु:खद बात यह है कि राजनीतिक नेतृत्व महंगाई, बेरोजगारी और आतंकवाद और नक्सलवाद जैसी समस्याओं को लंबे समय से नजरअंदाज करता आ रहा है। वर्तमान समय में अगर सरकार से नाराजगी के कोई मुख्य कारण नजर आ रहे है तो वह यह कि सरकार बेरोजगारी और महंगाई को लेकर या तो गम्भीर नही या फिर उसके सामने इसके समाधान का कोई ठोस उपाय नही है। मंदिर मजिस्द फार्मूला लोगों के दिलो दिमाग से हट चुका है।
अगर ऐसा ही लम्बे अरसे तक चला तो केवल चुनाव के समय चुनाव जितने वाले पैतरबाजी के बीच सरकार और जनता के बीच विश्वास का संकट ठीक वैसे ही खड़ा होगा जैसे संवैधानिक प्रमुख प्रधानमंत्री की सार्वजनिक धोषणा (PM Announcement) के बाद भी किसान यह मानने को तैयार नही कि तीनों कृषि कानून अब वापस हो जाएगें। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसा अविश्वास खतरे की धंटी है। बहरहाल सत्तारूढ़ दल भले ही धु्रवीकरण, क्षेत्रवाद, भाई भतीजावाद,घोषणा, शिलान्यास उपलब्धि और विरोध के बीच आगामी विधानसभा की तैयारी कर रही हो लेकिन अब आम मतदाता सरकार से महंगाई, बेरोजगारी,आतंकवाद और नक्सलवाद पर वार की बॉत का इंतजार कर रहा है।