राजेश माहेश्वरी। Khalistan Fear : पिछले दिनों पटियाला में खालिस्तान मुद्दे को फिर से जिंदा करने का प्रयास किया गया। अतीत में भी खालिस्तान के मुद्दे पर पंजाब सुलग और अशांत हो चुका है। जमीनी सच्चाई यह है कि खालिस्तान आज इतिहास के पन्नों का हिस्सा बन चुका है। वर्तमान में उसकी कोई प्रासंगिकता नहीं है। ऐसे में अहम प्रश्न यह है कि पटियाला में हिंदू और सिख-निहंग चेहरे एक-दूसरे के विरोध में आमने-सामने क्यों आए? आखिरकार खालिस्तान का मुद्दा किन हालातों में वहां उठा?
विचारणीय यह है कि पंजाब में हिंदुओं और सिखों के बीच टकराव तब भी नहीं हुआ था, जब खालिस्तान की मांग उग्र थी और आतंकवाद का दौर था। पंजाबवासी कभी भी ‘सांप्रदायिक’ नहीं रहे। खालिस्तान ने जो घाव दिए थे, उन्हें भरे हुए काफी समय हो चुका है। पंजाब में खालिस्तान किसी को भी नहीं चाहिए। ऐसे में पंजाब की हालिया घटनाओं से जो संकेत मिलता है उसे शुभ नहीं कहा जा सकता। पटियाला के घटनाक्रम पर नजर दौड़ाएं तो पंजाब में सक्रिय शिवसेना (बाल ठाकरे) ने खालिस्तान विरोधी मार्च निकालने की योजना बनाई थी।
पंजाब में कई तरह की शिवसेनाएं हैं-शिवसेना (Khalistan Fear) समाजवादी, शिवसेना राष्ट्रवादी, शिवसेना हिंदू भैया, शिवसेना अखंड भारत। इनका महाराष्ट्र वाली शिवसेना से कोई सरोकार नहीं है, यह पार्टी के राज्यसभा सांसद एवं मुख्य प्रवक्ता संजय राउत ने स्पष्ट किया है। शुरुआती जांच में 32 सिख और 8 हिंदू संगठनों के नेताओं की भूमिका सामने आई है। धरपकड़ की जा रही है। हिंसा का मास्टरमाइंड वजिंदर सिंह परवाना को कहा जा रहा है। मुख्यमंत्री मामले में सक्रियता दिखा रहे हैं, लेकिन अफसोस इस बात का है कि अगर पंजाब सरकार के पास इस बाबत कोई खुफिया रिपोर्ट पहले से थी, तो उस पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया।
पंजाब के साथ पूरे देश ने खालिस्तान का खौफनाक और जानलेवा दौर देखा है। पंजाब के शहरों की तंग गलियों से खाड़कुओं को, नंगी तलवारें और रिवॉल्वर, बंदूक के साथ, भागते देखा है। उस समय जांबाज पुलिस अफसर कंवर पाल सिंह गिल के नेतृत्व में पंजाब पुलिस ने ही खालिस्तान आंदोलन की कमर तोडऩे का बड़ा काम किया था। भिंडरावाला सरीखे आतंकी को ढेर कर दिया था। खालिस्तान आंदोलन ने इस देश को कई गहरे घाव दिए हैं। खालिस्तान आंदोलन ने ही देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्याएं की थीं। लिहाजा अब कोई भी सोच या साजिश हो, हम खालिस्तान को करवट लेते नहीं देख सकते।
खालिस्तान आंदोलन ने पंजाब को बहुत नुकसान पहुंचाया है। पंजाब का आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ढांचा खालिस्तान आंदोलन ने छिन्न-भिन्न करने का काम किया था। खाड़कुओं ने पंजाब के कई प्रतिष्ठित पत्रकारों, कलाकारों, प्रबुद्धजनों के साथ आम लोगों को खालिस्तान के नाम पर बर्बरता पूर्वक मारा। चुन-चुन का हिंदुओं का निशाना बनाया गया। खाडुकओं के आंतक से डरकर पंजाब से हिंदू आबादी का बड़ा हिस्सा हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, हिमाचल और देश के अन्य राज्यों में शरण लेने और बसने को विवश हुआ। हजारों बेकसूरों को खाडुकओं ने मार डाला।
पंजाब सीमावर्ती राज्य है। पंजाब की सीमा पाकिस्तान से जुड़ी है। पंजाब ने लंबे समय तक राजनीतिक उठापटक और उथल-पुथल भरा माहौल देखा है। बीते मार्च में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने सत्ता संभाली है। आप के सत्ता संभालने के एक महीने के भीतर ही पंजाब में खालिस्तान आंदोलन करवट लेता दिख रहा है। पटियाला में जो कुछ भी घटित हुआ वो पंजाब और देश के लिए किसी भी लिहाज से ठीक नहीं कहा जा सकता। ऐसे माहौल में पंजाब की नई सरकार की अग्निपरीक्षा है। पंजाब सीमावर्ती प्रदेश है। चीन और पाकिस्तान की सीमापार से निगाहें हमारे पंजाब पर रहेंगी।
ऐसे में पंजाब से जुड़ा छोटे से छोटा मामला भी संवेदनशील और गंभीर प्रवृत्ति का है। खालिस्तान आंदोलन के इतिहास के मद्देनजर जरा-सी भी ढील नहीं दी जा सकती, क्योंकि पाकपरस्त आतंकवाद अब भी जिंदा है। खालिस्तान समर्थक नेताओं को पाकिस्तान में शरण मिली हुई है। कोई भी षडयंत्र देश-विरोधी साबित हो सकती है। ऐसे में पटियाल की घटना में सभी संदिग्ध संगठनों की गहनता से जांच होनी चाहिए कि आखिर खालिस्तान का संदर्भ कहां से आया? सवाल यह भी है कि क्या कनाडा और लंदन में बसी खालिस्तानी ताकतों ने कोई साजिश रची थी? यदि ऐसा कोई सुराग मिलता है, तो भारत सरकार का अगल कदम क्या होगा।
मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने त्वरित कार्रवाई कर सभी पक्षों की जिम्मेदारी तय करने की पहल की है, लेकिन इतना ही काफी नहीं है। ये गंभीर प्रवृत्ति का मामला है। किसान आंदोलन के समय भी कुछ हिंसक घटनाएं प्रकाश में आई थी, उस समय भी इन घटनाओं के पीछे विदेशों में बैठे खालिस्तान संगठनों की भूमिका चर्चा में रही थी। नवंबर 2019, जब गुरु नानकदेव जी की 550वीं जयंती से 3 दिन पहले करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन हुआ, तो सिखों में खुशी की लहर दौड़ गई थी। लेकिन भारत की सुरक्षा स्थिति पर नजर रखने वाले एक्सपट्र्स ने उस समय यह शंका जतायी थी कि ये कॉरिडोर कहीं ‘खालिस्तान कॉरिडोरÓ में तब्दील न हो जाए। उनकी चिंता बहुद हद तक जायज साबित हो रही है।
ये खुला तथ्य है कि पाकिस्तान लंबे (Khalistan Fear) समय से खालिस्तानी समूहों को मजबूत कर रहा है और पनाह भी दे रहा है। इन खालिस्तानी समूहों के साथ मिलकर पाकिस्तान के साजिश रचने का उद्देश्य भी साफ है। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई हमेशा से ही भारत विरोधी कश्मीरी अलगाववादी समूहों का साथ देती रही है। अनेक सबूतों के अनुसार इस्लामी आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा और पाकिस्तान में रहने वाले खालिस्तानी कार्यकर्ताओं के बीच सहयोग और साठगांठ जारी है।