राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने यूजीसी को कार्रवाई करने के दिए निर्देश
नई दिल्ली/नवप्रदेश। कानून पढ़ाने वाले राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों (National Law University) में ही कानून के पालन से आनाकानी करने की बात सामने आई है। देश में कक्षा 12वीं के बाद क्लैट परीक्षा (CLAT) के माध्यम से सीधे कानून की पढ़ाई का अवसर देने वाले एनएलआईयू भोपाल, एचएनएलयू रायपुर समेत 22 राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों (National Law University) में भी 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण (OBC Reservation) देने के नियम का पालन नहीं किया जा रहा है।
इन विश्वविद्यालयों में प्रति वर्ष यूजी (BALLB) में 2500 व पीजी (LLM) में 750 प्रवेश दिए जाते हैं. इन विश्वविद्यालयों में ओबीसी को मिलने वाला आरक्षण शून्य है, जिसके कारण राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) नईदिल्ली ने इन विश्वविद्यालयों को फटकार लगाई है।
और यूजीसी (UGC) को इस मामले में कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों के प्रवेश में ओबीसी को आरक्षण देने अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक अधिकारी कर्मचारी संगठन (अपाक्स) भोपाल के राष्ट्रीय अध्यक्ष इन्जी ए. पी. पटेल व डॉ. आम्बेडकर एम्प्लॉइज एसोसिएशन, नागपुर के अध्यक्ष संजय थूल भी लगातार भारत सरकार से मांग कर रहे हैं।
यूजीसी को ये ओदश जारी किया एनसीबीसी ने
ओबीसी आरक्षण नहीं देने वाले विवि को करें दंडित
हाल ही में इस मसले को गंभीरता से लेकर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) नई दिल्ली ने राष्ट्रीय विधि विश्ववद्यालयों (NLUs) की कड़ी निंदा करते हुए कहा है कि देश के ये संस्थान सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के छात्रों को प्रवेश में 27% आरक्षण देने के मामले में भारत सरकार व यूजीसी की आरक्षण नीति व संवैधानिक प्रावधानों का पालन करने में विफल रहे हैं। एनसीबीसी के अध्यक्ष डॉ. भगवान लाल साहनी द्वारा हस्ताक्षरित एक आदेश में, इस दिशा में यूजीसी को तत्काल उपचारात्मक उपाय करने व प्रवेश में ओबीसी आरक्षण (OBC Reservation) नहीं देने पर राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों को दंडित करने का भी निर्देश दिया है।
सख्ती से लागू करना चाहते हैं 27 फीसदी आरक्षण की नीति
एनसीबीसी ने कहा है कि वह वर्तमान शैक्षणिक सत्र 2020-21 से ओबीसी हेतु निर्धारित 27% आरक्षण की नीति को आयोग सख्ती से लागू करना चाहता है। उन्होंने यह भी लिखा कि एनएलयू एक खराब मिसाल कायम कर रहे हैं। आयोग ने कहा है कि एनएलयू दवारा विदेशी नागरिकों के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग का हक नकार कर प्रवेश में आरक्षण का प्रावधान करना नियमों के विरुद्ध है।
ऐसे समझें मामले को
2008 से देश में ओबीसी आरक्षण लागू पर एनएलयू में नहीं
सभी 22 नेशनल लॉ विश्वविद्यालयों में एससी, एसटी, एनआरआई, विदेशी नागरिकों तथा सुपरमेसी कोटे का आरक्षण तो प्रारंभ से यानी 25 साल से लागू है। लेकिन तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुनसिंह की पहल पर भारत सरकार द्वारा समस्त केन्द्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी को आरक्षण देने पारित किये गए सेंट्रल एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस (रिजर्वेशन इन एडमिशन) एक्ट, 2006 पर हुए सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद वर्ष 2008 से भारत में लागू हो जाने के बाद भी इनमें (राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, NLUs) में ओबीसी को 27% आरक्षण नहीं दिया गया। जो प्रथमदृष्टया कानून का घोर उलंघन नजर आता है।
आज तक नहीं बढ़ाई 54% सीटें
राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों के प्रबंधन पूरे मामले के लिए इसलिए भी जिम्मेदार हैं क्योंकि वे 2008 से ही भारत सरकार की मंशा के विपरीत उच्च गुणवत्ता के 54% कम अधिवक्ता शिक्षित कर रहे हैं। दरअसल पूर्व से संचालित केन्द्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों (कॉलेजों) में अनारक्षित सीटें (जनरल सीटें) कम न हों इसके दृष्टिगत सेंट्रल एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस (रिजर्वेशन इन एडमिशन) एक्ट, 2006 में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण लागू करने से पूर्व प्रत्येक कॉलेज को 54% सीटें बढ़ाना भी अनिवार्य था, लेकिन इनमें ये सीटें नहीं बढ़ाई गईं। जिससे विगत 12 वर्षों में देश को प्रतिवर्ष मिलने वाले और 1750 योग्य वकीलों का नुकसान भी हुआ है।
आयकर पर लगा उच्च शिक्षा का उपकर
सभी केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में सीटें बढ़ाने के इस काम के लिए केन्द्र सरकार ने आयकर पर एक प्रतिशत का उच्च शिक्षा उपकर (सेस) लगाकर 2007 से 2010 के प्रारम्भिक 3 वर्षों में ही 20 हजार करोड़ रुपए एकत्र कर लिए थे। जिसके तहत देश के समस्त आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी, एम्स, दिल्ली विश्वविद्यालय, जेएनयू, कृषि, केंद्रीय चिकित्सा महाविद्यालयों आदि ने 54% सीटों की वृद्धि कर ओबीसी को 27% आरक्षण देना अरसे पूर्व प्रारम्भ भी कर दिया था।
एससी-एसटी को भी होगा अप्रत्याशित लाभ
आरक्षित वर्ग के मध्य मसीहा कहे जाने वाले मध्यप्रदेश निवासी तत्कालीन केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कुंवर अर्जुनसिंह की चाणक्य नीति से बढ़ाई गई इन 54% सीटों से ओबीसी को 27 के स्थान पर 42 व एससी-एसटी को बगैर किसी प्रयास के इन प्रतिष्ठित केन्द्रीय शिक्षण संस्थानों में 22.50 के स्थान पर 35 सीटें मिलने लगीं। आज यदि राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों (NLUs) में भी Act-2006 के तहत सीटें बढ़ाकर ओबीसी आरक्षण लागू किया जाता है तो उससे एससी-एसटी को भी इनमें यूजी व पीजी के प्रवेश में यह 22.50 से 35 सीटों का अप्रत्याशित लाभ होगा वहीं समान्य को कोई नुकसान नहीं होगा.
नालसार हैदराबाद के मामले से पता चली हकीकत
राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय हैदराबाद ओबीसी बाबत आरक्षण नियमों का पालन नहीं कर रहा था। मामला पिछले साल सबसे पहले सुर्खियों में तब आया जब वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश बाबू विश्वनाथुला ने आयोग में शिकायत दर्ज की थी। शिकायत के आधार पर, आयोग ने शुरू में जून 2019 में नालसार, हैदराबाद के कुलपति को तलब किया। मुद्दा यहीं तक नहीं रुका क्योंकि आयोग के ध्यान में यह आया कि अन्य सभी एनएलयू भी आरक्षण नियमों को दरकिनार कर रहे हैं। आयोग विशेष रूप से नालसार हैदराबाद के मामले में गंभीर था, जो UGC से धन प्राप्त करने के बावजूद एक निजी विश्वविद्यालय की तरह काम कर रहा था।