जल का मुख्य स्रोत कुआं लड़ रहा अस्तित्व की लड़ाई, जिम्मेदार कर रहे उपेक्षा
- सभी जगह पक्कीकरण से बारिश का पानी धरती के अंदर नहीं जा पा रहा है
- निजी हो या शासकीय जल स्रोत कुएं की अनदेखी आगे पड़ेगी सबको भारी
बलौदाबाजार/भाटापारा। kuaan : पूरी दुनिया में पानी को लेकर त्राहिमाम है। एक-एक बूंद के लिए हाहाकार मचा हुआ है, तब भी लोग अपने जल स्रोतों को बचाने की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। हर जगह पक्कीकरण के कारण बारिश का पानी धरती के अंदर नहीं जा पा रहा है। वहीं जितना पानी जमीन के अंदर नहीं जा पाता उससे कई गुना पानी हम कई माध्यमों से निकाल लेते हैं। हम जल स्रोतों की उपक्षा कर लगातार परेशानी से घिरते जा रहे हैं। एक जल स्रोत कुआं है जो आज के समय में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।
दो दशक पहले ग्राम रवान में सार्वजनिक शासकीय प्राकृतिक जल स्रोत कुआं हुआ करता था। पूरे गांव की प्यास वहीं से बुझती थी। भरी गर्मी दोपहरी में कुएं का ठंडा जल शरीर को तरोताजा कर सुकुन देता था। स्वादिष्ट मीठा जल हर किसी को तृप्त कर देता था। घर का सदस्य हो या फिर बाहर से आया कोई भी मेहमान पहले सीधे कुएं में जाकर बाल्टी से पानी निकाल कर ठंडे पानी से हाथ-मुंह धोकर घर में प्रवेश करते थे, तब उन्हें भीषण गर्मी में भी बड़ी राहत मिलती थी।
पर आज के समय आधुनिकता के दौर में कुएं (kuaan) की उपेक्षा ने यह सुकुन भी छीन लिया गया। वैसा ताजा ठंडा पानी अब नहीं मिलता। बता दें कि सीधे जमीन के अंदर से निकाले गए जल में शरीर को जो खनिज तत्व चाहिए वह मिलता था। इस कारण से शरीर के अंदर कुएं का पानी जाते ही शरीर तरोताजा हो जाता था। इसलिए हर घर एक कुआं जरूर होता था। गर्मी में इसकी आवश्यकता को लोग महसूस करते हैं।
आज जल स्रोत का बड़ा माध्यम कुओं (kuaan) का अस्तित्व ही खतरे में है। घरों का हो या गांव का सरकारी कुआं या तो पट गया या फिर उसमें गंदगी, कचरा डालकर जानबूझकर स्वार्थ के लिए बंद कर दिया गया। वहीं कई कुएं अतिक्रमण की भेट चढ़ गया। अ’छे खासे कुएं कूड़ा करकट से भर कर बदहाली पर आंसू बहा रहा है। रवान गांव का सरकारी कुआं कचरे से भर दिया गया, से देख-रेख साफ-सफाई के अभाव में कुआं पूरी तरह से अपना अस्तित्व खो चुका है।
पानी की लगातार कमी को देखते हुए भी भविष्य में और परेशानी होने वाली है उसके बाद भी आसपास के लोग घर से निकलने वाले कूड़े-करकट को जल स्रोत कुएं में डाल रहे हैं जिसके कारण कुआं पटकर समतल हो चुका है। यह एक विडंबना है कि जनप्रतिनिधि भी इस ओर ध्यान नहीं देते। पढ़े-लिखे लोग भी जल स्रोत की उपेक्षा कर रहे हैं। वे अगर जागरूक हो जाएं तो जनप्रतिनिधियों के साथ संबंधित जिम्मेदार अधिकारियों को भी जल संरक्षण के लिए योजना तैयार करवा सकते हैं।
बता दें कि रवान में दो सरकारी कुओं के अलावा अधिकांश घरों में जल का मुख्य स्रोत कुएं पाए जाते थे, जो गर्मी के दिनों में पूरे गांव के लोगों की प्यास बुझती थी। साथ ही ये कुएं गांव का वाटर लेवल सामान्य रखने के लिए काम आया करता था। इसे लेकर ग्रामीण बताते हैं कि 20 से &0 साल पहले ये सरकारी कुएं ही ग्रामीणों की प्यास बुझाने का मुख्य माध्यम था। इन कुओं को बाकायदा शासन द्वारा समय-समय पर सफाई कराया जाता था। रख-रखाव पर ध्यान दिया जाता था, लेकिन बदलते परिवेश में हैंडपंप और अन्य पेयजल के साधन उपलब्ध होने से निजी हो या शासकीय सभी कुएं धीरे-धीरे उपेक्षा का शिकार होते गए, जिस वजह से गांव में ही सरकारी कागजों में ही कुएं बचे हुए हैं।
राहगीर अपनी प्यास बुझाकर पाते थे सुकुन
ग्रामवासियों से मिली जानकारी के अनुसार दोनों सरकारी कुओं का पानी काफी मीठा हुआ करता था। गांव के आधी से Óयादा आबादी इन्हीं दोनों कुएं पर आश्रित हुआ करते थे। प्रतिदिन दैनिक काम के लिए यहीं से पानी का उपयोग होता था। वर्तमान में दोनों कुओं की निशानी मात्र बची हुई है। ग्राम रवान में सरकारी स्कूल के पीछे एक और दूसरा कुआं बलौदाबाजार भाटापारा मुख्य मार्ग से लगा हुआ वर्तमान बस स्टॉप के पास हुआ करता था। मुख्य मार्ग पर चलने वाले लोग इन कुओं से ही अपनी प्यास बुझाते थे।
अब भी बचे हैं 10 से 15 निजी कुएं
देखरेख के अभाव में अब वही कुएं अपना अस्तित्व खत्म कर चुके हैं। गांव में अभी भी 10 से 15 निजी कुएं बचे हुए हैं जिनका उपयोग अभी भी ग्रामीण करते हैं। कुएं का पानी प्राकृतिक होने के कारण काफी मीठा एवं शीतल हुआ करता है।
शास्त्रों में मान्यता है प्यास बुझाने वाले को मिलता है पुण्य
बताया जाता है कि पुण्य प्राप्ति के लिए लोग कुओं की खुदाई कराया करते थे। शास्त्रों में मान्यता है कि कुएं का पानी पिलाने से खुदवाने वाले को पुण्य की प्राप्ति होती है, परंतु आज के समय में कुएं खुदवाना व्यावहारिक नहीं माना जाता, पर जल को धरती के अंदर ले जाने का आज भी अ’छा माध्यम कुओं को माना जाना चाहिए। आज भी ऐसे लोग हैं जो रचनात्मक सोच के साथ जीवन जीते हैं। इसी कारण से अब भी कई जगहों पर कम ही सही पर ग्रामीण क्षेत्रों में ही कुआं देखने को मिलता है।
जनप्रतिनिधियों की अनदेखी बड़ा कारण
मामले पर समीक्षा की जाए तो यह बात सामने आती है कि पंचायत प्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण सरकारी कुआं (kuaan) ग्रामीण क्षेत्रों से खत्म होते जा रहा है। बता दें कि ग्रामीण क्षेत्र में पानी की कमी ना हो इसके लिए शासन द्वारा लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं, परंतु उदासीनता के चलते जल का मुख्य स्रोत कुएं अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसके प्रति लोगों की जागरूकता में कमी के कारण कुएं के आसपास रहने वाले लोग अपने घरों का कूड़ा-करकट कुएं में डाल रहे हैं, जिससे कुआं गंदगी से भर गया है।
कुएं के पनघट पर बांट लेती थीं सुख-दुख
ज्ञात हो कि कुएं के पनघट पर जहां कभी सुबह शाम चहल-पहल रहता था वहीं महिलाएं पानी लेने के बहाने कुछ देर सुकुन के पल गुजारते हुए एक-दूसरे से सुख-दुख की चर्चा भी कर लेती थीं, लेकिन अब वह समय चला गया। कुओं के आसपास की रौनक खतम हो गई। पनघट पर सन्नाटा पसर गया। लोग अब उस ओर देखते भी नहीं हैं।
जुड़ा हुआ है धर्म और अध्यात्म की बात
कुओं से धर्म और अध्यात्म भी जुड़ा हुआ था। पूजा के लिए जल की आवश्यकता पर यहीं से पानी लेकर जाते थे। लोग बड़ी श्रद्धा के साथ सम्मान का प्रतीक पनघट पर जाकर कुआं पूजन करते दिखाई देते थे, पर वैसा नजारा अब बीते दिनों की बात हो गई। आज वहां लोग कूड़ा करकट का अंबार लगा दिया है। सुरक्षा की दृष्टि से पूर्व जनप्रतिनिधियों ने कुएं पर लोहे का जाली भले ही लगवाया दिया गया था, परंतु जल स्रोत को सही तरह से बचाने के लिए ठोस पहल नहीं की गई। कुएं में जल गायब हो चुका।
कुआं बड़े भू भाग को रिचार्ज करने का अ’छा माध्यम
जल स्रोतों की आगे हम भविष्य में पानी को लेकर और परेशान होंगे। ऐसे में हम सभी को चाहिए कि वाटर हार्वेस्टिंग के माध्यम से जमीन को रिचार्ज करें। इसके लिए बड़ा अ’छा माध्यम कुआं है जहां पूरे गांव के बारिश के पानी को इकट्ठा कर बड़े भू-भाग को रिचार्ज कर जल की कमी की परेशानी कम कर सकते हैं, बस ठोस कदम उठाने की है