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Mulayam Singh Yadav : समाजवादी राजनीति के पुरोधा का अवसान

Mulayam Singh Yadav: The death of the father of socialist politics

Mulayam Singh Yadav

राजेश माहेश्वरीं। Mulayam Singh Yadav : समाजवादी पार्टी के संस्थापक उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और देश के पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव का लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया। नेता जी नाम से लोकप्रिय 82 वर्षीय मुलायम सिंह यादव ने राजनीति में एक लम्बी पारी खेली। मुलायम सिंह राजनीति के उन मैदानी खिलाडियों में थे जिन्होंने अपना वैचारिक सफर गैर कांग्रेसवाद के प्रवर्तक डा. राममनोहर लोहिया की रहनुमाई में शुरू किया था लेकिन उनके जीवन का उत्तरार्ध गैर भाजपा राजनीति की सोच के चलते बीता।

वे उन-बचे खुचे नेताओं में थे जिन्होंने लोहिया जी की लाल टोपी को जीवित रखा। यहीं नहीं तो संसद में धोती युग के भी वे गिने-चुने प्रतिनिधियों में थे। वे उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य के उन चंद नेताओं में थे जिन्होंने शून्य से शिखर तक की यात्रा अपने बलबूते हासिल की। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा, ‘साधारण परिवेश से आए मुलायम सिंह यादव जी की उपलब्धियां असाधारण थीं। ‘धरती पुत्र’ मुलायम जी जमीन से जुड़े दिग्गज नेता थे।’

इटावा के सैफई गांव में जन्मे मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का शुरुआती जीवन इसी जिले के आसपास गुजरा। यहीं उनकी शुरुआती पढ़ाई हुई और इटावा के केके कॉलेज से बीए और बीटी की डिग्री ली। यहीं पर वे लोहिया की समाजवादी विचारधारा के संपर्क में आए और यहीं वे ‘छात्र संघ’ के अध्यक्ष भी बने। बताते हैं कि जब वे महज 14 साल के थे तो लोहिया ने सिंचाई शुल्क में बढ़ोतरी के खिलाफ आंदोलन चलाया था और मुलायम उस आंदोलन के लिए पहली बार जेल गए। हालांकि उनकी राजनीति का आगाज इतने भर से नहीं हुआ। स्वतंत्र भारत में उत्तर प्रदेश की राजनीति ने जिस मोड़ से अपना रास्ता बदला मुलायम सिंह यादव हमेशा वहीं खड़े दिखाई दिए।

वे पिछड़े वर्गों की आकांक्षाओं के प्रतीक बने, साथ ही मुलायम सिंह को राजनीति का एक ऐसा समीकरण रचने का श्रेय भी जाता है, जिसके आगे पुराने सारे समीकरण फीके पड़ गए। इसमें चाहे जनता पार्टी को तोडऩा हो या सरकार बनाने के लिए बहुजन समाज पार्टी को साथ जोडऩा हो। अखाड़े की मिट्टी में बड़े हुए मुलायम सिंह ने अपने पसंदीदा ‘चरखा’ दांव का राजनीति में भी खूब इस्तेमाल किया। कुश्ती के अखाड़े में छोटे कद के मुलायम सिंह की खासियत यह थी कि वे अपने से बड़े पहलवानों को आसानी से चित कर देते थे। सैफई के पास ही करहल में एक दिन कुश्ती का उनका मुकाबला इलाके के बड़े पहलवान सरयूदीन त्रिपाठी से हुआ। सरयूदीन कद में उनसे काफी लंबे थे, लेकिन मुलायम ने उन्हें भी चित कर दिया।

प्रतियोगिता के दौरान वहां जसवंत नगर के विधायक नत्थू सिंह भी मौजूद थे। कुश्ती के बाद नत्थू सिंह मुलायम से मिले और उन्हें अपने साथ जोड़ लिया। अब वे ‘संयुक्त समाजवादी पार्टी’ के कार्यक्रमों में सक्रिय हो चुके थे। कहा जाता है कि पहलवानी के दौर में अखाड़े के अंदर मुलायम सिंह का प्रिय दांव होता था-‘चरखा’। तब किसने सोचा था कि धोबी पछाड़ का यही दांव वे राजनीति में अपनाएंगे। बाद में उन्होंने आगरा से एमए की डिग्री ली और कुछ समय के लिए अध्यापक हो गए।

मुलायम 1967 से लेकर 1996 तक 8 बार उत्तर प्रदेश में विधानसभा के लिए चुने गए। एक बार 1982 से 87 तक विधान परिषद के सदस्य भी रहे। 1996 में उन्होंने पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और विजयी हुए। इसके बाद से अब तक 7 बार लोकसभा में पहुंचे, निधन के वक्त भी वह लोकसभा सदस्य थे। 1977 में वह पहली बार यूपी में मंत्री बने थे। तब उन्हें कोऑपरेटिव और पशुपालन विभाग दिया गया। 1980 में लोकदल का अध्यक्ष पद संभाला। 1985-87 में उत्तर प्रदेश में जनता दल के अध्यक्ष रहे। पहली बार 1989 में यूपी के मुख्यमंत्री बने। 1993-95 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। समाजवादी पार्टी की गिनती राजनीति में बड़े पार्टियों में से एक थी। इस पार्टी की नींव मुलायम सिंह यादव ने रखी थी।

साल 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन किया था। समाजवादी पार्टी आज पूरे देश में अपना नाम बना चुकी है, जिसका श्रेय मुलायम सिंह को जाता है। आपातकाल लगा तो बाकी विपक्षी नेताओं की तरह ही मुलायम सिंह भी जेल गए। आपातकाल के बाद ‘जनता पार्टीÓ बनी तो मुलायम सिंह यूपी में उसके सबसे सक्रिय सदस्यों में से थे। आपातकाल के बाद हुए चुनावों ने भारतीय राजनीति को पूरी तरह से बदल दिया था। इस चुनाव में लोगों ने कांग्रेस और आपातकाल के खिलाफ गुस्सा तो व्यक्त किया ही था, साथ ही लोगों को अपनी वोट की ताकत का एहसास भी हुआ। और इसी के बाद चुनावी समीकरणों में ऊंची जातियों का वर्चस्व भी टूटने लगा। चुनाव के बाद यूपी में जब राम नरेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया गया तो मुलायम सिंह ने भी पहली बार मंत्री पद की शपथ ली।

उन्हें सहकारिता और पशुपालन विभाग मिले। पशुपालन और उनकी जाति को लेकर उनका मजाक भी बनाया गया, लेकिन मुलामय सिंह को पता था कि यह पहली सीढ़ी उन्हें बहुत ऊपर ले जाएगी। चैधरी चरण सिंह मुलायम सिंह को अपना राजनीतिक वारिस और अपने बेटे अजीत सिंह को अपना कानूनी वारिस कहा करते थे। लेकिन जब अपने पिता के गंभीर रूप से बीमार होने के बाद अजीत सिंह अमरीका से वापस भारत लौटे, तो उनके समर्थकों ने उन पर जोर डाला कि वो पार्टी के अध्यक्ष बन जाएं। इसके बाद मुलायम सिंह और अजीत सिंह में प्रतिद्वंद्विता बढ़ी. लेकिन उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का मौका मुलायम सिंह को मिला।

5 दिसंबर, 1989 को उन्हें लखनऊ के केडी सिंह बाबू स्टेडियम में मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई और मुलायम ने रुंधे हुए गले से कहा था, ‘लोहिया का गरीब के बेटे को मुख्यमंत्री बनाने का पुराना सपना साकार हो गया है।’ मुलायम सिंह यादव 1996 में यूनाइटेड फ्रंट की सरकार में रक्षा मंत्री बने। प्रधानमंत्री के पद से देवेगौड़ा के इस्तीफा देने के बाद वो भारत के प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए।

शेखर गुप्ता ने इंडियन एक्सप्रेस (Mulayam Singh Yadav) के 22 सितंबर, 2012 के अंक मेंश्मुलायम इज द मोस्ट पॉलिटिकलश् लेख में लिखा, ‘नेतृत्व के लिए हुए आंतरिक मतदान में मुलायम सिंह यादव ने जीके मूपनार को 120-20 के अंतर से हरा दिया था।’ ‘लेकिन उनके प्रतिद्वंद्वी दो यादवों लालू और शरद ने उनकी राह में रोड़े अटकाए और इसमें चंद्रबाबू नायडू ने भी उनका साथ दिया, जिसकी वजह से मुलायम को प्रधानमंत्री का पद नहीं मिल सका। अगर उन्हें वो पद मिला होता तो वो गुजराल से कहीं अधिक समय तक गठबंधन को बचाए रखते।’

-लेखक राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।


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