Maoist Surrender : कभी नक्सलियों का गढ़ कहलाने वाला अबूझमाड़ अब बदल रहा है। बुधवार को जिले के लंका और डूंगा क्षेत्र से जुड़े 16 सक्रिय नक्सलियों (Maoist Surrender) ने समाज की मुख्यधारा में लौटने का ऐलान किया। इनमें पंचायत मिलिशिया डिप्टी कमांडर, जनताना सरकार सदस्य और न्याय शाखा अध्यक्ष जैसे अहम पदों पर काम करने वाले शामिल हैं।
पुलिस अधिकारियों के अनुसार, आत्मसमर्पण करने वाले सभी नक्सली संगठन के “स्लीपर सेल” की तरह काम करते थे। ये लोग दवा, राशन और हथियार लड़ाकू दस्तों तक पहुंचाते थे और कई बार आईईडी लगाने व मूवमेंट की जानकारी देने में जुटे रहते थे। पूछताछ में नक्सलियों ने खुलासा किया कि शीर्ष माओवादी लीडर (Maoist Leaders) आदिवासियों को झूठे सपने दिखाकर गुलाम बनाते रहे।
सरेंडर करने वाले नक्सलियों ने बताया कि महिला साथियों का जीवन नरक की तरह होता है। उनका शारीरिक और मानसिक शोषण किया जाता है। “जल, जंगल, जमीन” और बराबरी की बातें सिर्फ भाषणों तक सीमित रहती हैं।
पुलिस ने सभी आत्मसमर्पण करने वालों को शासन की आत्मसमर्पण-पुनर्वास नीति (Surrender and Rehabilitation Policy) के तहत 50-50 हजार रुपये की चेक राशि सौंपी। इनके नाम लच्छू पोड़ियाम, केसा कुंजाम, मुन्ना हेमला, वंजा मोहंदा, जुरू पल्लो, मासू मोहंदा, लालू पोयाम, रैनू मोहंदा, जुरूराम मोहंदा, बुधराम मोहंदा, चिन्ना मंजी, कुम्मा मंजी, बोदी मोहंदा, बिरजू मोहंदा, बुधु मज्जी और कोसा मोहंदा हैं।
पुलिस रिकार्ड के अनुसार, इस साल 2025 में अब तक 164 नक्सली (Naxal Violence) आत्मसमर्पण कर चुके हैं। सुरक्षा बलों की लगातार बढ़ती दबाव और नए कैंप की स्थापना से उनका मनोबल टूट रहा है। ग्राउंड लेवल पर लोग मानते हैं कि अबूझमाड़ में हालात बदल रहे हैं। पहले जो लोग नक्सलियों के डर से चुप रहते थे, अब वे खुलकर पुलिस का समर्थन कर रहे हैं।
कई अहम पदों पर थे सरेंडर करने वाले नक्सली
नारायणपुर जिले के लंका और डूंगा क्षेत्र से 16 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर समाज की मुख्यधारा में लौटने का फैसला लिया। ये सभी छोटे कैडर होने के बावजूद संगठन में अहम भूमिका निभाते थे। वे लड़ाकू दस्तों तक दवा, राशन और हथियार पहुंचाते और सुरक्षा बलों की मूवमेंट की जानकारी देते थे। पुलिस ने इन्हें संगठन के “स्लीपर सेल” बताया। आत्मसमर्पण के बाद पूछताछ में नक्सलियों ने बताया कि शीर्ष माओवादी लीडर आदिवासियों को झूठे सपने दिखाकर उनका शोषण करते हैं।
फोर्स का बढ़ रहा लगातार दबाव
नक्सलियों के आत्मसमर्पण के पीछे सुरक्षा बलों की लगातार दबाव की रणनीति अहम मानी जा रही है। पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने अबूझमाड़ में लगातार कैंप स्थापित किए हैं, जिससे माओवादियों का मनोबल टूट गया है। इस साल अब तक 164 नक्सली सरेंडर कर चुके हैं। पुलिस का कहना है कि आत्मसमर्पण करने वालों को पुनर्वास नीति के तहत आर्थिक मदद और बेहतर जीवन जीने का अवसर दिया जा रहा है।