राजेश माहेश्वरी। Lessons From Accidents : नए साल की शुरूआत में जम्मू से दुखभरी खबर आई। मां वैष्णो देवी मंदिर में भगदड़ की वजह से 12 श्रद्धालुओं की मौत हो गई और करीब 20 लोग घायल हो गए। इस खबर ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। ऐसी भगदड़ पहले भी कई प्रसिद्ध पूजा-स्थलों में हो चुकी है, लेकिन अफसोस इस बात का है कि हम हादसों से सबक सीखने की बजाय दोषारोपण, मुआवजा और दूसरे गैर जरूरी कामों में ज्यादा ध्यान लगाते हैं। और नतीजा हर बार किसी नयी घटना के तौर पर हमारे सामने होता है।
मां वैष्णों देवी मंदिर परिसर में मौत का आंकड़ा 12 पर ही थम गया, अलबत्ता नैना देवी मंदिर की दो भगदड़ों को याद करके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उनके कारण जनवरी, 2013 में 80 भक्तों और 2008 में 167 श्रद्धालुओं को अपने प्राण गंवाने पड़े थे। कई और उदाहरण हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर के कटरा की इस त्रासदी के मूल में घोर लापरवाही, अनदेखी और कोरोना नियमों के सरेआम उल्लंघन हैं। लेकिन ये समय दोषारोपण का नहीं है। प्रशासन ने जांच बिठा दी है, उम्मीद की जानी चाहिए कि जांच के आलोक में ऐसी पुख्ता तैयारियां और व्यवस्था की जाएंगी जिससे ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होगी।
वैष्णो देवी मंदिर की घटना से पूर्व भी कई घटनाएं घट चुकी है। आंकड़ों की रोशनी में बात की जाए तो देश में बीते कुछ वर्षों के दौरान मंदिरों और अन्य हिंदू धार्मिक कार्यक्रमों में भगदड़ की घटनाओं में सैकड़ों लोगों की मौत हुई है। देश में पिछले दो दशक में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जिनमें लोगों की जानें गई हैं। इनमें कुंभ मेले से लेकर लैंड स्लाइड जैसी घटनाएं भी शामिल हैं। वर्ष 2001 के बाद से, औसत रुप से हर महीने 19 भगदड़ की घटनाएं हुई हैं और इन घटनाओं में औसत 14 लोगों की मौत हुई हैं। यह जानकारी राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों में सामने आई है।
डाटा-पत्रकारिता पोर्टल द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2001 से 2014 के बीच बड़े समारोहों में 3,126 भगदड़ की घटनाएं हुई। इन घटनाओं में 2,421 लोगों की जान चली गई। अपने देश में भगदड़ की सबसे ज्यादा घटनाएं वर्ष 2009 में हुई हैं। 2009 में 1,532 भगदड़ मचीं। हालांकि भगदड़ में सबसे अधिक मौतें वर्ष 2011 में हुई हैं। वर्ष 2011 में ऐसी घटनाओं में 489 लोगों की जान चली गई। वर्ष 2011 में आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में से प्रत्येक तीन राज्यों में 100 से अधिक लोगों ने भगदड़ में जान गवाई है। पहले सात वर्ष (2001-07) में होने वाली मौतों की तुलना में पिछले सात वर्षों के दौरान (2008 से 2014) प्रति वर्ष तीन गुना ज्यादा लोगों ने भगदड़ों में अपनी जिंदगी खोई है।
27 अगस्त, 2003 महाराष्ट्र के नासिक जिले में कुंभ मेले में पवित्र स्नान के दौरान मची भगदड़ (Lessons From Accidents) में 39 लोग मारे गए थे और लगभग 140 अन्य घायल हो गए थे। 25 जनवरी, 2005 महाराष्ट्र के सतारा जिले के मंधारदेवी मंदिर में एक वार्षिक तीर्थयात्रा के दौरान 340 से अधिक श्रद्धालुओं की कुचल कर मौत हो गई और सैकड़ों अन्य घायल हो गए। यह हादसा उस समय हुआ जब श्रद्धालुओं द्वारा नारियल तोडऩे से सीढिय़ों पर फिसलन हो गई थी, जिसमें कुछ लोग फिसलकर गिर गए।
वहीं सितंबर, 2008 को राजस्थान के जोधपुर शहर में चामुंडा देवी मंदिर में बम विस्फोट की अफवाहों के कारण मची भगदड़ में लगभग 250 भक्तों की मौत हो गई और 60 से अधिक घायल हो गए। 4 मार्च, 2010 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में कृपालु महाराज के राम जानकी मंदिर में मची भगदड़ में लगभग 63 लोगों की मौत हो गई थी. ये लोग वहां मुफ्त कपड़े और भोजन लेने के लिए एकत्रित हुए थे। कुंभनगरी हरिद्वार में 8 नवंबर, 2011 को गंगा नदी के किनारे हर-की-पौड़ी घाट पर मची भगदड़ में कम से कम 20 लोगों की मौत हो गई। वहीं 19 नवंबर, 2012 को पटना में गंगा नदी के किनारे अदालत घाट पर छठ पूजा के दौरान एक अस्थायी पुल के ढह जाने से लगभग 20 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए।
नासिक में कुंभ मेले के दौरान अगस्त, 2003 में मची भगदड़ में 30 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थे। हरिद्वार में साल 1986 में एक धार्मिक आयोजन के दौरान भगदड़ में 50 लोगों की मौत हो गई थी। इलाहाबाद में साल 1954 में भी कुंभ मेले के दौरान भगदड़ का भयानक मंजर सामने आया था। उस हादसे में लगभग 800 श्रद्धालुओं की जान गई थी। 13 अक्टूबर, 2013 को मध्य प्रदेश के दतिया जिले में रतनगढ़ मंदिर के पास नवरात्रि उत्सव के दौरान मची भगदड़ में 115 लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक घायल हो गए। भगदड़ इस अफवाह से शुरू हुई थी कि श्रद्धालु जिस नदी पुल को पार कर रहे हैं, वह ढहने वाला है।
अक्टूबर, 2014 को पटना के गांधी मैदान में दशहरा समारोह समाप्त होने के तुरंत बाद मची भगदड़ में 32 लोगों की मौत हो गई थी और 26 अन्य घायल हो गए थे। जुलाई, 2015 में आंध्र प्रदेश में राजमुंदरी में गोदावरी नदी के तट पर एक प्रमुख स्नान स्थल पर मची भगदड़ में 27 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई और 20 अन्य घायल हो गए, वहां ‘पुष्करम’ उत्सव की शुरुआत के दिन भक्तों की भारी भीड़ जमा थी। वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड इस हादसे के लिए साफ तौर पर जिम्मेदारीहै। भीड़ को अनुशासित और नियंत्रित करना स्थानीय प्रशासन, पुलिस और अद्र्धसैनिक बल का बुनियादी दायित्व है।
श्राइन बोर्ड का बयान आया है कि माता के दरबार में दर्शन के लिए 35,000 श्रद्धालुओं का पंजीकरण किया गया था, लेकिन आपदा प्रबंधन से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि मां शेरां वाली के तीर्थ-क्षेत्र में 10,000 से अधिक भीड़ को नियंत्रित करना संभव नहीं है। इस भीड़ में सरकारी कर्मचारी, बल के जवान और भक्त आदि सभी सम्मिलित हैं। दर्शनों के लिए 2500-3000 की भीड़ को ही अनुमति दी जानी चाहिए, क्योंकि यह पर्याप्त संख्या है। यहां का रास्ता संकरा है और वहां ढलान भी है। मंदिर से आने वालों और ऊपर जाने वालों का रास्ता भी एक ही है।
वैष्णो देवी मंदिर में दुखद हादसे के बाद वहां मौजूद लोगों ने साफ कहा कि न तो पंजीकरण पर्ची देखी गई, न कोरोना-रपट की मांग की गई और न ही आरटीपीसीआर जांच की गई। भीड़ बेकाबू और बेहिसाब थी। श्राइन और अन्य अधिकारियों ने ऐसा कैसे और क्यों होने दिया? भीड़ को टुकड़ों में बांट कर नियंत्रित क्यों नहीं किया गया? यह किसकी जिम्मेदारी थी? एंबुलेंस वाहन कहां थे, क्योंकि मृतकों और घायलों को आम लोगों ने ही उठाया और निश्चित, सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया? प्रशासनिक कर्मचारियों और सीआरपीएफ के जवान कहां थे?
यदि हादसा इससे भी बड़ा हो जाता या आतंकी हमला कर देते, तो जवाबदेही किसकी बनती? बेशक भगदड़ का कारण आपसी धक्कामुक्की, हाथापाई हो या सुरक्षा कर्मियों ने भीड़ को धकिया कर पीछे करने की कोशिश की हो अथवा पत्थर गिरने की कोई अफवाह मची हो, सभी संदर्भों में प्रशासनिक और पुलिस कर्मियों की बुनियादी लापरवाही है। यह आपराधिक लापरवाही का प्रत्यक्ष केस बनता है और संबद्ध अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ यह दंडात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।
नहीं तो ऐसे हादसे होते रहेंगे, श्रद्धालु मरते (Lessons From Accidents) रहेंगे और धर्म-यात्रा फिर शुरू होती रहेगी। वहीं यात्रियों को भी अपने व्यवहार में संयम बरतना चाहिए। धर्मस्थलों की पवित्रता और मर्यादा के अनुसार ही आचरण करना चाहिए। ऐसे हादसे देश का दर्द दे जाते हैं, कई घर उजड़ जाते हैं। प्रशासन ने जांच समिति का गठन कर दिया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि दोषियों का सजा मिलेगी और ऐसे पुख्ता इंतजाम किये जाएंगे कि भविष्य में ऐसी कोई मनहूस खबर कभी सुनने को नहीं मिलेगी।