- अपराध दर्ज होने के बाद से ही बगावती तेवर
- ईओडब्ल्यू के जांच अफसर, पीएचक्यू है त्रस्त
नवप्रदेश संवाददाता
रायपुर। पूर्ववर्ती सरकार के सबसे करीबी आईपीएस रहे मुकेश गुप्ता और विवादों का चोली-दामन का साथ रहा है। सत्ता परिवर्तन के बाद भी निलंबित पुलिस महानिदेशक श्री गुप्ता महकमें के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। महज 6 माह में चार बड़े मामलों में आरोपी बनाए गए डीजी गुप्ता पर जांच में सहयोग नहीं करने का आरोप लग रहा है। इतना ही नहीं करीब 6 माह से निलंबित मुकेश गुप्ता निलंबन अवधि में पीएचक्यू में भी उपस्थिति दर्ज नहीं करवाए हैं। फोन टेपिंग, नान घोटाले की आधी-अधूरी जांच और कथित पत्नी मिक्की मेहता की मौत समेत एमजीएम अस्पताल के आर्थिक मामले में उनपर कई तरह के आरोप हैं। हालाकि डॉ.मिक्की मेहता से उन्हें एक पुत्री भी है और उसी के ऐडमिशन के नाम पर उन्हों ने ईओडब्ल्यू आकर बयान देने में असमर्थतता जताते हुए नहीं पहुंचे। अपने वकील अमीन खान के जरिए निलंबित डीजी ने ईओडब्ल्यू को अनुपस्थिति पत्रक भेज दिया है। बता दें कि उन्हें फोन टेपिंग मामले में आज शनिवार को उपस्थित होना था। इससे पूर्व भी ईओडब्ल्यू में दर्ज अन्य दो मामलों में भी महज दो बार ही बयान के नाम पर उपस्थित हुए हैं। कोर्ट से राहत मिलने और गिरफ्तारी पर रोक के बाद से ही उनपर ईओडब्ल्यू के अधिकारियों ने जांच बयान में सहयोग नहीं करने का आरोप लगाते रहे हैं।
मोहलत मांगी, मिली या नहीं बिना जाने हैं नदारद
आईपीएस मुकेश गुप्ता को अपनी बेटी के दाखिले के लिए बाहर जाना था। इसलिए उन्हें वक्त दिया जाये, इसके बाद की जो भी तारीख होगी, उसमें आकर वो अपना बयान दर्ज करांयेंगे। इस तरह का अनुपस्थिति पत्र उनके वकील अमीन खान ने मोहलत की औपचारिकता महज किये। जबकि उन्हें पत्र के बाद मोहलत या वक्त ईओडब्ल्यू ने दिया या नहीं यह जानने की जहमत उठाए बिना वे ईओडब्ल्यू जांच टीम के सामने पेश हुए बिना नदारद हैं। आपको बता दें कि मुकेश गुप्ता को जांच टीम ने आज फिर से पूछताछ के लिए तलब किया था, लेकिन आज वो ईओडब्ल्यू के सामने पेश नहीं हुए। अब ईओडब्ल्यू कोर्ट का रास्ता अपनाएगी और बयान के लिए बाध्य करेगी।
निलंबन अवधि में पीएचक्यू से भी हैं अनुपस्थित
एक वक्त था जब महकमें में उनकी तूती बोलती थी। हालाकि निलंबन के बाद भी उनका जलाल बरकरार है। उनके तेवर का एक नमूना पिछली सुनवाई में पूछताछ करने वाले एएसआई के सामने वे दिखा चुके हैं। तब मजबूरन एएसआई भी झुंझला गया था और उन्हें जांच व बयान में सहयोग करने की बात कही थी। कुछ इसी तरह का वाक्या उनकी निलंबन अवधि में पीएचक्यू में एक बार उपस्थित होने के नियम की अनदेखी करना भी है। वे पीएचक्यू से भी लगातार अनुपस्थित हैं और बिना अवकाश आवेदन स्वीकृत हुए जा नहीं रहे। कानूनी दांव-पेंच में माहिर होने के साथ उनके टेटर का ही आलम है कि पूरा महकमा, प्रशासन भी सख्ती करने से बच रहा है।