योगेश कुमार गोयल। National Consumer Day : अनिल ने अपना बिजली का बिल सही समय पर जमा करा दिया लेकिन फिर भी विभाग ने उसका बिजली कनैक्शन काट दिया। रोमा ने रेलवे भर्ती बोर्ड की परीक्षा में सम्मिलित होने के लिए आवेदन भेजने की अंतिम तिथि से 4 दिन पहले ही स्पीड पोस्ट द्वारा आवेदन भेज दिया था लेकिन आवेदन सही समय पर नहीं पहुंचने के कारण वह परीक्षा में नहीं बैठ सकी और डाक विभाग इसके लिए अपनी गलती मानने को तैयार नहीं।
सीमा का लैंडलाइन फ़ोन कई महीनों से खराब पड़ा है पर विभाग फ़ोन ठीक कराने के बजाय बिल लगातार भेज रहा है और बिलों के भुगतान के लिए बाध्य करता है। राकेश के साथ जोखिम अवधि के दौरान ही दुर्घटना होने पर भी बीमा कम्पनी क्लेम का भुगतान नहीं कर रही। सुरेश मेहता ने ट्रेन में रिजर्वेशन कराया लेकिन आरक्षण के बाद भी बर्थ नहीं मिली। संगीता ने बाजार से मिर्च का पैकेट खरीदा, पैकेट खोला तो मिर्च में फ फूं द लगी थी लेकिन दुकानदार पैकेट बदलने को तैयार नहीं।
रमेश ने बाजार से बिजली का एक पंखा खरीदा लेकिन एक वर्ष की गारंटी होने के बावजूद सिर्फ दो महीने बाद ही पंखा खराब होने पर भी दुकानदार उसे ठीक कराने या बदलने में आनाकानी कर रहा है। जीवन में ऐसी छोटी-बड़ी समस्याओं का सामना कभी न कभी प्राय: हम सभी को करना पड़ता है लेकिन ज्यादातर लोग ऐसे मामलों में दुकानदार या सेवा प्रदाता को कोसते हुए मन ही मन कुढ़ते रहते हैं या दूसरों के सामने बड़बड़ाकर अपने दिल की भड़ास भी निकाल लेते हैं किन्तु जागरूकता के अभाव में अपने अधिकारों की लड़ाई नहीं लड़ते।
इसका बड़ा कारण यही है कि हमारे देश की बहुत बड़ी आबादी अशिक्षित है, जो अपने अधिकारों और कत्र्तव्यों के प्रति अनभिज्ञ है लेकिन जो शिक्षित लोग हैं, वे भी प्राय: अपने उपभोक्ता अधिकारों के प्रति उदासीन नजर आते हैं किन्तु अब जमाना बदल गया है। यदि आप एक उपभोक्ता हैं और किसी भी प्रकार के शोषण के शिकार हुए हैं तो अपने अधिकारों की लड़ाई लड़कर न्याय पा सकते हैं।
स्पीड पोस्ट द्वारा आवेदन भेजने के बाद भी सही समय पर आवेदन नहीं पहुंचने पर डाक विभाग की लापरवाही को लेकर रोमा ने उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटाया और उसे न्याय भी मिला। चूंकि स्पीड पोस्ट को डाक अधिनियम में एक आवश्यक सेवा माना गया है, अत: उपभोक्ता अदालत ने डाक विभाग को सेवा शर्तों में कमी का दोषी पाया और डाक विभाग को रोमा को मुआवजे के तौर पर एक हजार रुपये देने का आदेश दिया गया।
उपभोक्ताओं को शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए देश में कई कानून बनाए गए लेकिन 24 दिसम्बर 1986 को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 अस्तित्व में आने के बाद से उपभोक्ताओं को शीघ्र, त्वरित और कम खर्च पर न्याय मिलने का मार्ग प्रशस्त हुआ है। चूंकि उपभोक्ता कानून 24 दिसम्बर को अस्तित्व में आया था, इसीलिए प्रतिवर्ष इसी दिन ‘राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस’ मनाया जाता है, जिसका अहम उद्देश्य यही है कि उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जा सके ताकि वे अपने साथ होने वाले किसी भी अन्याय के खिलाफ उपभोक्ता अदालत में आवाज उठा सकें। उपभोक्ता हितों को ज्यादा मजबूती प्रदान करने के लिए 20 जुलाई 2020 को कई नए और महत्वपूर्ण प्रावधानों के साथ नया उपभोक्ता कानून लागू किया जा चुका है।
उपभोक्ता संरक्षण कानून (National Consumer Day) का मुख्य उद्देश्य यही है कि उपभोक्ताओं को उनकी इच्छा के अनुरूप उचित मूल्य, गुणवत्ता, शुद्धता, मात्रा एवं मानकों में वस्तुएं उपलब्ध हों। उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिए इस समय देशभर में 500 से भी अधिक जिला उपभोक्ता फ ोरम हैं तथा प्रत्येक राज्य में एक राज्य उपभोक्ता आयोग है। देशभर में समस्त राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में राज्य उपभोक्ता आयोग हैं जबकि राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग नई दिल्ली में है। पिछले कुछ वर्षों में ऐसे अनेक मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें उपभोक्ता अदालतों से उपभोक्ताओं को पूरा न्याय मिला है लेकिन आपसे यह अपेक्षा तो होती ही है कि आप अपनी बात अथवा दावे के समर्थन में पर्याप्त सबूत तो पेश करें।
अब यह भी जान लें कि उपभोक्ता आखिर है कौन? इस बारे में उपभोक्ता संरक्षण कानून में स्पष्ट है कि हर वो व्यक्ति उपभोक्ता है, जिसने किसी वस्तु या सेवा के क्रय के बदले धन का भुगतान किया है या भुगतान करने का आश्वासन दिया है। ऐसे में किसी भी प्रकार के शोषण या उत्पीडऩ के खिलाफ वह अपनी आवाज उठा सकता है तथा क्षतिपूर्ति की मांग कर सकता है।
खरीदी गई किसी वस्तु, उत्पाद अथवा सेवा में कमी या उसके कारण होने वाली किसी भी प्रकार की हानि के बदले उपभोक्ताओं को मिला कानूनी संरक्षण ही उपभोक्ता अधिकार है। यदि खरीदी गई किसी वस्तु या सेवा में कोई कमी है या उससे आपको कोई नुकसान हुआ है तो आप उपभोक्ता फोरम में अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (National Consumer Day) की धारा 14 में स्पष्ट किया गया है कि यदि मामले की सुनवाई के दौरान यह साबित हो जाता है कि वस्तु अथवा सेवा किसी भी प्रकार से दोषपूर्ण है तो उपभोक्ता मंच द्वारा विक्रेता, सेवादाता या निर्माता को यह आदेश दिया जा सकता है कि वह खराब वस्तु को बदले और उसके बदले दूसरी वस्तु दे तथा क्षतिपूर्ति का भी भुगतान करे या फि र ब्याज सहित पूरी कीमत वापस करे।
उपभोक्ता अदालतों की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि इनमें लंबी-चौड़ी अदालती कार्रवाई में पड़े बिना ही आसानी से शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। यही नहीं, उपभोक्ता अदालतों से न्याय पाने के लिए न तो किसी प्रकार के अदालती शुल्क की आवश्यकता पड़ती है और मामलों का निपटारा भी शीघ्र होता है।