Lok Sabha Elections : आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा की चुनौती का सामना करने के लिए विपक्षी पार्टियों में एकजुटता का अभियान जोर-शोर से चल रहा है और इसकी कमान बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने संभाल ली है। वे अब तक दो दौर की बातचीत प्रमुख विपक्षी नेताओं से कर चुके है। सभी ने नीतिश कुमार की इस बात पर तो सहमती जताई है कि भाजपा को हराने के लिए सभी विपक्षी पार्टियों को एकजुट होना चाहिए लेकिन इसके लिए अभी तक कोई रणनीति तय नहीं की गई है। सबसे बड़ी दिक्कत तो विपक्षी की ओर से भावी प्रधावमंत्री पद को लेकर खड़ी हुई है।
प्रधानमंत्री पद को लेकर एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है। खुद नीतिश कुुमार को खुद को प्रधानमंत्री पद का सबसे प्रबल दावेदार मानकर चल रहे हैं यह बात अलग है कि वह अपनी जुबान से यह बात कबुल नहीं कर रहे हैं। बल्कि उन्होंने तो यह बयान दिया है कि वे किसी पद के आकांक्षी नहीं है। लेकिन जिस तरह विपक्षी एकजुटता के लिए कवायद कर रहे हैं उससे साफ है कि वे खुद प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं।
उनके राज्य बिहार में तो पहले से ही उनके समर्थक नीतिश कुमार को भावी प्रधानमंत्री बताने वाली होर्डिंग लगा चुके हैं। नब्बे के दशक में कुछ ऐसा ही आंध्रप्रदेश के तात्कालीन मुख्यमंत्री और तेलगुदेंशम के सुप्रीमों चंद्रबाबू नायडू ने किया था उन्होंने भी भाजपा के खिलाफ तीसरा मोर्चा बनाने के लिए पूरे देश का दौरा किया था लेकिन नतीजा शून्य बटे सन्नाटा हाथ आया था।
खुद चंद्राबाबू की पार्टी तेलगूदेशम (Lok Sabha Elections) आंध्र प्रदेश में मात्र दो सीटों पर सिमट गई थी और इसके बाद हुए आंध्रप्रदेश विधानसभा चुनाव में उनकी तेलगूदेशम पार्टी का सुपड़ा साफ हो गया था। अब वहीं चंद्राबाबू नायडू हवा का रूख भांप कर भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए में वापस आना चाहते है लेकिन भाजपा ने उनके लिए नोएंट्री का बोर्ड लगा रखा है। ऐसे लगता है कि नीतिश कुमार भी चंद्रा बाबू नायडू की राह पर चल पड़े है और उनका हाल भी चंद्रा बाबू नायडू की तरह ही होगा और अंतत: वे भी न घर के रहेंगे न घाट।