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संपादकीय: महाराष्ट्र में मजबूरी का नाम मिलाप

Name mixing due to compulsion in Maharashtra

Name mixing due to compulsion in Maharashtra

Name mixing due to compulsion in Maharashtra: महाराष्ट्र की राजनीति में हासिए पर चले गए शिवसेना यूबीटी के नेता उद्धव ठाकरे अब अपनी बची खुची साख बचाने के लिए अपने चचेरे भाई राज ठाकरे के साथ हाथ मिलाने के लिए तैयार हो गए हैं। गौरतलब है कि आज से बीस साल पूर्व जब शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने अपनी विरासत अपने पुत्र उद्धव ठाकरे को सौंपी थी। तब इस निर्णय से नाराज होकर राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ दी थी और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नाम से अपनी अलग राजनीतिक पार्टी बना ली थी। उस समय राज ठाकरे ने सोचा था कि अधिकांश शिव सैनिक उनके साथ आ जाएंगे।

लेकिन ऐसा नहीं हुआ नतीजतन राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की महाराष्ट्र की राजनीति में कोई बड़ी पहचान नहीं बन पाई। चुनाव दर चुनाव महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना कमजोर पड़ती गई और पिछले विधानसभा चुनाव में तो उसे मात्र डेढ़ प्रतिशत मत ही हासिल हो पाया। यहां तक की राज ठाकरे के पुत्र भी विधानसभा चुनाव में हार गए। इधर, शिवसेना में टूट के बाद उद्धव ठाकरे भी कमजोर पड़ गए हैं। एकनाथ शिंदे ने शिवसेना पार्टी का नाम और उसका चुनाव चिन्ह भी उद्धव ठाकरे से छीन लिया है। नतीजतन शिवसेना यूबीटी भी अब संक्रमण काल से गुजर रही है।

पिछले लोकसभा चुनाव में जरूर शिवसेना यूबीटी को कांग्रेस और शरद पवार के साथ गठजोड़ करने का लाभ मिला था लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में शिवसेना यूबीटी को मुंह की खानी पड़ गई थी। उद्धव ठाकरे को जो सीटें मिली भी हंै, वह कांग्रेस और शरद पवार की कृपा से मिली है। यदि शिवसेना यूबीटी महाअघाड़ी गठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ती तो शायद विधानसभा चुनाव में उसका खाता भी नहीं खुल पाता।

अब महाराष्ट्र में मुंबई महानगरपालिका सहित पूरे प्रदेश के नगरीय निकाय चुनाव होने जा रहे हैं। जिसके लिए महाअघाड़ी में टिकटों के बंटवारे को लेकर घमासान मचा हुआ है। शिवसेना यूबीटी के प्रवक्ता और राज्यसभ सदस्य संजय राउत ने तो इस रस्साकसी के चलते यहां तक कह दिया था कि नगरीय निकाय चुनाव में शिवसेना यूबीटी को मन माफिक टिकट नहीं मिली तो शिवसेना यूबीटी महाअघाड़ी से अलग होकर अकेले अपने दम पर चुनाव लडऩे पर विचार कर सकती है।

इसके बाद से शिवसेना यूबीटी और कांग्रेस के बीच मतभेद गहराने लगे हैं। मुंबई महानगरपालिका का चुनाव शिवसेना यूबीटी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है क्योंकि एक लंबे अरसे तक वहां अविभाजित शिवसेना का कब्जा रहा है। उद्धव ठाकरे मुंबई महानगरपालिका पर फिर से कब्जा करना चाहते हैं। ताकि उनकी पार्टी का अस्तित्व बना रहे। चूंकि महाअघाड़ी में सीटों के बंटवारे को लेकर तनातनी चल रही है। इसलिए अब वे महाअघाड़ी से अलग होकर अपने चचेरे भाई राज ठाकरे के साथ गठजोड़ करने का मन बना रहे हैं। दोनों भाईयों के बीच यह मिलाप मजबूरी के कारण हो रहा है।

दरअसल उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे दोनों को ही अपने अपने बेटों के राजनीतिक भविष्य की चिंता खाये जा रही है। वे अपने बेटों को राजनीति में स्थापित करना चाहते हैं। उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे तो विधायक बन गये हैं। लेकिन राज ठाकरे के पुत्र का भविष्य बनना अभी बाकी है। यही वजह है कि राज ठाकरे भी अपने पुराने तमाम मतभेद भुलाकर अपने चचेरे भाई उद्धव ठाकरे के साथ हाथ मिलाने के लिए तैयार हो गये हैं। इन दोनों भाईयों का मिलाप महाराष्ट्र की राजनीति में कितनी हलचल मचाएगी यह देखना दिलचस्प होगा। खासतौर पर मुंबई महानगरपालिका चुनाव में इन दोनों भाईयों का गठजोड़ क्या गुल खिलाएगी यह तो आने वाला वक्त ही बेहतर बताएगा।

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