Parliament is turning into an arena: पहले संसद को राजनीतिक नौटंकी और मिमिक्री कर रंगमंच बनाया गया। अब धक्का मुक्की कर और सिर फोड़कर संसद को अखाड़े के रूप में तब्दील कर दिया गया है।
आगे पता नहीं ये माननीय और क्या गुल खिलाएंगे? सत्ता पक्ष और विपक्ष में मतभेद तो स्वाभाविक है लेकिन जब वे मन भेद के रूप में सामने आ जाते हैं तो ऐसी ही अप्रिय स्थिति निर्मित होती है।
जो संसद की गरिमा को ही तार तार नहीं करती। बल्कि लोकतंत्र को भी शर्मसार करती है। लगता है माननीयों पर फिल्म पुष्पा का बुखार चढ़ा है सभी फायर बनने के चक्कर में है।