Personal Commentary : चुनाव में तेज होती जुबानी जंग

Personal Commentary : चुनाव में तेज होती जुबानी जंग

Personal Commentary : War of words intensifies in elections

Personal Commentary

Personal Commentary : गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियां जनहित से जुड़े मुद्दों की चर्चा करने की जगह बयानवीर नेताओं पर आश्रीत हो गई है जो आपस में जुबानी जंग करके चुनाव जीतना चाहते है। दरअसल हर चुनाव में यही होता रहा है। पार्टी के बड़बोले नेता एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने के बहाने व्यक्तिगत टीका टिप्पणी करने लगते है।

एक दूसरे पर कीचड़ उछालने लगते है। ऐसा करने (Personal Commentary) से उनकी जनसभाओं में उपस्थित भीड़ जो ज्यादातर पार्टी के समर्थक होते है वे उनकी बेतुकी बातों पर तालिया भी बजाते है। इसके उत्साहित होकर वे और भी ज्यादा बदजुबानी करने लगते है। किन्तु उनकी इस बदजुबानी खामियाजा उनकी पार्टी को भूगतना पड़ता है। क्योंकि आम जनता ऐसी अपवित्र भाषा का कतई पंसद नहीं करती।

गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मधुसुदन मिस्त्री ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उनकी औकात दिखाने की बात करके विवाद खड़ा कर दिया था। अब कांग्रेस के ही एक और नेता ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधते हुए उन्हें भषमासुर कह दिया है। इसके पहले भी पिछले चुनाओं के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मौत का सौदागार, चोर, राक्षस, हिटलर और नीच व्यक्ति तक कहा जा चुका है।

यह अलग बात है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जितनी गालिया दी गई या उनके प्रति अपशब्दों का प्रयोग किया गया उतना ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र की लोकप्रियता का ग्राफ ऊंचा उठता गया और कांग्रेस को हर चुनाव में इसका दूष्परिणाम भूगतना पड़ा। इसके बावजूद उसके बयानवीर नेता विवादास्पद बयानबाजी करने और अभर्द्र टिप्पणी करने से बाज नहीं आ रहे हैं।

उनके इस तरह के बयानों से पार्टी को जो नुकसान पहुंच रहा है उसकी उन्हें कतई कोई चिंता नहीं है। सिर्फ कांग्रेस पार्टी ही नहीं भाजपा और आम आदमी पार्टी सहित अन्य राजनीतिक पार्टियों में भी ऐसे बड़बोले नेताओं की भरमार है जो चुनाव के दौरान ही मुखर होते है और अपनी विवादास्पद बयानबाजी से खबरों की सुर्खियां बनते है।

सभी राजनीतिक पार्टियों को चाहिए कि वे ऐसे बड़बोले नेताओं की जुबान पर लगाम लगाने के लिए कड़े दिशा निर्देश जारी करें। क्योंकि उनके बयानों से पार्टी की ही छवि धूमिल होती है। चूंकि चुनाव आयोग ऐसे बयानों पर रोक लगाने में सक्षम नहीं है इसलिए राजनीतिक पार्टियों को ही इस बारे में गहन विचार कर उचित कदम उठाना चाहिए ताकि चुनाव के दौरान राजनीतिक सूचिता बनी रहें और विवादास्पद बयानबाजी के कारण राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के बीच शब्दबाण चलाने की होड़ ना लगे।

उम्मीद की जानी चाहिए कि सभी राजनीतिक दल (Personal Commentary) इस बारे में मंथन कर समय रहते उचित कदम उठाएंगे। अन्यथा बयानवीर नेताओं के बीच चलने वाली इस अप्रिय प्रतिस्पर्धा का खामियाजा उन्हें भूगतना पड़ेगा।

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