- महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर नानाभाऊ पटोले के दिल को छू गया राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव
- महाराष्ट्र में योजनाओं के प्रचार प्रसार संबंधी शिवसेना वाले बैनर-पोस्टर पर कहा- ये किसी कार्यकर्ता का सिर्फ अपनी पार्टी व नेता के प्रति लगाव, मतभेद जैसी बात नहीं
महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर (maharashtra vidhansabha speaker nanabhau patole)व राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव (national tribal dance festival) के समापन समारोह के अध्यक्ष नानाभाऊ पटोले को छत्तीसगढ़ सरकार (chhattisgarh government) का आयोजन इतना पसंद आया कि वे ऐसा महोत्सव अपने राज्य महाराष्ट्र में कराने के लिए लालायित हैं।
समारोह समाप्त होने के बाद पटोले (maharashtra vidhansabha speaker nanabhau patole) ने नवप्रदेश से खास चर्चा में कहा, ‘इस कार्यक्रम (national tribal dance festival) को देखने व इसके बारे में सुनने के बाद मैंने भी यह ठान लिया है कि ऐसा कार्यक्रम महाराष्ट्र में आयोजित किया जाए। इसके लिए मैं महाराष्ट्र के संस्कृति विभाग को प्रस्ताव तैयार करने के लिए कहूंगा।’
गौरतलब है कि पटोले का अपने क्षेत्र में खासा प्रभाव है। किसान उन्हें अपने सबसे बड़े हितैषी व अन्य वर्ग तथा युवा अपने आईकॉन के रूप में देखते हैं। विदर्भ के साथ ही महाराष्ट्र की राजनीति की इस बड़ी शख्सियत ने नवप्रदेश संवाददाता अश्विन अगाड़े के साथ अपने प्रदेश की आदिवासी संस्कृति, विदर्भ के किसानों-सिंचाई व्यवस्था, महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार के कामकाज समेत विभिन्न मुद्दों पर खुलकर चर्चा की। पेश है बातचीत के अंश…
-आपने अपने भाषण में कहा कि आप महाराष्ट्र सरकार को ऐसा कार्यक्रम कराने की सलाह देंगे, आपके मन में क्या चल रहा है?
हमारे पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य की भव्यता व यहां देश-विदेश से पहुंचे आदिवासी भाई-बहनों का उत्साह देखते ही बन रहा था। मुझे अहसास हुआ कि आदिवासियों की कला संरक्षित करने का काम ऐसे महोत्सवों से निश्चित रूप से होगा। मेरे दिमाग में चल रहा है तभी मैंने महाराष्ट्र में भी ऐसा आयोजन कराने की बात कही है। संस्कृति विभाग को इस संबंध का प्रस्ताव बनाने के लिए कहूंगा। महाराष्ट्र में भी 20 जिलों में आदिवासी बसते हैं। उनकी कला, संस्कृति व परंपरा को संजोने के लिए ऐसे आयोजन कराने ही होंगे।
-छत्तीसगढ़ के बारे में आप क्या कहेंगे, सरकारी योजनाओं को लेकर आपके मन में क्या कोई सुझाव है?
छत्तीसगढ़ ने कृषि के क्षेत्र में अब अपनी अलग पचान बना ली है। सीएम भूपेशजी के नेतृत्व में किसान कल्याण के लिए जो योजनाएं चलाई जा रही हैं, चाहे वो कर्जमाफी की हो या धान को 2500 रुपए प्रति क्विंटल दाम की, इन सभी से छत्तीसगढ़ का किसान समृद्ध बन रहा है। मुझे यह भी जानकारी मिली है कि यहां पोला, तीज व अन्य स्थानीय त्योहारों पर अवकाश घोिषत किया गया है। देश में चल रहे सुस्ती के माहौल में भी एक साल की इन कल्याणकारी योजनाओं से छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था चट्टान की तरह मजबूत बनी है। ऐसे सभी वर्गों को साथ लेकर चल रही सरकार (chhattisgarh government) किसी भी चुनौती से निपटने के उपाय खुद ही खोज लेती है।
-विदर्भ के धान उत्पादकों को अभी सिर्फ प्रति किसान 50 क्विंटल तक ही बोनस दिया जा हा है, क्या इसे बढ़ाया जाएगा?
मेरा राजनीतिक कॅरियर किसानों के लिए ही समर्पित रहा है। विदर्भ के किसानों के हितों के लिए मैंने जो कुछ किया वो खुली किताब है। अभी भले ही क्षेत्र के धान उत्पादकों को प्रति किसान 50 क्विंटल तक ही बोनस दिया जा रहा है, किसानों को उनके पूरे धान पर बोनस मिले इसके लिए प्रयास चल रहे हैं। इसके लिए मैं अपने स्तर पर प्रयासरत हूं। महाराष्ट्र सरकार से इसके लिए बातचीत चल रही है, ताकि विदर्भ के किसानों को कहीं कोई कमी महसूस न हो।
-एनसीपी नेताओं को नाराजगी है कि शिवसेना सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार में अपने नेताओं के नाम का ही इस्तेमाल कर रही है, खासकर किसान कर्जमाफी के फैसले को लेकर। कहीं कोई मतभेद तो नहीं हैं?
ऐसा नहीं है, महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार के सभी दल सामंजस्य के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। किसी दल के कार्यकर्ता द्वारा किसी शहर में योजनाओं के प्रचार-प्रसार को लेकर अपनी पार्टी व नेताओं के बैनर-पोस्टर लगा देना उसका अपनी पार्टी व नेता के प्रति लगाव भी हो सकता है। इस पर किसी दूसरे दल द्वारा कही जा रही बात को आपत्ति व मतभेद नहीं सुझाव कहा जा सकता है।
-गोसीखुर्द समेत विदर्भ के सिंचाई प्रकल्प लंबे समय से अधूरे पड़े हैं, अब नई सरकार में ये कब तक पूरे हो सकते हैं?
सांसद-विधायक रहते ये मुद्दा सदा से ही मेरी प्राथमिकता में रहा है। मुझे विश्वास है कि ये प्रकल्प अब 2022 तक पूर कर लिए जाएंगे।
-महाराष्ट्र में भाजपा एक मजबूत विपक्ष के रूप में है, क्या आपको कार्य निर्वहन में चुनौतियां सामने आती है?
विपक्ष या सत्तापक्ष कितना भी मजबूत क्यों न हो, सदन में विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर अकेले नाना पटोले ही काम नहीं कर रहे होते। इस पद के कामकाज का निर्वहन करते वक्त संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियां व जिम्मेदारियां मेरे साथ होती हैं। लिहाजा संविधान के अनुरूप सदन सुचारू रूप से चले, इसके लिए सभी का प्रयास होता है।