प्रेम शर्मा। Peak of Inflation : आरबीाआई और नोमुरा की ताजी रिपोर्ट का इशारा यही है कि अभी देश दुनिया पर महंगाई का सितम जारी रहेगा। अनुमान भले ही छह महीने का लगाया जा रहा है पर इस पर विराम के संकेत अब कम ही दिखाई पड़ते है। महंगाई से जितना आम आदमी परेशान है, उतना ही परेशान रिजर्व बैंक भी है। आरबीआई गवर्नर ने कहा कि दुनियाभर के देश महंगाई से जूझ रहे हैं। दुनिया के कई विकसित और विकासशील देशों में महंगाई दशक के उच्चस्तर पर है। साथ ही मांग-आपूर्ति का अंतर भी बना हुआ है। युद्ध की वजह से आज महंगाई का भी ‘वैश्वीकरण’ हुआ है यानी आज दुनियाभर में महंगाई है। मुख्य रूप से यह आपूर्ति पक्ष के झटकों की वजह से है।’
बुधवार को जब आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास रिजर्व बैंक की द्वैमासिक मौद्रिक नीति की घोषणा कर रहे थे, तब उनके भाषण से महंगाई की चिंता साफ झलक रही है। दास ने साफ कर दिया है कि फिलहाल महंगाई से राहत की कोई उम्मीद नहीं है, और अगली 3 तिमाही तक यानि वित्त वर्ष 2022 के अंत तक महंगाई यूं ही 6 प्रतिशत से अधिक रहेगी। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बुधवार को चालू वित्त वर्ष के लिए अपने मुद्रास्फीति के अनुमान को बढ़ाकर 6.7 प्रतिशत कर दिया है। इससे पहले अप्रैल में रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति के 5.7 प्रतिशत के स्तर पर रहने का अनुमान लगाया था।
रिजर्व बैंक को खुदरा मुद्रास्फीति को दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत के स्तर पर रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है। लेकिन खुदरा मुद्रास्फीति पिछले लगातार चार माह से केंद्रीय बैंक के संतोषजनक स्तर छह प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है। भले ही प्रधानमंत्री और राज्य सरकारों द्वारा नि:शुल्क खाद्यान्न वितरण पर राजनीति हो रही हो लेकिन देखा जाए तो इसकी वजह से भारत में महंगाई अराजकता का रूप धारण नही कर पा रही है।
अप्रैल में खुदरा मुद्रास्फीति 7.8 प्रतिशत के उच्चस्तर पर पहुंच गई है। जो कि रिजर्व बैंक के अनुमान से भी अधिक है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा की घोषणा करते हुए कहा कि मुद्रास्फीति को लेकर जोखिम बना हुआ है।रिजर्व बैंक गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार हाल के समय में टमाटर के दाम बढ़े हैं, जिससे खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। इसके अलावा वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की ऊंची कीमतों की वजह से भी मुद्रास्फीति के ऊपर जाने का जोखिम है। वहीं युद्ध ने भी नई चुनौतियां पैदा की हैं। इससे मौजूदा आपूर्ति श्रृंखला की दिक्कतें और बढ़ी हैं, जिसके चलते दुनियाभर में खाद्य, ऊर्जा और जिंसों के दाम बढ़े हैं।
महंगाई की मार झेल (Peak of Inflation) रहे लोगों को अभी राहत नहीं मिलने वाली है। नोमुरा के अनुसार अभी आने वाले समय में एशिया में महंगाई की मार लोगों को और परेशान करने वाली है। जापान में खाद्य महंगाई दर दिसंबर में 2.7 प्रतिशत था जो कि मई में बढ़कर 5.9 प्रतिशत हो गई। बता दें, नोमुरा की यह रिपोर्ट सोमवार को प्रकाशित हुई है। नोमुरा की रिपोर्ट के अनुसार साल के दूसरे चरण में एशिया में महंगाई अभी और बढ़ेगी। रिपोर्ट के अनुसार चीन में महामारी की वजह से लगा लॉकडाउन, थाइलैंड के स्वाइन फीवर और भारत में गर्म हवाओं की वजह से जुलाई से दिसंबर तक महंगाई और बढ़ेगी। रिपोर्ट के अनुसार, जरूरत वाले सामानों की वजह से मंहगाई सीधा प्रभावित होती है। इससे मंहगाई दर बढ़ सकती है।
ऐसे में जकार्ता और मनीला सरकार ने महंगाई दर को देखते हुए न्यूनतम वेतन स्तर को पहले की तुलना में बढ़ा दिया है। नोमुरा के अनुसार मंहगाई अनाज और खाद्य तेलों के अलावा मांस, प्रोसेस्ड फूड और बाहर खाने जैसी कैटगरी में फैल रही है। हालांकि, चावल को लेकर अभी राहत है। पर्याप्त स्टॉक की वजह से इसके रेट्स सामान्य हैं। सिंगापुर जैसे देश जो ज्यादातर खाने का सामान बाहर से मंगाते हैं। वहां, महंगाई दर साल के दूसरे चरण में 4.1 प्रतिशत से बढ़कर 8.2 प्रतिशत तक जा सकती है। वहीं, भारत में कच्चे तेल की कीमतों में इजाफे की वजह से अनुमान है कि यह 9.1 प्रतिशत के लेवल तक जा सकती है।
मई में भारत की रिटेल महंगाई दर 7.04 प्रतिशत रही, जो कि अप्रैल महीने के मुकाबले इसमें मामूली गिरावट देखने का मिली। अप्रैल में रिटेल इंफ्लेशन रेट 7.79 प्रतिशत पर पहुंच गया था। जून में भी हालत लगभग ऐसे ही बने हुए है। हालांकि, महंगाई दर आरबीआई के काबू से बाहर है।ऐसे हालत में आम जनमानस किस तरह बैंकों से ऋण लेकर अपनी जरूरतें पूरी करे, यह मुसीबत बन चुका है। गरीब आदमी को अब अपना जीवनयापन करना बहुत बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। आलू से लेकर चाय पत्ती तक के दाम कई गुणा बढ़ चुके हैं। एयर कंडीशनर, टीवी, एलईडी आदि इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं के दाम में वृद्धि के अब प्रबल आसार बन रहे हैं।
गेहूं के दाम में उछाल आने की वजह से आटा, ब्रेड और बिस्कुट की कीमतों में इजाफा हुआ है। महंगाई अब वैश्विक समस्या बन चुकी है जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है। कोरोना काल के दौरान कारोबार ठप रहने की भरपाई दुकानदार अब मनमाने दाम में वस्तुएं बेेचकर पूरी कर रहे हैं। रूस और यूक्रेन युद्ध के बीच कई देशों में महंगाई बढऩा चिंताजनक है। श्रीलंका में गैस, पेट्रोल और डीजल जनता को न मिलना इसका ताजा उदाहरण है। पड़ोसी देश श्रीलंका की खराब अर्थव्यवस्था को लेकर चिंतित हैं।
अगर श्रीलंका में जनता को मूलभूत सुविधाओं की दरकार हो सकती है तो भारत के पड़ोसी देश में क्यों नहीं, यही आजकल सवाल उठ रहा है। भारत में स्थिति कुछ हद तक सुखद होने के कारण ही केंद्र सरकार गरीब जनता को सस्ता राशन मुहैया करवा पा रही है। अगर यूक्रेन-रूस युद्ध पर विराम नहीं लगाया गया तो महंगाई दानव बनकर गरीब जनता को निगल जाएगी। इस युद्ध के कारण पेट्रोल, डीजल और गैस की कीमतें लगातार बढ़ी हैं जिसके कारण मालवाहक गाडिय़ों का भाड़ा भी बढ़ा है। वहीं विदेशों में भारतीय गेहूं की मांग भी बढ़ी है। पिछले बारह वर्षों में अब तक 46 से 50 प्रतिशत गेहूं के दाम बढ़ चुके हैं।
एक वर्ष में तीस प्रतिशत महंगाई वृद्धि आम जनमानस का घरेलू बजट बिगाड़ चुकी है। कोरोना वायरस की वजह से अर्थव्यवस्था अभी पूरी तरह पटरी पर लौटी नहीं, कि इस बीच यूक्रेन-रूस युद्ध ने नामी कम्पनियों तक को अपना कामकाज फिलहाल बंद रखने को मजबूर किया है। भारतीय मुद्रा डालर के मुकाबले कमजोर है, जिसकी वजह से महंगाई ने अब जोर पकड़ा है। अनाज में मसूर दाल, चीनी, चाय, मसाला, मांस, मछली, मुर्गा, रेडिमेड कपड़े, फुटवियर, बिजली, ईंधन, आलू, टमाटर, दूध, मूंगफली, सरसों तेल, सोयाबीन, सूरजमुखी तेल सहित फल-सब्जियों के दामों में कई गुणा वृद्धि हुई है।
प्रत्येक परचून विक्रेता का अपना ही दाम होता है जिसका असर मध्यमवर्गीय परिवारों पर अधिक पड़ रहा है। केंद्र सरकार की नि:शुल्क खाद्यान्न योजना से कुछ लोगों का पेट भर रहा है तो यह भी सच बात यह है कि केंद्र सरकार द्वारा खाद्यान्न पर सबसिडी बंद किए जाने अन्य वस्तुओं के दाम बढ़ है। खुदरा बजारों पर नियंत्रणा न होने से महंगाई की आड़ में व्यापारी भी मनमानी कर रहे है।
सरकारों का यही दायित्व बनता है कि वे वस्तुओं के मनमाने दाम वसूलने वालों के खिलाफ शिकंजा कसते हुए जनता को राहत पहुंचाएं। पेट्रोल, डीजल और गैस की कीमतों में जब तक कटौती नहीं होती तब तक महंगाई से राहत मिलने के आसार नहीं हैं। जरूरी है कि अब यूक्रेन-रूस युद्ध बंद करवाया जाए जिसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ा है। सरकारी मशीनरी को समय रहते बाजारों का औचक निरीक्षण करना चाहिए। अपनी मनमर्जी से वस्तुएं कई गुणा अतिरिक्त दामों में बेचने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई अमल में लानी चाहिए।
दुकानदारों ने कोरोना वायरस (Peak of Inflation) और रूस-यूक्रेन युद्ध की आड़ में स्वयं महंगाई बढ़ाई है। ऐसे दुकानदार जनता को दोनों हाथों से लूटने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। सरकार की अनुमति के बिना सामान महंगा बेचना सरासर गलत है। वर्तमान महंगाई की दशा में दस हजार से कम मासिक आय वालों के लिए जीवन जीना दूभर हो चला है। देश में ऐसे लोगों की संख्या कम से कम 70 प्रतिशत के आसपास होगी। इसे रोकने के लिए सरकार को इनकी आय में कम से कम दो गुना इजाफा करने की किसी ठोस रणनीति पर विचार करना होगा।