चिंता का टेंशन…
महाराज से एक-एक कर सभी दूर होते जा रहे हैं। लुण्ड्रा से सामरी (Lundra to Samari) आए महाराज (maharaj) के सबसे खास (Most special) ने भी पूरा मन बना लिया है कि वो उन्हें ही नहीं बल्कि पार्टी भी छोड़ (Party too Will leave) देगा। अगली बार विधानसभा चुनाव किस पार्टी से लडऩा है यह भी सोच लिया है। अभी से प्रतिस्पर्धी पार्टी ने टिकट भी पक्की कर दी है।
बस अब चिंता की इस खबर के बाद से ही महाराज, पार्टी और करीबी टेंशन में हैं। इस बड़े फैसले की वजह है महाराज के लोगों व्दारा सीमा का अतिक्रमण। ठेके से लेकर दूसरे के विधानसभा क्षेत्र में संप्रभुता जताने की प्रवृति ने संयमित और संस्कारी चिंता का मोह महाराज से भंग हो चुका है। कैलाशपुरी आश्रम के चश्मो चिराग भी किसी राजे-महाराजे से कम आदर्शों के नहीं हैं…ई तो होना ही था..।
ठेका पूरा, काम…
कपूरा वो भी पूरा का पूरा खाना तो सहीं बात है, इसी तरह ठेका पूरा लेकिन काम अधूरा यह जुगलबंदी सरगुजा संभाग के ठेका कार्यों के लिए बोली जा रही है। ठेकेदार भी सिर्फ राजपूत हैं या फिर जायसवाल। वजह साफ है जब संईया भए कोतवाल तो डर काहे का वाले तर्ज में हर विधानसभा क्षेत्र में ये दो कौम ही काम कर रही है।
अपनी शर्तें, विभागीय बजट और लेटलतीफ कार्य के बाद भी क्षेत्रीय विधायक मुंह खोल नहीं पा रहे अफसर हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। सत्ता परिवर्तन के बाद से ही जितनी भी निविदाएं निर्माण कार्य की निकली हैं उनमें से अधिकांश अधूरी हैं या फिर चंद पूरा भी किया गया तो वो गुणवत्ता से कोसों दूर। ऐसे में जनता स्थानीय विधायक से सवाल कर रही है और विधायकों की दबंग सुन नहीं रहे। स्थिति विस्फोटक है।
सृष्टि के रचियता…
धर्मार्थ जिस सृष्टि की रचना राम ने देवेन्द्र के साथ किया था उन्हीं दोनों के बीच अब तलवारें खिंच गई हैं। बात कर रहे हैं कोरबा में सृष्टि धर्मार्थ अस्पताल के बाद पनपी दुश्मनी की। पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने इसका निर्माण करवाया और नामालूम कारणों से नाम रखा सृष्टि। बेहतरीन संयोग यह कि सृष्टि नाम देवेन्द्र पांडेय की पुत्री का है और अस्पताल में देवेन्द्र ने भी खूब काम किया।
उस वक्त वे भी सहकारिता के कर्ता-धर्ता थे। दोस्ती भी पारिवारिक थी और यही दोस्ती ननकीराम के चुनाव हारने के बाद कम होती गई और दोबारा जब वे विधायक चुनकर आए तो रिश्ता दुश्मनी में तब्दील हो गया। दुश्मन की बेटी के नाम से संचालित धर्मार्थ अस्पताल का विवाद अब जगजाहिर है, लेकिन एक ही पार्टी की राजनीति करने और पारिवारिक मधुरता में खटास की वजह अब भी समझ से परे है।
बजाज पंखा…
इससे कोई भी इंकार नहीं करेगा कि भाजपा में फिलहाल रमन गुट की तूती बोल रही है। ऐसे में नाराज गुट को एक और झटका श्रीचंद की नियुक्ति से मिला है। सहकारिता और ग्रामीण के सबसे बारीक पार्टी नेता की अनदेखी से अब यह कहा जाने लगा है कि भाजपा को बजाज पंखे की हवा रास नहीं आ रही। अपैक्स बैंक की कमान हाथ से निकलती गई तो बजाज पंखा जो लंबे वक्त से पार्टी पदाधिकारियों को ठंडी हवा देता था अचानक गुस्से में गरम हवा फेंकने लगा है। यह गरमी बढऩे के बाद नाराज गुट में एक सदस्य का और ईजाफा होने की उम्मीद है।