-निजी अस्पतालों में कोरोना मरीज के परिजनों से लाखों की वसूली
-मरीज के परिजन अगर अस्पताल का पूरा बिल न भी चुका पाएं तो भी शव को ले जाने रोक नहीं सकते
-ऐसे ही मनमानी जारी रहा तो अस्पतालों का लाइसेंस निरस्त किया जाए
रायपुर/नवप्रदेश। संसदीय सचिव विकास उपाध्याय (Parliamentary Secretary Vikas Upadhyay) ने रायपुर राजधानी (Rajdhani Raipur) में स्थित निजी अस्पतालों (Private hospitals) द्वारा कोविड-19 (Covid-19) के मरीजों (Patients) से मनमाने तरीके से पैसे वसूली (Money collection) करने का गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है, स्वास्थ्य सेवाएं देना किसी सामान बेचने जैसा नहीं है और ऐसा कर स्वास्थ्य सेवाएं देने वाले निजी अस्पताल के संचालक मेडिकल क्लीनिक कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट का खुला उलंघन कर रहे हैं।
कोरोना का डर दिखाकर वसूल रहे लाखों
विकास उपाध्याय ने कहा 90 फीसदी पीडि़तों द्वारा लगातार ये शिकायत मिल रही है कि निजी अस्पतालों में कोरोना का डर दिखा कर उनसे मनमाने तरीके से लाखों रुपए वसूली की जा रही है। कई मरीज तो ऐसे भी हैं जो इन निजी अस्पतालों में महज 3 दिन का फीस 6 लाख रुपये तक चुकाए हैं।
उन्होंने कहा पूरे देश में लगातार कोविड-19 के मरीजों की इजाफ के साथ ही छत्तीसगढ़ में भी इसकी बढ़ोतरी हुई है, नतीजन सरकारी अस्पतालों में अब जगह नहीं है कि सभी पीडि़तों को भर्ती किया जा सके तो मजबूरन प्रदेश भर के संक्रमित लोग अच्छे इलाज के आशा में राजधानी रायपुर के निजी अस्पतालों का रुख कर रहे हैं और स्थिति ये है कि अब इन अस्पतालों में कोविड.19 के अलावे अन्य बीमारी से ग्रसित लोग नहीं के बराबर ही हैं। जिसका फायदा ये निजी अस्पतालों के संचालक भरपुर उठा रहे हैं।
इलाज की जानकारी मरीज व परिजनों को देना चाहिए
विकास उपाध्याय ने कहा सभी मरीज़ों को जानकारी दी जानी चाहिए कि उनको क्या बीमारी है और इलाज का क्या नतीजा निकलेगा। साथ ही मरीज को इलाज पर खर्च उसके फायदे और नुक़सान और इलाज के विकल्पों के बारे में बताया जाना चाहिए। जो रायपुर के निजी अस्पतालों में नही हो रहा है।अगर अस्पताल एक पुस्तिका के माध्यम से मरीज़ों को इलाज जांच आदि के खर्च के बारे में बताएं तो ये अच्छी बात होगी। इससे मरीज़ के परिवार को इलाज पर होने वाले खर्च को समझने में मदद मिलेगी।
निजी अस्पताल बरत रहे है लापरवाही
विकास ने आगे कहा अस्पताल मरीज या उसके परिजनों को केस से जुड़े सभी कागज़ात की फोटोकॉपी दे। ये फोटोकॉपी अस्पताल में भर्ती होने के 24 घंटे के भीतर और डिस्चार्ज होने के 72 घंटे के भीतर दी जानी चाहिए। पर ये भी नहीं किया जा रहा है। विकास उपाध्याय ने कहा कई बार देखा गया है कि अगर अस्पताल का पूरा बिल न अदा किया गया हो तो मरीज़ को अस्पताल छोडऩे नहीं दिया जाता है।
बाम्बे हाई कोर्ट ने इसे ग़ैर कानूनी कारावास
बाम्बे हाई कोर्ट ने इसे ग़ैर कानूनी कारावास बताया है। है। कभी-कभी अस्पताल बिल पूरा नहीं दे पाने की सूरत में लाश तक नहीं ले जाने देते। अस्पताल की ये जि़म्मेदारी है कि वो मरीज़ और परिवार को दैनिक खर्च के बारे में बताएं लेकिन इसके बावजूद अगर बिल को लेकर असहमति होती हैए तब भी मरीज को अस्पताल से बाहर जाने देने से या फिर शव को ले जाने से नहीं रोका जा सकता। पर रायपुर के कई अस्पतालों में इसके ठीक विपरीत हो रहा है।
मुख्यमंत्री से शिकायत कर निजी अस्पतालों को हिदायत देने की मांग की
विकास उपाध्याय ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से आग्रह किया है कि वे वर्चुअल मीटिंग लेकर सभी निजी अस्पतालों के संचालकों को इस बाबत बात कर स्पष्ट हिदायत दें कि छत्तीसगढ़ की आम जनता के साथ किसी तरह की लूट बर्दास्त नहीं कि जाएगी और इस बात का ध्यान नहीं दिया गया या मनमानी जारी रही तो ऐसे अस्पतालों के लाइसेंस केंसिल किया जाए। विकास उपाध्याय ने ऐसे निजी अस्पतालों के संचालकों को स्पष्ट हिदायत दी है कि वे इस वैश्विक महामारी के समय मानवता का सही परिचय दें।