रायपुर, 6 जून| Newborn Heart Surgery Raipur : एमएमआई नारायणा अस्पताल, रायपुर के डॉक्टरों ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करते हुए छत्तीसगढ़ की सबसे छोटी और सबसे कम उम्र की मरीज पर सफल जीवनरक्षक हृदय प्रक्रिया की है।
यह दो दिन की नवजात बच्ची, जुड़वां बहनों में से एक है और जन्म के समय उसका वजन केवल 1.9 किलोग्राम था। रायपुर के एक नवजात शिशु अस्पताल में डॉ. किंजल बख्शी द्वारा जांच के दौरान पाया गया कि बच्ची के शरीर में ऑक्सीजन का स्तर खतरनाक रूप से कम है। जांच में पता चला कि वह वाल्वर पल्मोनरी एट्रेसिया नामक गंभीर जन्मजात हृदय रोग से पीड़ित है, जिसमें हृदय से फेफड़ों की ओर जाने वाला वाल्व पूरी तरह बंद होता है।
उस समय बच्ची की जान एक प्राकृतिक जन्मपूर्व प्रणाली पेटेंट डक्टस आर्टेरियोसस के कारण बची हुई थी, जो गर्भ में रक्त को फेफड़ों को बायपास करने की अनुमति देती है। लेकिन यह नली आमतौर पर जीवन के पहले सप्ताह में बंद हो जाती है। यदि समय रहते इलाज न किया जाता, तो इसके बंद होने से बच्ची का ऑक्सीजन सप्लाई रुक जाती और उसकी जान चली (Newborn Heart Surgery Raipur)जाती।
स्थिति की गंभीरता को समझते हुए, डॉक्टरों की टीम ने हृदय वाल्व को खोलने की योजना बनाई और 9 मई 2025 को बच्ची को तुरंत एमएमआई नारायणा अस्पताल में भर्ती किया गया।
डॉ. राकेश चंद द्वारा दी गई एनेस्थीसिया के तहत, डॉ. किंजल बख्शी और डॉ. सुमंत शेखर पाढ़ी के नेतृत्व में विशेषज्ञ कार्डियोलॉजिस्ट टीम ने अस्पताल की अत्याधुनिक कैथ लैब में यह नाजुक प्रक्रिया की। विशेषज्ञता और सटीकता के साथ उन्होंने बंद पल्मोनरी वाल्व को सफलतापूर्वक खोल दिया, जिससे फेफड़ों की ओर रक्त प्रवाह सामान्य हो गया। प्रक्रिया के बाद बच्ची ने तेज़ी से सुधार किया और अब उसे उसी नवजात अस्पताल में वापस भेज दिया गया है, जहां उसका जुड़वां भाई समय से पहले जन्म के कारण इलाजरत है और उनकी मां प्रसव से उबर रही हैं।
यह पूरे परिवार और हमारे लिए अत्यंत हर्ष का क्षण है, डॉ. बख्शी ने कहा। हमारे ज्ञान के (Newborn Heart Surgery Raipur)अनुसार, यह छत्तीसगढ़ में सफल हृदय इंटरवेंशन कराने वाली सबसे छोटी और सबसे कम उम्र की बच्ची है। हमें पूरी उम्मीद है कि वह एक सामान्य और स्वस्थ जीवन जिएगी। यह सफलता एमएमआई नारायणा अस्पताल की विश्वस्तरीय कार्डियक देखभाल, उन्नत तकनीक और अनुभवी बहु-विषयक टीम की प्रतिबद्धता को दर्शाती है, जो सबसे नाजुक और उच्च जोखिम वाले मरीजों के लिए भी उम्मीद की किरण बन रही है।