Leadership change in Bihar Congress: बिहार विधानसभा चुनाव में अभी छह माह का समय शेष है लेकिन अभी से बिहार में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। कांग्रेस पार्टी ने येन विधानसभा चुनाव के पूर्व बिहार कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन कर दिया है। बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे अखिलेश प्रसाद सिंह को उनके पद से हटा कर उनकी जगह दलित नेता राजेश कुमार को बिहार कांग्रेस की कमान सौंप दी है। दो बार के विधायक राजेश कुमार बिहार विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के सचेतक हैं।
कांग्रेस ने अब बिहार विधानसभा चुनाव में दलितों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए दलित कार्ड खेला है। इसके संकेत उसी समय मिल गये थे जब बिहार की राजधानी पटना में कांग्रेस ने दलित सम्मेलन किया था और उसे संबोधित करते हुए लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बिहार में दलितों की दुर्दशा पर चिंता जताते हुए दलितों को उनके अधिकार दिलाने का दम भरा था। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह पर यह आरोप लगते रहे हैं कि वे राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव के हाथों की कठपुतली बने हुए थे।
गौरतलब है कि अखिलेश प्रसाद सिंह राष्ट्रीय जनता दल में ही थे बाद में उन्होंने पाला बदला था और कांग्रेस में शामिल हो गये थे। उनके नेतृत्व में बिहार में कांग्रेस हासिए पर जा रही थी। यही वजह है कि कांग्रेस ने बिहार में नेतृत्व बदल दिया है। इसी के साथ अब ऐसे भी संकेत मिल रहे हैं कि कांग्रेस ने बिहार में एकला चलो रे की नीति पर अमल करने का मन बना लिया है। पिछले विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाले महागठबंधन में कांग्रेस को 70 सीटें दी गई थी। जिसमें से कांग्रेस को 17 सीटों पर जीत मिली थी।
कांग्रेस के इस प्रदर्शन को देखते हुए इस बार राष्ट्रीय जनता दल कांग्रेस को 30-40 सीटें ही देने का तैयार है। जबकि कांग्रेस कम से कम 100 सीटें चाहती है। सीटों के बटवारे को लेकर राष्ट्रीय जनता और कांग्रेस में खीचतान की स्थिति बनी हुई है। बिहार कांग्रेस के नेता अब राष्ट्रीय जनता दल का पिछलग्गू नहीं बने रहना चाहते।
इसलिए वे कांग्रेस हाईकमान पर दबाव बना रहे हैं कि कांग्रेस महागठबंधन से अलग होकर अपनी राह अलग चुने भले ही इस बार के चुनाव में उसे पराजय का सामना करना पड़े। लेकिन इससे पूरे बिहार में कांग्रेस का संगठन खड़ा हो जाएगा और आगामी चुनाव में कांग्रेस को निश्चित रूप से इसका लाभ मिलेगा। ऐसा लगता है कि कांग्रेस हाईकमान ने अकेले अपने दम पर चुनाव लडऩे का फैसला ले लिया है। इसी के चलते कर्नाटक के वरिष्ठ कांग्रेस नेता कृष्णा अल्लाहक को बिहार कांग्रेस का नया प्रभारी बनाया गया है। कृष्णा राहुल गांधी के बेहद करीबी हैं। उन्होंने बिहार पहुंचते ही यह बयान दिया है कि इस बार कांग्रेस बिहार में किसी की बी टीम नहीं बल्कि ए टीम बनेगी।
यही नहीं बल्कि कांग्रेस ने युवा नेता कन्हैया कुमार को भी मैदान में उतार दिया है। जिन्होंने बिहार में पलायन रोकने और रोजगार के मुद्दे को लेकर यात्रा शुरू कर दी है। उनकी सभाओं में भारी भीड़ भी उमड़ रही है। गौरतलब है कि कन्हैया कुमार को लालू प्रसाद यादव और उनके पुत्र तेजस्वी यादव बिलकुल पसंद नहीं करते। लालू प्रसाद यादव के विरोध के कारण ही कांग्रेस पार्टी ने पिछले लोकसभा चुनावों में कन्हैया कुमार को बिहार से लोकसभा चुनाव नहीं लड़ाया था इसके बदले उन्हें नई दिल्ली में टिकट दी गई थी। जहां वे लोकसभा चुनाव हार गये थे।
अब उसी कन्हैया कुमार को बिहार में सक्रिय करके कांग्रेस पार्टी ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वह अब राष्ट्रीय जनता दल के दबाव में नहीं आएगी। बिहार में कांग्रेस को लालू यादव नहीं चलाएंगे बल्कि कांग्रेस अपने फैसले खुद लेगी। और अपनी रणनीति भी खुद ही तय करेगी। वैसे राजनीति के जानकार यह भी मान रहे हैं कि कांग्रेस इस तरह के फैसले लेकर राष्ट्रीय जनता दल पर दबाव बना रही है ताकि राष्ट्रीय जनता दल कांग्रेस को 100 सीटें देने पर मजबूर हो जाये। और यदि राष्ट्रीय जनता दल ऐसा नहीं करता तो कांग्रेस अकेले अपने दम पर चुनाव मैदान में उतर जाएगी।
राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस का वोट बैंक एक ही है बिहार में अल्पसंख्यकों के वोट एकमुश्त महागठबंधन को ही मिलते रहे हैं। ऐसे में यदि कांग्रेस महागठबंधन से अलग हो जाती है तो वोटों का बटवारा होने से दोनों को ही नुकसान उठाना पड़ेगा। बहरहाल देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस आगे क्या रणनीति बनाती है।