आंदोलनरत किसानों ने माना जनता का आभार, कहा- मोदी सरकार की कॉर्पोरेटपरस्ती के खिलाफ संघर्ष जारी रहेगा
रायपुर/नवप्रदेश। Kisan Aandolan : बंद का असर राजधानी रायपुर समेत पूरे प्रदेश में देखने को मिला। हालांकि सुबह सड़क किनारे कुछ दुकानें खोली गईं, लेकिन बाद में उन्हें बंद कर दिया गया।
दरअसल, तीन काले कानूनों को लेकर विभिन्न किसान संगठनों ने सोमवार को भारत बंद का ऐलान किया था, जो सफल रहा। संयुक्त किसान मोर्चा और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने संयुक्त रूप से भारत बंद को ऐतिहासिक बताते हुए कृषि विरोधी कानून के पक्ष में चार श्रम संहिताओं के खिलाफ एक विज्ञप्ति जारी की। उन्होंने छत्तीसगढ़ में बंद को सफल बनाने के लिए छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन, छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा और आम जनता से जुड़े सभी घटक संगठनों का आभार व्यक्त किया।
इस दौरान उन्होंने कहा है कि मोदी सरकार के कॉर्पोरेटपरस्ती के खिलाफ उनका संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक इन कानूनों को वापस नहीं लिया जाता। देश को बेचने वाली नीतियों को त्यागा नहीं जाता। उन्होंने कहा है कि इस देशव्यापी बंद में 40 करोड़ लोगों की सीधी भागीदारी ने साबित कर दिया है कि भारतीय लोकतंत्र को बर्बाद करने के लिए संघी गिरोह की साजिश कभी सफल नहीं होगी।
बस्तर से सरगुजा तक सड़कों पर उतरे किसान
छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन (Kisan Aandolan) के संयोजक सुदेश टीकम और छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते ने बताया कि प्रदेश में बंद का व्यापक प्रभाव रहा। बस्तर से लेकर सरगुजा तक मजदूर, किसान और आम जनता के दूसरे तबके सड़कों पर उतरे। कहीं धरने दिए गए, कहीं प्रदर्शन हुए और सरकार के पुतले जलाए गए, तो कहीं चक्का जाम हुआ। इस दौरान राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपे गए।
20 से अधिक जिलों में हुई प्रत्यक्ष कार्रवाई
किसान नेता संजय पराते ने बताया कि अभी तक राजनांदगांव, दुर्ग, रायपुर, गरियाबंद, धमतरी, कांकेर, बस्तर, बीजापुर, बिलासपुर, कोरबा, जांजगीर, रायगढ़, सरगुजा, सूरजपुर, कोरिया और मरवाही सहित 20 से ज्यादा जिलों में प्रत्यक्ष कार्यवाही हुई। बांकीमोंगरा-बिलासपुर मार्ग, अंबिकापुर-रायगढ़ मार्ग, सूरजपुर-बनारस मार्ग और बलरामपुर-रांची मार्ग में सैकड़ों आदिवासियों ने सड़कों पर धरना देकर चक्का जाम किया। इस चक्का जाम में सीटू सहित अन्य मजदूर संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भी बड़े पैमाने पर हिस्सा लिया और मोदी सरकार की मजदूर-किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की।
किसानों की खुदकुशी रोकने का एक ही रास्ता है उपज का सही दाम
किसान नेताओं ने बताया कि कई स्थानों पर हुई सभाओं को वहां के स्थानीय नेताओं ने संबोधित किया और किसान विरोधी कानूनों की वापसी के साथ ही सभी किसानों व कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की वैधानिक गांरटी का कानून बनाने की मांग की। उन्होंने कहा कि देशव्यापी कृषि संकट से उबरने और किसान आत्महत्याओं को रोकने का एकमात्र रास्ता यही है कि उनकी उपज का लाभकारी मूल्य मिले, जिससे उनकी खरीदने की ताकत भी बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था भी मंदी से उबरेगी। इस आंदोलन के दौरान किसान नेताओं ने मनरेगा, वनाधिकार कानून, विस्थापन और पुनर्वास, आदिवासियों के राज्य प्रायोजित दमन और 5वी अनुसूची और पेसा कानून जैसे मुद्दों को भी उठाया।
कई संगठनों का आंदोलन से था सीधा जुड़ाव
कई संगठनों ने किसान आंदोलन (Kisan Aandolan) को अपना समर्थन दिया है, जिसमें ये संगठन मुख्य रूप से शामिल हैं। आलोक शुक्ला, रमाकांत बंजारे, नंदकुमार कश्यप, आनंद मिश्रा, दीपक साहू, नरोत्तम शर्मा, जिला किसान संघ (राजनांदगांव), छत्तीसगढ़ किसान सभा, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति (कोरबा, सरगुजा), किसान संघर्ष समिति (कुरूद), आदिवासी महासभा (बस्तर), दलित-आदिवासी मजदूर संगठन (रायगढ़), दलित-आदिवासी मंच (सोनाखान), भारत जन आन्दोलन, गांव गणराज्य अभियान (सरगुजा), आदिवासी जन वन अधिकार मंच (कांकेर), पेंड्रावन जलाशय बचाओ किसान संघर्ष समिति (बंगोली, रायपुर), उद्योग प्रभावित किसान संघ (बलौदाबाजार), रिछारिया केम्पेन, आदिवासी एकता महासभा (आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच), छत्तीसगढ़ प्रदेश किसान सभा, छत्तीसगढ़ किसान महासभा, परलकोट किसान कल्याण संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, वनाधिकार संघर्ष समिति (धमतरी), आंचलिक किसान संघ (सरिया)।