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जनादेश से निकले संदेश

messages emanating from the mandate

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योगेश मिश्र

किसी भी खेल में शायद ही यह होता हो कि कोई सेमिफ़ाइनल जीत जाये तभी उसे फ़ाइनल की शील्ड थमा दी। पर यह भी नहीं होता है कि कोई टीम सेमिफ़ाइनल को फ़ाइनल की तजऱ् पर खेले। टीम मोदी ने पाँच राज्यों के चुनावों में से तीन राज्यों में फ़ाइन मैच खेला। उस ने शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे और रमन सिंह के होने के बाद भी नरेंद्र मोदी का चेहरा हर जगह सामने रखा। मोदी पर ही दांव लगाया। मोदी की गारंटी का लिटमस टेस्ट किया । यह बड़ा जोखिम था। यह जोखिम नरेंद्र मोदी सरीखा नेता ही ले सकता है। तभी तो जनादेश से निकाला संदेश बताता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में क्या होगा? मोदी मैजिक काम आयेगा। मोदी की गारंटी पर लोगों का भरोसा रहेगा। मोदी हैट-ट्रिक लगायेंगे । कहा तो यह भी जाने लगा है- ‘तीसरी बारी, चार सौ की तैयारी।


जनादेश से निकाला संदेश बताता है कि मोदी की जनता में गहरी पैठ है। जनता मोदी के सुशासन व विकास की राजनीति के साथ है। हिंदुत्व के तड़के की जगह राजनीति में अभी बनी हुई है। नारी वंदन ब्रहमास्त्र बन कर काम आया। तुष्टिकरण बनाम ध्रुवीकरण में भाजपा के ध्रुवीकरण में दम है। मोदी बनाम कांग्रेस चुनाव बनाने की रणनीति में मोदी की जीत निश्चित है। देश का माहौल ऐसा नहीं है जैसा मीडिया व विपक्ष पेश कर रहे हैं। जाँच एजेंसियों की कार्रवाई जारी रहनी चाहिए। भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस की रीति व नीति दोनों ज़रूरी हैं।


आधी आबादी यानी महिलाएँ और लाभार्थी वर्ग के पास मोदी के अलावा कोई विकल्प है ही नहीं। ओबीसी मतदाता मोदी पर यकीन कर रहा है। तभी तो भूपेश बघेल का पिछड़ा प्रेम कांग्रेस पर भारी पड़ा। क्योंकि उनने पिछड़ा मोह के चलते आदिवासियों को वाजिब तरजीह नहीं दी। यही नहीं, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने जातिगत जनगणना करने का वादा किया। राज्य में करीब 41 फ़ीसदी ओबीसी मतदाता हैं। इसके बावजूद भाजपा छत्तीसगढ़ में 46 फ़ीसदी मतों के साथ 54 सीटें जीतने में कामयाब रही। जबकि कांग्रेस 42 फ़ीसदी मतों के साथ 35 सीटों पर सिमट गई। मध्य प्रदेश में भी ओबीसी मतदाताओं ने भाजपा में ही भरोसा जताया है। कांग्रेस यह भूल गयी कि पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मोदी ने दिया है।


जनादेश यह है कि देश के आर्थिक व सामाजिक विकास के मोदी के फ़ंडे को पसंद किया जा रहा है। बदलते भारत की जो तस्वीर मोदी गढ़ रहे हैं।वह जनआकांक्षाओं के अनुरूप है। गरीब, महिला, किसान और युवा मोदी की ये चार जातियों का नया फ़ार्मूला आज की सियासत की अचूक सोशल इंजीनियरिंग है। राम मंदिर, काशी विश्वनाथ, मथुरा सरीखे अपने पार्टी के शक्ति केंद्रों पर शीश नवाने, विकास करने व पुनरुद्धार करने की मोदी की रीति नीति लोगों का सिर फख़़्र से ऊँचा करती है।
देश में हिंदुत्व के इर्द गिर्द एक सशक्त माहौल है। जिसका प्रतिनिधित्व मोदी करते हैं। कांग्रेस यह समझने में लगातार गलती करती आ रही है। हालाँकि कांग्रेस ने इन चुनावों में हिंदुत्व से जुड़े कई वायदे व घोषणाएँ की। पर उसके सामने इससे इतर चुनौती यह है कि वह साबित करें कि हिंदुत्व अभिप्रेरित राष्ट्र बोध पर वह भाजपा से आगे कैसे हो सकती है।


2011 में असम में तरुण गोगोई की सरकार दोबारा बनने को छोड़ दें तो कांग्रेस की कोई भी सरकार दोबारा नहीं जीत पाई। जबकि 2014 के बाद मोदी ने यूपी, उत्तराखंड , हरियाणा,असम, मध्य प्रदेश व गुजरात में सरकारें दोहराईं। गलहौत के सत्रह मंत्री हारे और बघेल के डिप्टी सीएम समेत सात मंत्री । जबकि शिवराज सिंह के केवल बारह मंत्री ही नहीं बचा पाये अपनी साख ।


जनादेश में राहुल की मोहब्बत की दुकान बंद करने का संदेश है। गहलोत व पायलट की तरह दिल न मिलाने का संदेश है। कांग्रेस को ‘मोदी है तो मुमकिन है की तजऱ् पर छत्तीसगढ़ का नारा-‘भूपेश है तो भरोसा हैÓ नहीं गढऩा चाहिए था। मध्य प्रदेश में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह से जुड़ी होर्डिंग पर सवाल नही उठाना चाहिए था। कांग्रेस की गारंटी योजनाओं के मद्देनजऱ लोगों ने मोदी की गारंटी को पसंद किया क्योंकि मोदी जन जन के मन में पैठे नेता है। मौत के सौदागर से लेकर पनौती की तरह के हमले जनता को रास नहीं आ रहे हैं। कुछ लोग मोदी को वोट भले न दें पर मोदी बहुसंख्यक समाज के नाक के सवाल तो बन ही गये हैं। किसी को भी नाक का कटना मुहावरे में भी अच्छा नहीं लगता है।


पार्टी कार्यकर्ताओं का हौसला बनाए रखना भी कांग्रेस नेतृत्व के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। कांग्रेस धीरे धीरे दक्षिण की ओर सिमटती जा रही है। जबकि दिल्ली की सत्ता का फैसला करने में हिंदी भाषी राज्यों की प्रमुख भूमिका होती है। ऐसे में कांग्रेस की हार 2024 की सियासी जंग के लिए पार्टी की चिंता बढ़ाने वाली है। इस बड़ी हार से कर्नाटक में मिली जीत का खुमार टूट गया है।कांग्रेस पर सहयोगी दलों को साथ लेकर चलने का दबाव भी बढ़ गया है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्यों में अब पार्टी को क्षेत्रीय दलों के दबाव में सीट बंटवारे पर काम करना होगा।


साफ संकेत है कि कांग्रेस नरेंद्र मोदी की दुर्जेय भाजपा और उसके संसाधनों के खिलाफ अकेले लड़ाई नहीं जीत सकती। यही संदेश इंडिया गठबंधन के तमाम घटकों के लिए है कि वे सब भाजपा के खिलाफ विश्वसनीय चुनौती पेश नहीं कर सकते हैं। क्योंकि न किसी के पास करिश्माई लीडरशिप न है, न वैचारिक स्पष्टता है। इन चुनावों ने अखिलेश यादव, मायावती, असदुद्दीन ओवैसी सरीखे रीजनल या अति रीजनल नेताओं को भी उनकी जगह याद दिला दी है। इन नेताओं को जनादेश का संदेश पढ़ लेना चाहिए कि वे राष्ट्रीय क्या, रीजनल फलक पर भी कहीं नहीं हैं और कोई राष्ट्रीय जगह बनाने का रास्ता बहुत दूर है।


इस जनादेश मतदाताओं के संवेग की अभिव्यक्ति नहीं कहा जाना चाहिए । बल्कि यह उनकी स्थायी धारणा का प्रकटीकरण है। यह मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में भाजपा को मिले वोटों में पढ़ा जा सकता है। इन राज्यों में भाजपा को क्रमश: 49 फ़ीसदी, 45 फ़ीसदी व 42 फ़ीसदी वोट मिले। क्योंकि सरकारी नीतियों में भाजपा ने सभी वर्गों को जगह दी। तमिलनाडु से उठी सनातन विरोधी आवाज़, हिंदू धर्म की पुस्तकों व हिंदू देवी देवताओं को लेकर उगले जाने वाले ज़हर उसके ख़िलाफ़ भाजपा ख़ामोश नहीं रही। जबकि कांग्रेस चुप्पी ओढ़े रही। उदयपुर में कन्हैया लाल की हत्या राजस्थान में हिंदू धर्म की शोभा यात्रा पर हमला इन सब सवालों पर खामोशी ओढऩा ठीक नहीं होगा, यह भी जनादेश का संदेश है।


राजनीति में केवल चेहरे का नेतृत्व नहीं होता। नेतृत्व के लिए विचार व व्यवहार की माँग भी होती है। इसी के आधार पर मतदाता नेता की बात पर यक़ीन करते हैं। इस सच्चाई को जानने के कारण ही मोदी ने शिवराज सिंह, वसुंधरा राजे, रमन सिंह को पाश्र्व में रखा। कांग्रेस यही नहीं समझ पा रही हैं। इजऱायल व फि़लस्तीनी युद्ध ने भी इन नतीजों में बहुत व्यापक भूमिका निभाई। सोशल मीडिया पर हमास के पक्ष में जो कुछ लिखा जा रहा है, वह बहुसंख्यक जमात को मोदी के और कऱीब ला रहा है। मोदी ने राज्य के नेतृत्व के प्रति असंतोष पर जिस तरह क़ाबू पाया , उसमें भी राहुल के लिए संदेश है।

भाजपा बहुत गदगद है। लाजिमी भी है। सभी अनुमानों अटकलों को दरकिनार करते हुए तीन तीन बड़े राज्यों में सरकार बनाई है। ख़ुशी की इससे से भी बड़ी बात ये है कि अब 2024 के सबसे बड़े चुनावी फलसफे का तर्जुमा भी 2023 के आखिरी पन्ने में कर दिया गया है। आज भाजपा में जीत के पर्व का उत्साह है, एनर्जी है, आत्म विश्वास है। फिर भी हार से नहीं भाजपा की जीत से भी सबक़ सीखने की ज़रूर है। ताकि आगामी लोकसभा में वह अपने ही पिछले सारे रिकाड्र्स को पीछे छोड़ सकें।

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